Uttar Pradesh

नजूल भूमि यानी देशभक्तों की भूमि, हंगामा क्यों ? : वीरेन्द्र पाठक

नजूल भूमि

प्रयागराज, 02 अगस्त (Udaipur Kiran) । नाजी शब्द से नजूल बना है। 1857 में जिन देश भक्तों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला, उनकी जन बच्चों के साथ पूरे परिवार की हत्या कर दी गई। दीया जलाने वाला कोई नहीं बचा। अंग्रेजों ने उनकी सारी सम्पत्ति कब्जे में कर ली। यही नजूल भूमि कही जाती है।

अंग्रेजों ने अपने चाटुकार और गद्दारों को उक्त भूमि पट्टे पर उपहार में दिया। यह उपहार गद्दारी का है। गरीबों के उजड़ने का हल्ला हो रहा है, जरा इसका भी विश्लेषण किया जाए। सिविल लाइंस आठ गांव से बना हैं। 1857 में आठों गांव पूरी तरह नष्ट हो गए थे। यहां पर अंग्रेजों ने बंगले बनवाए। देश के मध्य में होने के कारण पश्चिम और उत्तर में जल्द पहुंच के लिए प्रयागराज को अंग्रेजों ने पश्चिम उत्तर प्रांत की राजधानी बना दी। काम करने वालों की जरूरत थी। बंगाल से बहुत सारे लोग यहां लेकर आये। इसीलिए देश भर में वाराणसी के बाद सबसे ज्यादा बंगाली परिवार तब से इलाहाबाद में रहते थे।

यह बातें भारत भाग्य विधाता संस्थापक सदस्य वीरेंद्र पाठक ने भेंट वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि नजूल भूमि में हजारों लोगों की हत्या हुई है। आज जो लोग गरीबों के उजड़ जाने की बात कर रहे हैं। जरा सिविल लाइंस पर नजर डाल लीजिए। हर जगह आपको मल्टी स्टोरी बिल्डिंग और मॉल दिखाई देंगे। गरीब की झोपड़ी नही दिखेगी। हर ताकतवर जमीन के धंधे में लगा है। अचानक से करोड़पति और अरबपति लोगों की ओर निगाह डालिए। यह सभी खुले या गुपचुप रूप से जमीन के धंधे में लगे हैं। क्या सिविल लाइंस में आपको झोपड़पट्टी नजर आती है? नहीं नजर आएगी। क्योंकि धन और बल के जरिए गरीब उजाड़ दिए गए। यह गरीब वह लोग थे जो गद्दारों के बंगलों में नौकरी करते थे। आउट हाउस में रहते थे। प्रयागराज में आज अधिकतर ताकतवर व्यक्ति ने ही नजूल की जमीन पर कब्जा किया है। यह धन और सत्ता बल के कारण काबिज है। बहुत कम और अपवाद में आपको कमजोर और गरीब आदमी नजूल की सम्पत्ति पर काबिज मिलेगें।

पाठक ने कहा कि नजूल की सम्पत्ति के फ्री होल्ड का खेल आपको समझाता हूं। 90 के दशक से फ्री होल्ड का खेल शुरू हुआ, 97 और उसके बाद फ्री होल्ड की पॉलिसी आती रही। न्यायमूर्ति धवन का एक फैसला बड़ा महत्वपूर्ण है। अंग्रेज जब गए तो स्टेट लैंड और नजूल लैंड का स्वामित्व केंद्र सरकार में समाहित हो गया। केंद्र सरकार की इस भूमि पर कस्टोडियन उत्तर प्रदेश और स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी होते हैं। कई मुकदमे चले और उस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा कि आखिर जब यह भूमि केंद्र सरकार में समाहित है और जिलाधिकारी सिर्फ उसका कस्टोडियन है तो आप दूसरे की भूमि को फ्रीहोल्ड कैसे कर सकते हैं? कुछ बातें और बताना चाहता हूँ लेकिन अभी सार्वजनिक बताना उचित नहीं, इसलिए नहीं बता रहा हूं।

जैसा आप सब जानते हैं कि न्याय का जाला बड़ा जीव तोड़ देता है, यही हुआ। नजूल की सम्पत्ति पर न्याय से जुड़े कुछ बड़े-बड़े लोग भी हैं। 2000 आते-आते बिल्डर माफिया दबंग को यह एहसास हो गया कि यह चांदी नहीं, सोने नहीं, बल्कि हीरे की खान है। फ्रीहोल्ड पॉलिसी आई तो उसमें यह ऑप्शन दिया गया कि पट्टा जिस व्यक्ति के नाम है, वह फ्री होल्ड करा ले। अगर वह फ्रीहोल्ड नहीं कराता तो जो व्यक्ति नजूल की भूमि पर काबिज है वह फ्री होल्ड करा सकता है। बिल्डरों ने यहां सत्ता से साठ गांठ करके एक बड़ा खेल खेला और गरीब नजूल की भूमि से उजड़ गए। माफियाओं, बिल्डर, दबंग, मौका परस्त लोगों ने सत्ता में बैठे लोगों को समझाया और एक आदेश जारी करा दिया कि अब नजूल की भूमि एक साथ फ्री होल्ड होगी। साथ ही फ्री होल्ड करने की कीमत भी कई गुना बढ़ा दी।

