— एचआईवी और संक्रामक रोगों की नई दवाओं की डिजाइन करने में मिलेगी मदद
कानपुर, 01 अगस्त (Udaipur Kiran) । कई सालों से दुनिया भर के शोधकर्ता डफी एंटीजन रिसेप्टर के रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं हासिल हो सकी। यह बैक्टीरिया और परजीवियों को हमारी कोशिकाओं पर हमला करने और बीमारी पैदा करने में मदद करने के लिए एक ‘प्रवेश द्वार’ के रुप में कार्य करता है। इस रिसेप्टर को हाई-रिज़ॉल्यूशन पर देखने में हमारी सफलता हमें यह समझने में मदद करेगी कि रोगाणु कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए इसका कैसे फायदा उठाते हैं।
यह जानकारी नई एंटीबायोटिक दवाओं और एंटीमलेरियल सहित उन्नत दवाओं को बनाने में मददगार साबित होगी। खासकर ऐसे समय में जब हम बढ़ते एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध का सामना कर रहे हैं। यह बातें गुरुवार को रिसेप्टर की एतिहासिक खोज करने वाले कानपुर आईआईटी के शोध दल के नेतृत्वकर्ता प्रो. अरुण कुमार शुक्ला ने कही।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के जैविक विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व में एक शोध दल ने डफी एंटीजन रिसेप्टर की पूरी संरचना के खोज के साथ एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सफलता हासिल की है। मानव शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं और अन्य कोशिकाओं की सतह पर पाया जाने वाला यह रिसेप्टर प्रोटीन कोशिका में प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, जो मलेरिया परजीवी, प्लास्मोडियम विवैक्स और जीवाणु, स्टैफिलोकोकस ऑरियस जैसे विनाशकारी रोगजनकों द्वारा संक्रमण को फैलाता है। सेल नामक सहकर्मी-समीक्षित प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित इस खोज पर शोध पत्र रोगाणुरोधी दवा प्रतिरोध के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों को उनके शोध को आगे बढ़ाने के लिए नई जानकारी प्रदान करेगा। दवा प्रतिरोधी संक्रमणों की बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए डफी रिसेप्टर की संरचना की खोज दवा प्रतिरोधी मलेरिया और स्टैफिलोकोकस संक्रमणों के साथ-साथ एचआईवी जैसे संक्रमणों के लिए नए उपचारों में आगे के शोध का मार्ग प्रशस्त करेगा।
मीडिया प्रभारी रुचा खेडेकर ने कहा कि अनुसंधान दल ने डफी एंटीजन रिसेप्टर की जटिल संरचना को उजागर करने के लिए अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का इस्तेमाल किया, जिससे डफी रिसेप्टर की अनूठी संरचनात्मक विशेषताओं नई जानकारी प्राप्त हुई और इसे मानव शरीर में समान रिसेप्टर्स से अलग किया जा सका। यह विस्तृत समझ अत्यधिक लक्षित उपचारों के निदान में महत्वपूर्ण होगी जो अवांछित दुष्प्रभावों के बिना संक्रमण को प्रभावी ढंग से रोक सकती है।
वैश्विक वैज्ञानिक मंच पर भारत की हाेगी मजबूत स्थिति
आईआईटी के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि शोधकर्ताओं की हमारी टीम ने उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल किया है, जो वैज्ञानिक ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाती है। इस शोध की सफलता संक्रामक रोगों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाएगी और दवा प्रतिरोधी रोगजनकों के लिए उपचार विकसित करने में मदद करेगी। इस अत्याधुनिक शोध से वैश्विक वैज्ञानिक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत होगी।
शोध दल में यह रहे शामिल
शोध दल में आईआईटी कानपुर के शिरशा साहा, जगन्नाथ महाराणा, सलोनी शर्मा, नशराह जैदी, अन्नू दलाल, सुधा मिश्रा, मणिशंकर गांगुली, दिव्यांशु तिवारी, रामानुज बनर्जी और प्रो. अरुण कुमार शुक्ला शामिल थे। इसके अलावा टीम में सीडीआरआई लखनऊ, स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख, कोरिया गणराज्य के सूवॉन, जापान के तोहोकू और यूनाइटेड किंगडम के बेलफास्ट के शोधकर्ता भी शामिल थे।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / अजय सिंह / विद्याकांत मिश्र