-कोर्ट ने दी चेतावनी, बिना ठोस आधार केस स्थानांतरण के लिए न लगाएं न्यायिक अधिकारी पर आरोप
प्रयागराज, 30 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि न्यायिक पीठासीन अधिकारी के विरुद्ध झूठे आरोप लगाना आजकल फैशन बन गया है। उन्हें असहाय व्यक्ति समझा जाता है, जिनसे कोई भी व्यक्ति अपने न्यायिक कार्यों के सम्बंध में सम्पर्क कर सकता है।
याचिका में पीठासीन न्यायिक अधिकारी पर अनर्गल आरोप लगाकर केस अन्यत्र स्थानांतरित करने की मांग की गई है। किंतु कोई संतोषजनक आधार नहीं दिया है। कोर्ट ने कहा सत्र न्यायाधीश, आगरा द्वारा आवेदन निरस्त करने के आदेश में कोई अवैधता या दुर्बलता नहीं है।
इसके अलावा, सत्र परीक्षण, जो परिपक्व अवस्था में है, सामान्यतः अभियुक्त के कहने पर केस स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने याची अभियुक्त को चेतावनी दी है कि पीठासीन न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध बिना किसी ठोस आधार के तुच्छ शिकायत न करें। कोर्ट ने इसी के साथ आगरा सत्र अदालत में विचाराधीन केस के स्थानांतरण की अर्जी खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने अर्जुन सिंह की अर्जी पर दिया है। याची का कहना था कि उसके विरुद्ध आगरा के बरहन थाने में दर्ज आपराधिक केस का विचारण अपर सत्र अदालत आगरा में चल रहा है। केस में गवाही हो रही है। याची का कहना है कि उसने शिकायतकर्ता को केस की सुनवाई कर रहे जज के चेंबर से बाहर आते हुए देखा। गांव में चर्चा है कि सेटिंग हो गई है और अभियुक्त को सजा मिलकर रहेगी।
21 नवम्बर 23 को केस दूसरी कोर्ट में स्थानांतरित करने की जिला एवं सत्र न्यायाधीश को अर्जी दी गई, जो निरस्त कर दी गई। याची का कहना है कि उस जज से उसे न्याय की उम्मीद नहीं है। इसलिए केस दूसरी कोर्ट में भेजा जाय।
विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि केस आखिरी स्टेज पर है। स्थानांतरण अर्जी पोषणीय नहीं है। इसलिए अर्जी निरस्त की जाय। रजनीश कुमार राय केस का हवाला भी दिया। जिस पर कोर्ट ने पत्रावली का अवलोकन कर उक्त टिप्पणी की है।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / दिलीप शुक्ला