मान लीजिए 3000 स्क्वायर मीटर के एक बंगले में 10 नौकरों की झोपड़ी है और एक पट्टा धारक के चार सक्सेसर हैं तो कल 14 लोग उस भूमि पर अधिकार करने वाले हो गए। अब जब पूरे 14 लोग फ्री होल्ड करने का आवेदन करेंगे, तभी एक साथ पूरा बंगला फ्री होल्ड होगा। अगर तेरह लोग करेंगे तो फ्री होल्ड नियम अनुसार नहीं हो सकेगा। बस यही धन और बल का असली खेल शुरू हो गया। इसी ने प्रयागराज में कई माफिया पैदा कर दिए। सत्ता के सभी अंगों का गठजोड़ आपको सिविल लाइंस में दिखेगा। जो पहले गरीब थे, एक झोपड़ी में रह रहे थे। वह नजूल की भूमि को फ्रीहोल्ड नहीं करा सकते थे। पारिवारिक कलह की वजह से लोग फ्रीहोल्ड नहीं करते थे। ऐसे में माफिया पहले एक हिस्सेदार का अधिकार खरीदता था। इसके बाद पैसा फेंक कर दूसरे, तीसरे और सभी का अधिकार स्वयं ले लेता। आप देखेंगे बहुत सारे बंगलो में रहने वालों को 20-20 गज का प्लॉट दे दिया गया या उनको 20 गज का पैसा दे दिया गया। अब जो यह बात कहते हैं कि गरीब बेघर हो जाएगा! क्या बेघर नहीं हुआ। सरकार भी तो कह रही है कि उजड़ने से पहले उन्हें बसाया जाएगा। बहुत से गरीबों को पैसा भी नहीं मिला उन्हें भगा दिया गया।

पाठक ने बताया कि मुझे याद है एक जिलाधिकारी प्रयागराज में आए, उन्होंने स्वयं से अपना स्थानांतरण करा लिया। व्यक्तिगत बातचीत में उन्होंने कहा कि नजूल भूमि यहां का बड़ा बवाल है। बहुत दबाव रहता है। समझने वाली बात है कि गरीब का दबाव जिलाधिकारी पर तो हो नहीं सकता। 2005 के बाद नजूल भूमि का खेल कुछ लोगों ने ही खेला वह फ्री होल्ड बंद होने तक जारी रहा। एक बिल्डर के बारे में तो यहां तक कहा जाता रहा कि आप कोई भी नजूल भूमि उनको बेच दीजिए। वह सारा सिस्टम जानते हैं। फ्रीहोल्ड करा लेंगे। मिट्टी के दाम खरीदी जमीन को वह मनमाने दाम पर बेचते रहे। इसीलिए आज यह स्थिति है कि लंदन में आपको फ्लैट सस्ता मिल जाएगा, दुबई में प्रयागराज से कम कीमत पर फ्लैट मिल जाएगा। गरीब को फ्रीहोल्ड हो अथवा सरकार अपने कब्जे में जमीन ले, दोनों स्थितियों में एक समान स्थिति रहने वाली है। फ्री होल्ड होगा थोड़े पैसे या थोड़ी जमीन मिलेगी। अगर सरकार जमीन पर कब्जा करती है तो भी वह उसे बसायेगी। दोनों स्थिति में गरीब की स्थिति एक समान होने वाली है, हां बिल्डरों को इससे नुकसान होगा।

सुहास एलवाई तत्कालीन जिलाधिकारी का प्रकरण आपको ज्ञात ही होगा कि कैसे इन ताकतवर लोगों ने एक ईमानदार आईएएस को फंसाने के लिए घेराबंदी की। बाद में राजस्व से स्पष्ट हुआ कि उस ईमानदार अधिकारी ने सरकार की जमीन बचा ली। आप सोच भी नहीं सकते की कितने बड़े-बड़े लोग इस खेल में शामिल हैं। कभी किसी ने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं की। मैं इस बात से सहमत और समर्थन करता हूं कि जब भी कोई गरीब को हटाया जाए तो उसे पहले बसाया जाए। नहीं तो यह मनमाना कानून होगा।

मुझे जहां तक याद हैं जब 1983 में सिविल लाइन्स में काफी संख्या में गरीब परिवारों के झोपड़ी थी, अंग्रेजों के बने भवन थे। तब ऊंचे ऊंचे फ्लैट, महल व मॉल नहीं थे। हां, रेलवे कालोनी बनी हुई थी। तब का नक्शा प्रयागराज जिसने भी देखा होगा, अगर आज प्रयागराज आए तो वह भटक जाए। 1990 से लेकर 2017 तक शहर के नामी, गिरामी, सांसद, विधायक की शह पर माफियाओं ने गरीबों के झोपड़ियों को कुचल कर आलीशान भवन में बदलकर नक्शा ही बदल दिया। उत्तर प्रदेश में बाबा को छोड़कर सभी बड़े लोगों व सभी दलों के पैसे वालों ने गरीबों को लूटा और खत्म किया। आज कोई बताएं सिविल लाइन्स इलाकों में गरीब परिवार कहाँ हैं ?

इतना ही नहीं सपा सरकार के मुखिया ने भी नजूल की भूमि वक्फ बोर्ड को सौप दिया था। अयोध्या में भी मेरा अनुमान हैं कि 70 प्रतिशत भूमि नजूल रही होगी। मेरे शंकरगढ़ में भी नजूल भूमि और जमींदारी उन्मूलन के उपरांत सरकार के खातें की, सरकारी भूमि को बेच बेच कर मालामाल हो गए। जिसमें आरके, एआरके का बड़ा रोल रहा हैं। गरीब लोगों को योगी सरकार से बड़ी उम्मीदें व आशा हैं कि बृहद रूप से गोपनीय जांच कराएं तो निश्चित रूप से गरीब व शहीद परिवारों को न्याय मिल जाएगा।

(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र / बृजनंदन यादव

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