रांची, 1 अगस्त (Udaipur Kiran) । झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में दो तिहाई पद रिक्त रहने पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मौखिक कहा कि जब राज्य सरकार के स्वास्थ्य सेवाओं में स्वीकृत पद के मुकाबले दो तिहाई पद खाली है, ऐसे में तो झारखंड में स्वास्थ्य सेवाएं कैसे बेहतर होंगी? प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्वास्थ्य उप केंद्र, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, जिला अस्पतालों में ना तो मेडिकल इक्विपमेंट है और न हीं उसको चलाने वाले तकनीकी कर्मी। केंद्र सरकार द्वारा झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भेजे गए 256 करोड़ सरेंडर कर दिए गए।
सभी जिलों में मेडिकल सुविधा बढ़ाने के लिए राज्य सरकार की ओर से तीन-चार माह पूर्व एक-एक करोड़ रुपये दिए गए हैं लेकिन उसका क्या हुआ, वह पता नहीं चल सका है। जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्वास्थ्य उप केंद्र, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर और जिला अस्पतालों के भवनों की मरम्मत और आधारभूत संरचना दुरुस्त करने के लिए राज्य सरकार ने 112 करोड़ दिए हैं लेकिन स्थितियां वहीं की वहीं है। नतीजा झारखंड में मशरूम की तरह उग आए निजी अस्पताल और क्लिनिक झारखंड की गरीब जनता का शोषण कर रहे हैं। राज्य सरकार को झारखंड में मेडिकल सुविधा बेहतर बनाने के लिए लॉन्ग टर्म प्लान बनाने की जरूरत है, स्वीकृत पद के मुकाबले जितनी भी रिक्तियां हैं, उसे अविलंब भरना भी जरूरी है।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई 27 अगस्त निर्धारित करते हुए राज्य सरकार को झारखंड में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा बहाल करने, मेडिकल इक्विपमेंट खरीदने और रिक्तियों को भरने आदि के संबंध में शपथ पत्र दाखिल करना करने का निर्देश दिया। गुरुवार को झारखंड में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर की गंभीर स्थिति को देखते हुए कोर्ट द्वारा लिए गए स्वतः संज्ञान पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले में राज्य सरकार के जवाब पर कोर्ट ने असंतोष जताया। कोर्ट ने कहा कि झारखंड वेलफेयर स्टेट है, यहां की गरीब जनता स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव झेले, यह उचित नहीं है। ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, हेल्थ सब सेंटर और कम्युनिटीज हेल्थ सेंटर आदि को बेहतर किया जाना जरूरी है। अभी बरसात का समय है, सांप काटने की दवा झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकाें में रहे, यह सरकार सुनिश्चित करें।
(Udaipur Kiran) / शारदा वन्दना / दधिबल यादव