जम्मू, 22 जुलाई (Udaipur Kiran) । इतिहास अपने आप में इतना कुछ संजोय हुए है कि जब परत दर परत हम उसे खंगालना शुरू करते है तो कई रहस्य उजागर होते हैं। ऐसा ही एक रहस्य है मां देवी पिंडी। मां देवी पिंडी वो स्थान है जिसे लेकर मान्यता है कि मां वैष्णो देवी वर्ष में नौ मास तक इस स्थान पर तप करती है और तीन माह अपने भवन त्रिकूट पर्वत पर जाकर भक्तों के दुख हरती है। देवी पिंडी स्थान भी त्रिकूट पर्वत के एक छोर पर स्थित है जहां पर जाने का रास्ता काफी दुर्गम व खतरनाक है। इस स्थान पर जाने का मार्ग जम्मू से हाेते हुए पैंथल में है यानि पैंथल तक जाने के लिए आप उधमपुर के मार्ग से पैंथल पहुंच सकते है या फिर कटड़ा के मार्ग से होते हुए पैंथल जा सकते है या फिर जम्मू से ककरयाल स्थित श्री माता वैष्णो देवी नारायणा सुपर स्पैशिलिटी अस्पताल से होते हुए पैंथल पहुंचा जा सकता है और पैंथल से फिर आगे करीब 13 किलोमीटर का मार्ग गाड़ी में तय करते हुए सरवाटिया पहुंचा जा सकता है और सरवाटिया से आगे करीब पांच किलोमीटर का खतरनाक मार्ग जो कि पैदल ही तय करना पड़ता है से होते हुए देवी पिंडी स्थान पर पहुंचा जा सकता है।
देवी पिंडी जिस स्थान पर स्थित है उस गांव का नाम झजर है यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि झजर नामक पर्वतीय नदी का उदय इसी स्थान से हुआ है दो बड़े पत्थरों के बीच से उदय हुई झजर नदी को इसलिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि देवी पिंडी मंदिर के मात्र 200 फीट की दूरी पर ही इस नदी का उदय हुआ है और माना जाता है कि मां वैष्णो देवी ने ही तीर मारकर इसकी जलधारा को पत्थरों से निकाला था। इसका जल शीतल व साफ है। सरवाटियां से देवी पिंडी को आने के लिए आपकों पहले पथरीले पहाड़ से नीचे उतरना है जो कि काफी सावधानी पूर्व की उतरा जा सकता है जबकि आगे का रास्ता पहाड़ के साथ साथ बनाई गई एक छोटी कनाल के पिलंथ पर चलकर तय करना है जबकि इस नदी के एक छौर पर गहरी खाई है ऐसे में जहां पर सावधानी पूर्व की ही चलना पड़ता है। इसके बाद फिर आगे पथरीला पहाड़ चढ़कर देवी पिंडी मंदिर में पहुंचा जा सकता है। रास्ते में भक्तों को थकान तो हो जाती है लेकिन जैसे ही भक्त झजर में नहाते है जो उसका शीतल जल मां की तरह बच्चों की पूरी थकान दूर कर देती है। यहीं कारण है कि जो श्रद्धालु मां के दरबार में जाता है वो झजर में घंटों स्नान का आनंद उठाता है। इस मार्ग पर बच्चों व वृ़द्धों का चलना काफी कठिन है।
देवी पिंडी को लेकर स्थानीय महंतो द्वारा जो दावा किया जाता है उसके अनुसार यह स्थान कब मिला इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है जिन महात्माओं को यह स्थान मिला उनका नाम भी आज कोई नहीं जानता है लेकिन इतना है कि उन महात्मा की समाधि मंदिर परिसर में एक पिल्लर के रूप में विराजमान है। जबकि उनके बाद इस स्थान का जिम्मा संभालने वाले महंत तुलसी दास जी की भी समाधि एक प्रतिमा के रूप में विराजमान है। मंदिर के महंतों का कहना है कि मां वैष्णो देवी इस स्थान पर ठीक उसी प्रकार पिंडी रूप लक्षमी, काली व सरस्वती के रूप में विराजमान है जैसे मां वैष्णो देवी के भवन में विराजमान है। कहते है कि मां वैष्णो देवी ने जब भैरव नाथ का वध किया उसके बाद मां यहां पर आई और नौ मास तक तप किया। आज भी मां इस स्थान पर नौ माह यानि जनवरी से लेकर सितंबर तक तप करती है और अक्तूबर, नवंबर व दिसंबर