Uttrakhand

मां गंगा के पावन तट पर शिवाभिषेक कर ऋषिकुमारों ने की विश्व मंगल की कामना

परमात्मा निकेतन में आयोजित शिवरात्रि पर कार्यक्रम

ऋषिकेश, 02 अगस्त (Udaipur Kiran) । परमार्थ निकेतन में श्रावण शिवरात्रि के अवसर पर परमार्थ निकेतन के आचार्यों, ऋषिकुमारों और परमार्थ परिवार के सदस्यों ने वैदिक मंत्रों एवं दिव्य शंख ध्वनि के साथ शिवाभिषेक कर भगवान शिव से विश्व मंगल की प्रार्थना की। परमार्थ निकेतन द्वारा शिवरात्रि के अवसर पर कांवड़ियों व शिवभक्तों की बड़ी संख्या को देखते हुए प्रातः सात बजे से शाम सात बजे तक बाघखाला में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भगवान शिव निराकार व ओमकार ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह दिव्य शक्ति न केवल बह्माण्ड बल्कि सभी में समाहित है। शिव की सर्वोच्च चेतना और माता पार्वती जी की शक्ति की दिव्य ऊर्जा का सभी के जीवन में संचार हो। स्वामी ने कहा कि शिव परिवार सर्वत्र समानता, विविधता में एकता, समर्पण और प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। भगवान शिव के गले में सर्प, गणेश का वाहन चूहा और कार्तिकेय का वाहन मोर है, सर्प, चूहे का भक्षण करता है और मोर, सर्प का परन्तु परस्पर विरोधी स्वभाव होते हुए भी शिव परिवार में आपसी प्रेम है। अलग-अलग विचारों, प्रवृत्तियों, अभिरुचियों और अनेक विषमताओं के बावजूद प्रेम से मिलजुल कर रहना ही हमारी संस्कृति है और शिव परिवार हमें यही शिक्षा देता है।

शिवरात्रि के पावन अवसर पर स्वामी ने शिवजी की नटराज मुद्रा का दिव्य वर्णन करते हुय अपने सत्संग में कहा कि शिव, संहारक और सृजनकर्ता दोनों हैं, जीवन के द्वंद्वों को मूर्त रूप देते हुए सृजन और विनाश दोनों से जुड़े हुए हैं। नटराज का तांडव नृत्य इसका प्रतीक हैं और इसके पीछे एक गहरी अंतर्दृष्टि भी है। शिव के अग्रदूत रुद्र हैं, जो प्राकृतिक तत्त्वों और प्रकृति की दैवीय शक्तियों के प्रतीक हैं।

स्वामी ने कहा कि शिवरात्रि, हमें अपनी अन्तर्चेतना से जुड़ने, सत्य को जनाने, स्व से जुड़ने तथा शिवत्व को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। जीवन में आये विषाद्, कड़वाहट और दुःख को पी कर आनन्द से परमानन्द की ओर बढ़ने का संदेश देती है। उन्होंने सभी शिवभक्तों का आह्वान करते हुए कहा कि श्रावण माह प्रकृति और पर्यावरण की समृद्धि का प्रतीक है। इस माह में नैसर्गिक सौन्दर्य चरम पर होता है इसलिये शिवाभिषेक के साथ धराभिषेक भी जरूरी है। उत्तराखण्ड के तो कण-कण में शिव का वास है इसलिये इस देवभूमि को सिंगल यूज प्लास्टिक से प्रदूषित न करें और अपनी यात्रा की याद में कम से कम पांच पौधों का रोपण अवश्य करें।

(Udaipur Kiran) / विक्रम सिंह / सत्यवान / वीरेन्द्र सिंह

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