लखनऊ, 01 अगस्त (Udaipur Kiran) । प्रदेश के चकबंदी विभाग में अनियमितताओं का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। हाल में फतेहपुर जिले में जमीन सम्बंधी एक मामले में खिन्न किसान की आत्महत्या के बाद चकबंदी के कुछ अधिकारी-कर्मचारियों और एक परगनाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हुई थी। अब अनियमितता की जद में चकबंदी मुख्यालय भी आ गया है। कारर्वाई का नया प्रकरण वाराणसी से है, जिसमें अनियमितता और गलत सूचनाएं देने के आरोप में अपर संचालक चकबंदी (प्राविधिक) तरुण कुमार मिश्र के खिलाफ कार्रवाई का आदेश हुआ है। श्री मिश्र के खिलाफ वृंदावन और प्रयागराज के मामलों में भी जांच लंबित हैं।
वाराणसी वाले मामले में राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव पी. गुरुप्रसाद ने एक आदेश किया है। दिनांक 31 अगस्त, 2024 को जारी आदेश में प्रमुख सचिव ने वाराणसी जनपद अंतर्गत तहसील सदर के ग्राम सरसौल, परगना जाल्हूपुर में हुई चकबंदी में अनियमितता का संदर्भ ग्रहण किया है। उस अनियमितता में तत्कालीन बंदोबस्त अधिकारी अशोक कुमार सिंह दोषी पाए गये थे। उसी मामले में अब अपर संचालक चकबंदी (प्राविधिक) तरुण कुमार मिश्र को गलत सूचना देने सहित अपने पद के दायित्वों का सम्यक निर्वहन नहीं करने आदि का दोषी मानते हुए विभागीय कार्रवाई का आदेश दिया गया है।
ज्ञातव्य है कि चकबंदी विभाग के अपर निदेशक तरुण कुमार मिश्र के खिलाफ जो जांच पहले से चल रही हैं, उनमें 238 बीघा,19 बिस्वा, दो धूर माप वाली जमीन का मामला प्रयागराज में सोरांव तहसील के गांव उमरिया उर्फ गेंडा का है। यह जमीन 1964 तक सरकारी अभिलेखों में ऊसर के रूप में दर्ज थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार ऊसर, तालाब-पोखर, आबादी और ग्रामसभा की जमीन को किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति-समूहों के नाम नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत 1975 में करोड़ों की इस जमीन को विक्रमाजीत के नाम कर दिया गया था। ग्रामीणों की शिकायत पर यह मामला चकबंदी अधिकारी की कोर्ट में चलता रहा। तब चकबंदी अधिकारी के रूप में तरुण कुमार मिश्र ने 1997 में इस जमीन को ऊसर की जगह विक्रमाजीत के पुत्रों अमर सिंह और रघुवीर सिंह के नाम कर दी। इस मामले में जब 2018 में एसओसी कोर्ट में शिकायत की गई तो एसओसी ने 2022 में चकबंदी अधिकारी के आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश के बावजूद जमीन खाली नहीं कराई गई। यहीं संदेह पैदा होता है कि हजारों करोड़ रुपये मूल्य की इस जमीन पर कतिपय अधिकारी और भूमाफिया की नजरें हैं।
आरोप है कि जो जमीन सरकार के किसी प्रोजेक्ट के काम आ सकती थी, वह लंबे समय से एक अधिकारी की मिलीभगत का शिकार है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस जमीन को काबिज लोग और उक्त अधिकारी मिलकर इसे उपयोग में ला रहे हैं। इस मामले के संदिग्ध तत्कालीन चकबंदी अधिकारी और अब अपर आयुक्त तरुण कुमार मिश्र मुख्यालय में रहने का लाभ लेते हुए किसी कार्रवाई से बचे हुए हैं। फिलहाल, स्थिति यह है कि फिर से अप्रैल के प्रारम्भ में प्रमुख सचिव राजस्व को कई मामलों सहित इसकी शिकायत की गई है|
प्रयागराज में तब चेतानी तक ही हुई काररवाई
तरुण कुमार मिश्र के प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में इस कदाचारपूर्ण आचरण के विरुद्ध पूर्व में जांच हुई। उनके दबाव में दो बार तत्कालीन जांच अधिकारियों ने खुद को जांच से मुक्त करा लिया। वैसे विभागीय जांच के बाद 5 सितंबर, 2003 के आदेश में तत्कालीन चकबंदी आयुक्त ने कहा, “यद्यपि जांच में जांच अधिकारी द्वारा उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना प्रतीत होता है।” तब घपले के समय इलाहाबाद के तत्कालीन चकबंदी अधिकारी और आयुक्त के आदेश के समय रायबरेली में सहायक बंदोबस्त अधिकारी तरुण कुमार मिश्र को चेतावनी दी गई थी।
जिस ट्रस्ट में पत्नी, उसे मिली गांव सभा की जमीन
तरुण कुमार मिश्र के विरुद्ध एक अन्य जांच मथुरा जिले से सम्बंधित है। वहां गांव सभा की जमीन एक महंत के नेतृत्व में बने ट्रस्ट के पक्ष में कर दी गई। इस ट्रस्ट में तरुण कुमार मिश्र की पत्नी भी एक ट्रस्टी बताई गई हैं। सचिव राजस्व को हुई शिकायत पर इस मामले की जांच आगरा के आयुक्त कर रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / मोहित वर्मा / बृजनंदन यादव