माह में मां वैष्णो अपने भवन त्रिकूट पर्वत पर जाकर भक्तों का कल्याण करती है बाकी के नौ मास मां इसी स्थान पर वास करते हुए तप में विलीन रहती है। इस स्थान पर मां कत्यायनी की एक गुफा है जिनमें मां कत्यायनी अपनी सखियों संग विराजमान है जबकि मौजूदा समय में गुफा के मुख को अंदर से बंद कर दिया गया है यह गुफा कहां तक जाती है किसी को इसकी जानकारी नहीं है। मौजूदा समय में इस मंदिर की देखरेख महंत तारा गिरी जी करते है। कहते है कि इस स्थान पर जब किसी की मुराद पूरी होती है तो वो मंदिर के नाम कई कई कनाल भूमि दान कर देता और इसी दान की गई भूमि के स्वरूप आज मंदिर के पास 1300 कनाल से अधिक भूमि है। जो कई किलोमीटर तक फैली हुई है। इस मंदिर के निर्माण में आज तक जो भी राशि खर्च की गई है वो महंतों द्वारा ही की गई जबकि सरकार या किसी सरकारी संस्था ने जहां पर कोई सुविधा मुहैया नहीं करवाई है।
इस स्थान को लेकर स्थानीय लोगों द्वारा बनाई गई एक कथा के अनुसार मां कत्यायनी जहां पर अपनी सखियों के साथ खेला करती थी और इसी बीच गांव की कुछ बच्चियां भी मां के साथ खेलने लगी लेकिन मां ने उन बच्चियांे से कहा कि किसी को यह मत बताना तुम यहां पर किसके साथ खेलती हो। लेकिन उन बच्चियों ने गांव वालों को बता दिया और गांव वाले उन बच्चियों को देखने पहुंचे तो यहां पर उन्हें पिंडियां मिली। जबकि एक अन्य कथा जो स्थानीय लोगों द्वारा बताई गई कि इस स्थान पर महंत मोहन गिरी जी ने एक समय में विशाल भंडारे का आयोजन किया। भंडारे में मां का हलवा तैयार किया जाने लगा लेकिन देसी घी समाप्त हो गया। रसोईए ने महंत जी को बताया कि घी नहीं है तक महंत जी ने किसी को पैसे दिए और घी लाने के लिए उधमपुर भेज दिया लेकिन जब घंटो घी न आया तो रसोईया बोला कि भंडारे का समय हो रहा है और अभी तक घी नहीं पहुंचा है ऐसे में महंत जी ने कहा कि चलो मां से ही घी उदार लेते है वो उठे और झजर से दो मटके जल के भरे और कढ़ाई में डाल दिए और कहा कि लो अब बना लो हलवा। रसोईया कुछ समझ न पाया लेकिन उसने देखा कि कढ़ाई में जल के स्थान पर घी है उसने हलवा बनाया और भक्तों को प्रसाद दिया गया तब वो व्यक्ति घी लेकर पहुंचा तो उसने महंत जी को कहा कि अब घी का क्या करना है तो महंत बोले मां को वापिस दे दो। इतना कहकर उन्होंने सारा का सारा घी झजर में डाल दिया और देखते ही देखते वो घी पानी में बदल गया। ऐसी और भी कई कहानियां स्थानीय लोगों के पास है जो कि इस बात को प्रमाणित करते है कि मां वैष्णो देवी यहां पर विराजमान है।
मौजूदा समय में मंदिर कई मूर्तियां स्थापित है जबकि एक विशाल शिवलिंग भी स्थापित किया गया है। मंदिर में एक छोटी गुफा ऐसी है कि उसके बारे में स्थानीय पंडित बताते है कि जब यहां पर बर्फ पड़ती है तो सर्दी बर्दाश्त से बाहर हो जाती है तो वो उस गुफा में आ जाते है यहां पर उन्हें कंबल के बिना ही गर्मी का एहसास होने लगता है। इस समय में मंदिर में एक हजार भक्तों को एक साथ ठहराने की व्यवस्था है और जब भी संक्रांति होती है तो एक दिन पहले ही लोग मंदिर में पहुंच जाते है और अगले दिन विशाल भंडारा होता है जबकि शनिवार व रविवार को भक्तों को संख्या यहां सामान्य दिनों से कहीं अधिक होती है। धीरे धीरे लोगों को इस मंदिर की जानकारी मिल रही है और लोग अब मां वैष्णो देवी के दर्शनों की आस्था मन में लिए यहां पर पहुंच रहे है।
(Udaipur Kiran) / Ashwani Gupta / बलवान सिंह