जयपुर, 27 जुलाई (Udaipur Kiran) । राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि नई शिक्षा नीति के आलोक में विश्वविद्यालय प्राचीन और नवीन ज्ञान का समन्वय करते हुए संस्कृत और संस्कृति के प्रसार के लिए कार्य करे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र सर्वोपरि है। सामूहिकता के भाव में कहीं कोई भेद नहीं होता। इसे समझते हुए शिक्षा के जरिए आत्मनिर्भर भारत के लिए भी सब मिलकर कार्य करें।
मिश्र शनिवार को जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत में योग, विज्ञान, शास्त्र, भारतीय संस्कृति, संस्कार से जुड़ी शिक्षा दी जाती है। व्यक्तित्व निर्माण के लिए इसी शिक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता रहती है। यह शिक्षा यदि कहीं मिलती है तो उसको आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता।
राज्यपाल ने नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें कौशल विकास के साथ भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों से जुड़े ज्ञान के आधुनिकीकरण पर भी विशेष जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति प्राचीन और नवीन ज्ञान के समन्वय का आधार लिए है। विश्वविद्यालयों को नई शिक्षा नीति की इस पहल को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।
राज्यपाल ने संविधान को सर्वोच्च बताते हुए उसके सभी भागों से पूर्व मूल प्रति पर उत्कीर्ण चित्रों की चर्चा करते हुए कहा कि इनमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति प्रकट होती है। उन्होंने कहा कि संविधान की मूल प्रति में शांतिनिकेतन के आचार्य नंदलाल बोस ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आग्रह पर जो चित्र उकेरे उनमें भगवान श्री राम सीता संग अयोध्या लौट रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिए कर्म का संदेश दे रहे हैं। यह चित्रकारी भारत के उदात्त जीवन मूल्यों और परंपराओं से हमें जोड़ती है।
उन्होंने राष्ट्र को सर्वोच्च बताते हुए कहा कि सभी देवों की समग्र शक्ति दुर्गा है। उन्होंने सामूहिकता के भाव, संस्कृति आदि की भी विषद चर्चा की। उन्होंने राजभवन में निर्मित संविधान पार्क की चर्चा करते हुए कहा कि इसके जरिए संविधान की संस्कृति को जीवंत करने का प्रयास किया गया है।
मिश्र ने जगदगुरू स्वामी राम भद्राचार्य को आत्म विश्वास का साक्षात स्वरूप बताते हुए कहा कि दीक्षांत की भारतीय परंपरा की जो व्याख्या उन्होंने की है, वह विरल है। उन्होंने कहा कि रामभद्राचार्य जी ने अंतः चक्षु से अध्ययन कर समस्त वेदों और शास्त्रों का जो विश्लेषण किया है, वह अद्भुत है। वह 18 घंटे पढ़ाई करतें हैं। इस आयु में ज्ञान के प्रति निरंतर उनकी उत्कंठा, उत्सुकता प्रेरणा देने वाली है। उन्होंने समारोह में वयम पुस्तक का भी लोकार्पण किया और कहा कि वयम शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्मांड का आत्म समाहित है।
स्वामी रामभद्राचार्य ने भगवान श्री राम की महिमा का और जगत में उनकी उपस्थिति का सुंदर और रोचक वर्णन किया। उन्होंने श्रीराम के इस देश में होने से जुड़े 441 प्रामाणिक ग्रंथों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान के स्त्रोत नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय थे। इन्हें बख्तियार खिलजी ने इसलिए जला दिया कि हमारी ज्ञान की संस्कृति मिट जाए। पर भारत राष्ट्र अविचल अपनी अस्मिता बनाए हुए है। रामभद्राचार्य ने कहा कि हमारी सर्वोत्कृष्ट देवी भारत माता है। राष्ट्र में आत्म विसर्जित हो जाता है, केवल हम का भाव रह जाता है। उन्होंने शिक्षा की भारतीय संस्कृति के प्रसार का आह्वान किया।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने बताया कि संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राचीन संस्कृत ज्ञान के अलावा कम्प्यूटर विज्ञान, अर्थशास्त्र, पर्यावरण विज्ञान, इतिहास, राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन और समाजशास्त्र जैसे विषयों पर भी ध्यान केन्द्रित करते हुए इस भाषा को जन—जन तक लोकप्रिय किए जाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के छात्र छात्राओं को स्वर्ण पदक और उपाधियां प्रदान की। उन्होंने सभी को बधाई देते हुए विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की। राज्यपाल मिश्र ने संविधान उद्यान का लोकार्पण भी किया। आरंभ में उन्होंने सभी को संविधान की उद्देशिका का वाचन करवाया और मूल कर्तव्य पढ़कर सुनाए।
(Udaipur Kiran) / संदीप