कानपुर, 15 जुलाई (Udaipur Kiran) । फसल उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ मिट्टी की सेहत का भी ख्याल रखना जरुरी है। ऐसे में हरी खाद का अधिक प्रयोग करना चाहिये और इसके लिए ढैचा की फसल मुफीद है। ढैचा की फसल को बुवाई के 40 से 45 दिनों पर खेत में पलट देना चाहिए। जिससे मिट्टी को अधिक मात्रा में जीवांश पदार्थ मिल जाता है। ढैचा की हरी खाद से मिट्टी में सूक्ष्म जीवाणुओं की भी संख्या बढ़ती हैं। इसके साथ ही आगामी फसल को सभी पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं। यह बातें सोमवार को मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने कही।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर के जरिये सोमवार को ग्राम औरंगाबाद में निकरा योजना अंतर्गत ढैचा फसल जो हरी खाद के लिए उपयुक्त है उस विषय पर एक दिवसीय प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया। मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि ढैचा की पत्तियों का पीएच मान 4.5 होता है। इसलिए ऊसर भूमियों में ढैचा की हरी खाद करने से ऊसर भूमि सामान्य भूमि में परिवर्तित होने लगती है। जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार होता है।
उन्होंने बताया कि ढैचा की जड़ों में सूक्ष्म पीली गांठे होती हैं। जिसमें राइजोबियम जीवाणु होता है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को एकत्रित कर मिट्टी में मिला देता है। उन्होंने कहा कि एक शोध के अनुसार ढैचा की हरी खाद से 22 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ मिट्टी को प्राप्त होता है। इससे भूमि की संरचना भी सुधरती है तथा रासायनिक उर्वरकों पर किसानों का धन व्यय भी काम होता है। इस अवसर पर एसआरएफ शुभम यादव, प्रगतिशील कृषक चरण सिंह, रामबाबू, सुनील कुमार, शिव शंकर एवं जयकुमार सहित अन्य कृषक उपस्थित रहे।
(Udaipur Kiran) / अजय सिंह / मोहित वर्मा