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प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित करने में हाईकोर्ट ब्लैक लिस्टिंग आदेश की जांच कर सकता है : हाईकोर्ट

Allaabad High Court

प्रयागराज, 26 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते समय न्यायालयों को ब्लैक लिस्टिंग आदेश की जांच करने का अधिकार है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया है।

न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की पीठ ने कहा कि राज्य संस्थाओं को काली सूची में डालने की शक्ति तो दी गई है, लेकिन उन्हें निष्पक्षता और तर्कसंगतता का पालन करना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि “किसी ठेकेदार को काली सूची में डालने का कोई भी सरकारी या सार्वजनिक प्राधिकरण का निर्णय न्यायिक समीक्षा के लिए खुला है, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, विशेष रूप से ऑडी अल्टरम पार्टम और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन सुनिश्चित होता है। इसका मतलब है कि अदालतें ऐसे निर्णयों की जांच कर सकती हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे न्यायसंगत और संतुलित हैं।“

मामले के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के वाणिज्यिक परिचालन के मुख्य महाप्रबंधक द्वारा कैथी कैथी शुल्क प्लाजा चलाने के लिए अपने अनुबंध को समाप्त करने के खिलाफ याची ए के कन्सट्रक्शन कम्पनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसके अलावा याची को को छह महीने की अवधि के लिए पूर्व-योग्य बोलीदाताओं की सूची से बाहर कर दिया गया था।

याची का कहना था कि कारण बताओ नोटिस पूर्व नियोजित मानसिकता के साथ जारी किया गया था और आदेश पारित करते समय याचिकाकर्ता के जवाब पर विचार नहीं किया गया था। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि हर्जाना और साथ ही निषेधाज्ञा लगाना आनुपातिकता के सिद्धांत के खिलाफ है। इसके विपरीत, एनएचएआई के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से कई उल्लंघनों के कारण कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। यह तर्क दिया गया कि स्पष्ट उल्लंघनों के कारण, जुर्माना लगाने के बावजूद अनुबंध को समाप्त करना और ब्लैकलिस्ट करना आवश्यक था।

हाईकोर्ट ने माना कि सामान्य नियम के अनुसार कारण बताओ नोटिस में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। इसका अपवाद तब है जब कारण बताओ नोटिस पूर्व नियोजित मानसिकता के साथ जारी किया जाता है, जिससे आगे की कार्यवाही महज औपचारिकता बन जाती है। यह माना गया कि ऐसे मामलों में आगे की कोई भी जांच या आदेश निष्पक्ष नहीं हो सकता हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण को अपने निष्कर्षों के समर्थन में कारण दर्ज करने चाहिए। कानून के शासन और संवैधानिक शासन के लिए प्रतिबद्ध सभी देशों में चल रही न्यायिक प्रवृत्ति प्रासंगिक तथ्यों के आधार पर तर्कपूर्ण निर्णयों के पक्ष में है। तर्क पर जोर न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता दोनों के लिए एक आवश्यकता है। अपने निर्णयों के समर्थन में कारण ठोस, स्पष्ट और संक्षिप्त होने चाहिए। इसलिए, कानून के विकास के लिए, निर्णय के लिए कारण बताने की आवश्यकता बहुत ज़रूरी है और वस्तुतः यह ’उचित प्रक्रिया’ का एक हिस्सा है।

हाईकोर्ट ने कहा कि मेसर्स कुलजा इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम चीफ जनरल मैनेजर डब्ल्यूटी प्रोजेक्ट बीएसएनएल एवं अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि किसी भी ब्लैकलिस्ट आदेश को पारित करने से पहले सुनवाई का उचित अवसर आवश्यक है। इसके अलावा यह भी माना गया कि यदि ब्लैक लिस्टिंग आदेश मनमानी और भेदभाव से ग्रस्त हैं तो रिट क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप किया जा सकता है। न्यायमूर्ति सराफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राज्य संस्थाओं सहित कोई भी पक्ष अनुबंध प्रदान करने वाले को ठेकेदारों को काली सूची में डालने का अधिकार है। परन्तु कोर्ट ने आगे कहा गया कि न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार है कि ठेकेदार को काली सूची में डालने का निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है या नहीं।

हाईकोर्ट ने माना कि ब्लैक लिस्टिंग का विवादित आदेश याचिकाकर्ता को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में उल्लिखित आधारों पर आधारित नहीं था। इसके अलावा, यह भी पाया गया कि याचिकाकर्ता ने पहले ही जुर्माने के रूप में 8 लाख रुपये जमा कर दिए थे। न्यायालय ने पाया कि ब्लैक लिस्टिंग का आदेश अनावश्यक तरीके से पारित किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के साथ-साथ आनुपातिकता के सिद्धांत का उल्लंघन था, इसलिए इसे रद्द किया जाता है और याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / राजेश

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