जम्मू, 16 जुलाई (Udaipur Kiran) । जम्मू कश्मीर में आतंकवाद यहां अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था वहीं, जम्मू संभाग में एक दम से बढ़े आतंकी हमलों ने सुरक्षा एजेंसियों की रातों की नींद उड़ा रखी है। अगर बात बीते 32 माह की करें तो इसमें करीब 48 जवान बलिदान हो चुके है जबकि जम्मू संभाग में बीते तीन माह में करीब आठ आतंकी हमले हो चुके है और इनमें सुरक्षाबलों को भारी क्षति भी पहुंची है। जबकि इनमें वीडीसी सहित 17 जवान बलिदान हो गए जिसमें हालिया डोडा हमला भी शामिल है जिसमें चार जवानों ने शहादत पाई। आतंक के इस नए रूप ने न सिर्फ जम्मू के पयर्टन स्थलों पर सेलानियों की रौनक कम की है जबकि स्थानीय लोगों के मन में भी एक डर का महौल बना दिया। आखिर दो दशाकों के शांत पड़े जम्मू संभाग में एकदम से आतंकी हमले बए़ने के पीछे क्या कारण है। क्या यहां सुरक्षा व्यवस्था की किसी चूक का नतीजा है या फिर आतंकियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।
आज हम सिलसिलेवार डंग से इस पर बात करेंगे कि आतंकियों ने जम्मू संभाग को ही आतंक के लिए क्या चुना। जानकारों की मानें तो कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से आतंकियों का वहां सरवाइव कर पाना मुश्किल हो गया था क्योंकि आतंकियों की सबसे बड़ी ताकत वहां उनका ओजीडब्ल्यु नेटवर्क था जिसे सुरक्षाबलों द्वारा लगातार धवस्त किया जा रहा था और आतंकी सुरक्षाबलों से सीधे भिड़ने की बजाये खुद की मौजूदगी को दिखाने के लिए टारगेट कीलिंग करने लगे जिसमें शिक्षक, जवान, श्रमिक सभी को उन्होंने निशाना बनाया। जबकि यहां भी आतंकियों का सामना सुरक्षबलों से होता वहीं पर उन्हें ढेर कर दिया जा रहा था ऐसे में पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आकांओं ने उन्हें जम्मू संभाग के शांत इलाकों में मूव करने कहा। लेकिन यहां पर जिस प्रकार की रणनीति आतंकियों ने अपनाई वो सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बन गई। क्योंकि यहां पर आतंकियों ने गोरिल्ला वार की रणनीति अपनाई कि घात लगाकर हमला करो और फिर फरार हो जाआंे। इस गोरिल्ला रणनीति में को आतंकी पूरी रैकी करके अंजाम देने लगे। जबकि इसमें स्थानीय लोगों ने भी उनकी मदद की है जो कि बिना उनकी मदद के संभव नहीं है। क्योंकि इन हमलों में आतंकी सिर्फ उन्हीं वाहनों को चुन रहे है जो कि अकेले पैट्रोलिंग पर जा रहे है और इतनी स्टीक जानकारी बिना स्थानीय मदद से आतंकियों को नहीं मिल सकती है।
जानकार तो यह भी मान रहे है कि नब्बे के दशक में जम्मू संभाग से जो युवा पाकिस्तान आतंकी बनने गए और वापिस नहीं लौटे आज वहीं आतंकी जम्मू संभाग में तो सक्रीय नहीं है। क्योंकि यह युवा यहां के पहाड़ी व जंगली रास्तों से भली भांति परिचित भी है और इनका स्थानीय ओजीडब्ल्यु के साथ नेटवर्क भी है। जम्मू संभाग को आतंक के लिए चुनने की एक वजह यह भी है कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव है और चुनावों में आतंकी खलल डालकर दुनियां को यह संदेश देना चाहते है कि जम्मू कश्मीर के लोग आज भी आजादी की लड़ाई लड़ रहे है जबकि यह बात हकीकत से कौसो दूर है क्योंकि अभी तक जिनते भी आतंकी सुरक्षबलों द्वारा मार गिराये गए है उनके विदेशी आतंकी अधिक थे। लेकिन आतंक के नए संगठन बनाकर पाकिस्तान समर्थित यह आतंकी दुनियां को यह संदेश देना चाहते है कि कश्मीर के साथ जम्मू संभाग भी आजादी की आग में कूद चुका है।
आपकों बता दें कि जम्मू संभाग में आतंकियों का सबसे बड़ा सहारा घने जंगल बन रहे है। जबकि आतंकियों ने सुरक्षाबलों को गुमराह करने के लिए अब नई रणनीति अपनाई है वो सुरक्षाबलों को बांट कर उनकी ताकत को कम करने का प्रयास में है। क्योंकि एक तरफ यहां अखनूर से लेकर रियासी तक सुरक्षाबलों द्वारा कासो चलाया जा रहा है वहीं डोडा में भी सुरक्षाबल आतंकियों की तालाश कर रहे है जबकि राजौरी पुंछ तो पहले से ही सुरक्षाबलों ने कब्जे में ले रखा जबकि कठुआ के मछेड़ी से लेकर बसंतगढ़ तक का इलाका भी सुरक्षाबलों द्वारा खंगाला जा रहा है इन सब क्षेत्रों में रह रह संदिग्ध देखे जाने की खबरे सामने आ रही है जबकि इन सब क्षेत्रों को सुरक्षाबल लगातार खंगाल भी रहे है। यह वो क्षेत्र है यहां पर आतंकियों ने गोरिल्ला वार की नीति अपनाई है। यानि जम्मू संभाग में हर तरफ आतंकी घटनाये होने लगी है। क्योंकि बीती 28 अप्रैल को उधमपुर के बसंतगढ़ में आतंकी हमला हुआ, 4 मई को पुंछ के सूरनकोट में तो 5 मई को राजौरी के कांडी में आतंकी हमला हुआ, 9 जून को रियासी में श्रद्धालुओं पर तो 11 जून को कठुआ के हीरानगर में तो 8 जुलाई को कठुआ के मछेडी में और 15 जुलाई को डोडा में आतंकी हमला हुआ। अब सवाल यह है कि आतंकियों की इस नई रणनीति पर सुरक्षा एजेंसियां किस प्रकार से काम करेगी क्योंकि अभी तक इन हमलों में हमने सिर्फ अपनों को खोया है लेकिन आतंकियों का सुराग लगाने में अभी सुरक्षा एजेंसियां सफल नहीं हो पाई है। हालांकि ड्रोन, चापर से लेकर सभी प्रकार के आधुनिक उपकरणों का सुरक्षाबल प्रयोग कर रहे है पर अभी तक घात लगाकर हमला करने वाले आतंकियों का सुराग नहीं लग पाया है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों की चिंता ओर बढ़ गई है क्योंकि पाक से आया जब तक एक भी आतंकी जिंदा है तब तक कहा पर क्या हो जाएं कोई कुछ नहीं कह सकता है। ऐसे में अब सुरक्षा जवानों को कोई नई रणनीति बनाकर इन आतंकियों से लोहा लेना होगा।
(Udaipur Kiran) / Ashwani Gupta / बलवान सिंह