मुंबई, 16 अप्रैल (हि.सं.)। बांबे हाई कोर्ट ने आर्थर रोड जेल की एक बैरक में क्षमता से अधिक कैदियों को बंद रखने पर आपत्ति जताई है। कोर्ट ने कहा कि आर्थर रोड जेल में एक बैरक की क्षमता 50 कैदियों को रखने की है, लेकिन वास्तव में वहां 220 से 250 कैदियों को रखा जा रहा है।
न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने हाल ही में बलात्कार के एक आरोपी को जमानत दी, जो पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद था। आरोपी की जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए अदालत ने जेल में क्षमता से अधिक कैदियों को रखने पर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि बिना सुनवाई के लंबे समय तक कारावास में रहने से परिस्थितियां बदल जाती हैं और आरोपी को जमानत मांगने का अधिकार मिल जाता है। अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों पर प्रकाश डाला। बिना सुनवाई के पांच वर्ष, एक महीने और 11 दिन का कारावास संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता के शीघ्र सुनवाई और निपटान के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। आरोपी अभिषेक कुमार सिंह की जमानत याचिका मंजूर करते हुए अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह लंबे समय तक कारावास में रहने और मुकदमे में देरी के कारण याचिकाकर्ता को जमानत दे रही है।
इससे पहले सरकारी अभियोजक और शिकायतकर्ता के वकील ने याचिकाकर्ता की जमानत का विरोध करते हुए दावा किया कि जेल में रहने से उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। इसके अलावा मामले में पिछले आदेशों का हवाला देते हुए उन्होंने अदालत को यह समझाने का प्रयास किया कि याचिकाकर्ता का आचरण मामले के लंबित रहने के लिए जिम्मेदार है और याचिकाकर्ता के वकील हाल की दो सुनवाइयों में अनुपस्थित रहे। हालांकि याचिकाकर्ता के वकीलों ने सत्र न्यायालय में मामले की सुनवाई के एजेंडे का विवरण अदालत को सौंपा। अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि याचिकाकर्ता 70 में से 68 सुनवाइयों में अदालत में उपस्थित नहीं था और इस कारण मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पांच साल से अधिक समय से जेल में है और उसके खिलाफ अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। इसलिए बिना सुनवाई के लंबे समय तक कारावास में रहना, प्रतिदिन जेल में सजा काटने के बराबर है।
याचिकाकर्ता को बलात्कार, जबरन वसूली, धोखाधड़ी और साइबर अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वह 27 फरवरी 2020 से जेल में था। याचिकाकर्ता ने इससे पहले 2020 में जमानत के लिए आवेदन किया था। हालांकि बाद में उसने इसे वापस ले लिया था। फिर 2021 में उसने फिर से जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2023 में इस फैसले को बरकरार रखा। पिछले साल याचिकाकर्ता ने फिर से सेशन कोर्ट में जमानत की अर्जी दी थी। उसने दावा किया था कि वह बिना किसी सुनवाई के लंबे समय से जेल में हैं। लेकिन सत्र अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। इसलिए याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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(Udaipur Kiran) / वी कुमार
