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आइआइटी मंडी के शोधकर्ताओं ने सौर सेल प्रौद्योगिकियों का व्यापक जीवन चक्र मूल्यांकन किया’

मंडी, 18 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे टिकाऊ और लाभदायक विकल्पों की पहचान करने के लिए पांच सौर सेल प्रौद्योगिकियों का एक व्यापक जीवन चक्र मूल्यांकन (एलसीए) किया है। यह शोध भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप कुशल और पर्यावरण के अनुकूल सौर ऊर्जा प्रणालियों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को संबोधित करता है।

यह अग्रणी अध्ययन, आइआइटी मंडी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अतुल धर और डॉ. सत्वशील रमेश पोवार और डॉ. श्वेता सिंह द्वारा सह-लिखित, प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ पर्यावरण प्रबंधन में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन भारत में सौर प्रौद्योगिकियों के पर्यावरणीय प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए निवेशकों और नीति निर्माताओं के लिए बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अतुल धर ने कहा,‘‘हमारा अध्ययन भारतीय बाजार में प्रमुख सौर पी.वी. प्रौद्योगिकियों का विस्तृत पर्यावरणीय विश्लेषण प्रदान करता है। यद्यपि सौर पी.वी. प्रणालियाँ अपने परिचालन चरण के दौरान जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण के लिए अनुकूल होती हैं, फिर भी विनिर्माण और उपयोग के चरणों के दौरान इनका पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।‘‘

शोधकर्ताओं ने भारतीय विनिर्माण स्थितियों का उपयोग करते हुए पांच सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन किया, जिनमें मोनो सिलिकॉन, पॉलीसिलिकॉन, कॉपर इंडियम गैलियम सेलेनाइड , कैडमियम टेल्यूराइड , निष्क्रिय उत्सर्जक और रियर संपर्क शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन की गई पाँच तकनीकों में से ब्कज्म तकनीक ने पर्यावरण पर सबसे कम प्रभाव डाला। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, ओजोन क्षरण क्षमता, मानव स्वास्थ्य प्रभाव और कण वायु प्रदूषण सबसे कम था। इसके बाद ब सेल का स्थान रहा।

इस शोध के निहितार्थ के बारे में बोलते हुए, आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सत्वशील रमेश पोवार ने कहा,‘‘सौर मॉड्यूल प्रौद्योगिकियों के जीवन चक्र मूल्यांकन से सबसे अधिक टिकाऊ प्रौद्योगिकी की पहचान करने में मदद मिल सकती है जो आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को संतुलित करती है। हमारे निष्कर्ष नीति निर्माताओं को सबसे अधिक टिकाऊ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने, कम कार्बन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और सौर ऊर्जा उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं।‘‘

(Udaipur Kiran)

(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा शुक्ला

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