Uttar Pradesh

लेखन-वाचन परंपरा के महापुरुष हैं शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा : डा. जनार्दन राय

पुस्तक चर्चा

बलिया, 04 अगस्त (Udaipur Kiran) । शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा लेखन-वाचन परंपरा में महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं। रामदहिन ओझा पर लिखी पुस्तक पढ़ कर उसे अपने जीवन में उतारने वाले आज भी इतिहास का सृजन कर सकते हैं। ये बातें जिले के वरिष्ठ साहित्यकार डा. जनार्दन राय ने कही। वे रविवार को डा. प्रभात ओझा द्वारा शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा पर लिखी किताब पर चर्चा के लिए शहर के एक होटल में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि रामदहिन ओझा के जीवन का एक-एक क्षण प्रेरणादायक हैं। श्री राय ने कहा कि रामदहिन ओझा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने बाल्यकाल से ही देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया। बढ़ती उम्र के साथ लेखन में भी उन्होंने महारत हासिल की। इसका इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके लेखन को महात्मा गांधी ने भी महत्व दिया था। उन्होंने शहीद रामदहिन के पौत्र की सराहना करते हुए कहा कि एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के व्यक्तित्व के बारे में इतनी बारीक जानकारी सबके सामने लाकर उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने का काम किया है। स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष डा. शिवकुमार कौशिकेय ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से प्रेरणा लेने का दायित्व सबसे अधिक युवाओं को है। क्योंकि देश की बागडोर युवाओं के कंधे पर ही है। कवि डा. शशि सिंह प्रेमदेव ने कहा कि रामदहिन ओझा ने अपनी कविताओं के माध्यम से देश की सेवा की। बाल्यकाल से ही उन्होंने जिस प्रकार का लेखन किया, वह आज के युवाओं के लिए आदर्श है।

पर्यावरणविद डा. गणेश पाठक ने कहा कि शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा ने जीवन के अनेक ऐसे पहलू हैं, जो हमें प्रेरित करते हैं। उन पर किताब के प्रकाशन से स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति और भी अधिक सम्मान बढ़ेगा। इसके पहले कार्यक्रम की शुरुआत में किताब शहीद पत्रकार रामदहिन ओझा के लेखक डा. प्रभात ओझा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि प्रारम्भिक शिक्षा के बाद रामदहिन ओझा अपने पिता रामसुचित ओझा के साथ आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) गये। वहां शिक्षा के साथ बंगाल की धरती पर चल रहे क्रातिकारी आंदोलनों में रुचि बढ़ी। समय के साथ गांधी जी के शांतिपूर्ण आंदोलन से जुड़ाव भी हो गया। कलकत्ता से ही कई पत्र-पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया। फिर ‘शेखावटी समाचार’, ‘बलिया समाचार’ और ‘युगांतर’ का सम्पादन किया। युगांतर हिन्दी साप्ताहिक था, जो बांग्ला युगांतर से अलग था। कहा कि गांधीवादी सेनानी होने के बावजूद हिंसक क्रांतिकारी धारा के युवकों में भी रामदहिन ओझा का सम्मान था। तभी उनकी अंतिम गिरफ्तारी की रात बलिया में एक जगह बम विस्फोट हुआ तो एसपी के बंगले के पास बम की सामग्री मिली।

उन्हाेंने बताया कि पंडित रामदहिन ओझा (17 फरवरी, 1901-18 फरवरी,1931) पत्रकार एवं स्वतन्त्रता सेनानी थे। माना जाता है कि असहयोग आन्दोलन में किसी पत्रकार की पहली शहादत पंडित रामदहिन ओझा की थी। डा. प्रभात ओझा ने कहा कि रामदहिन ओझा की जेल यात्राओं में उनकी रिहाई की तिथि की जगह सरकारी रिकॉर्ड में स्वीकार करना कि रिहाई की तिथि नहीं है, तब की सरकार और प्रशासन को यह तथ्य कठघरे में खड़ा करता है। इसे लेकर देश के कई महापुरुषों ने जांच की भी मांग की। इस अवसर पर सभा को बांसडीह नगर पंचायत के चेयरमैन सुनील सिंह सेवक, करुणानिधि तिवारी, रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी, डा. भावतोष पाण्डेय, संतोष सिंह, कमलेश तिवारी, अनिल सिंह, अनिल पाण्डेय, रत्नाकर राय, बंटी राय, दीपक सिंह आदि ने भी सम्बोधित किया।

(Udaipur Kiran) / नीतू तिवारी / डॉ. जितेन्‍द्र पाण्डेय / राजेश

Most Popular

To Top