जम्मू, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सुंगल रोड़ अखनूर, जम्मू में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि दुनिया सुमिरन को नहीं जानती है। साहिब कह रहे हैं कि जप, तप, संयम, साधना सब सुमिरन में आ जाते हैं। जैसे बच्चा पैसे का महत्व नहीं जानता है। बड़े जानते हैं। इस तरह संतजन सुमिरन का महत्व जानते हैं। हर इंसान सुख की तलाश कर रहा है। यह सच्चा सुख सुमिरन से मिलता है। जैसे प्यास मिटाने की उपयुक्त साधन केवल जल है। कोई शरबत नहीं है। कोई जूस नहीं है। कोई और साधन नहीं है। बाकी को चबाने के लिए अन्य साधन चाहिए। लेकिन जल को नहीं चाहिए। प्यास की तृप्ति केवल जल से हो सकती है। अँधेरे को मिटाने का साधन प्रकाश है।
यह अलग बात है कि आप प्रकाश का सृजन कैसे करते हैं। साहिब कह रहे हैं कि जो सुख सुमिरन में है, वो अमीरी में भी नहीं है। भाई, अमीरी में क्या सुख है। अच्छा घर मिल जाता है। वो त्वचा का सुख है। अच्छा भोजन मिल जाता है। वो जीभ का सुख है। अच्छी कई वस्तुएँ मिल जाती हैं। इन सब चीजों का आत्मा से कोई संबंध नहीं है। सुमिरन से आत्मानन्द प्राप्त होता है। हम सबमें इच्छा है कि प्रभु को पाएँ। प्रभु में समाहित होने का एक ही साधन है सुमिरन। रामायण में भी सुमिरन का महात्म है। इंसान दुनिया में विषयों का आनन्द ढूँढ़ रहा है। विषय आनन्द का मतलब है इंद्रियों का सुख। कान का विषय है- शब्द। मुख का विषय है-स्वाद। त्वचा का विषय है-कोमल स्पर्श। ये सब रूई लपेटी आग की तरह सुख हैं। इन सुखों के पीछे विशाल दुखों का पहाड़ खड़ा है। आत्मानन्द विषय आनन्द से परे है।
आत्मा में आनन्द आया कहाँ से। आत्मा की वृत्ति है। जल में शीतलता कहाँ से आई। यह उसकी वृत्ति है। कितना भी गर्म करो फिर ठंडा हो जायेगा। इस तरह आत्मा में आनन्द है। आत्मा आनन्दमय क्यों है। क्योंकि यह ईश्वर का अंश है। यह आनन्द आत्मा में है ही है। कहीं से आनन्द लाना नहीं है। मुख का आनन्द पाने के लिए स्वादिष्ट चीजें खाने पड़ती हैं। नासिका में आनन्द नहीं है। उसका आनन्द लेने के लिए खुशबू चाहिए। पर आत्मा का आनन्द लेने के लिए कुछ नहीं चाहिए। आँखों का आनन्द लेने के लिए सुंदर दृश्य चाहिए। पर परमात्मा का अंश होने के कारण आत्मा में आनन्द के अखंड खजाने भरे पड़े हैं।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा / बलवान सिंह