कानपुर, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) । मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने पांच दिवसीय कृषक प्रशिक्षण के शुक्रवार को शुभारंभ के अवसर पर कहा कि जमीन को परती छोड़ देना, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं कम बारिश तथा अधिक तापमान होने की वजह से भूमि ऊसर बन जाती है। इसके साथ अन्य कारणों से भी भूमि ऊसर बन जाती है।
डॉ. खलील खान चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर में निक्रा परियोजना के तहत ऊसर भूमि सुधार एवं जलवायु अनुकूल फसलों की विभिन्न प्रजातियां विषय पर कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने किसानों को ऊसर एवं ऊसर से प्रभावित भूमि को सुधार कर उसमें खेती करने हेतु जानकारी दी। ऊसर भूमि की पहचान के लिए बताया कि इसमें लवणों की अधिकता होती है, ऐसी भूमि में कृषि उत्पादन कम होता है। ऊसर भूमि बनने के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि जमीन को परती छोड़ देना, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, कम बारिश ज्यादा तापमान, आदि प्रमुख कारण हैं। उन्होंने ऊसर भूमियों को सुधारने के लिए कहा कि ऐसी भूमियों में ढैंचा बुवाई तथा मेड़बंदी और जिप्सम मिक्सिंग का कार्य अवश्य करें।
वरिष्ठ गृह वैज्ञानिक डॉ. मिथिलेश वर्मा ने बताया कि कृषक भाई ऊसर सहनशील विभिन्न फसलों की प्रजातियां को अवश्य बोएं जिससे उन्हें ऊसर भूमि में भी उत्पादन एवं उत्पादकता अधिक प्राप्त हो। उद्यान वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार सिंह ने ऊसर भूमि में बागवानी करने की विधि कृषकों को सिखाए और ऊसर भूमियों में फलदार पेड़ जैसे जामुन, बेल, अमरूद, आंवला, लसोड़ा, शहतूत, नींबू ,करौंदा आदि की बागवानी करने की बात कही। जबकि छायादार पौधे के लिए सहजन, नीम, करंज, महुआ आदि की बागवानी कर अधिक लाभ अर्जित करें।
डॉ. खलील खान ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर पर निक्रा परियोजना अंतर्गत ऊसर भूमि सुधार एवं जलवायु अनुकूल फसलों की विभिन्न प्रजातियां विषय पर पांच दिवसीय 19 से 23 जुलाई तक चलने वाला कृषक प्रशिक्षण शुरू हुआ। कार्यक्रम को शुभम यादव, गौरव शुक्ला एवं भगवान पाल ने विशेष सहयोग प्रदान कर सफ़ल बनाया। कृषक प्रशिक्षण में प्रगतिशील किसान राम अवतार, राम शंकर, सियाराम एवं अशोक कुमार सिंह सहित 25 से अधिक किसानों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / रामबहादुर पाल / पवन कुमार श्रीवास्तव