जयपुर, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । विधानसभा की सात सीटों पर होने वाले उपचुनावों में बुधवार को नाम वापसी के आखिरी दिन उम्मीदवारों को लेकर तस्वीर साफ हो गई है। छह सीटों पर 15 उम्मीदवारों ने नाम वापस लिए हैं। झुंझुनूं से पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा और उनकी पत्नी निशा कंवर निर्दलीय आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं। गुढ़ा की पत्नी ने नाम वापस नहीं लिया। वहीं, झुंझुनूं से पूर्व आईएएस अशफाक हुसैन ने नाम वापस ले लिया। देवली-उनियारा से कांग्रेस के बागी नरेश मीणा को पार्टी नहीं मना पाई और नरेश मीणा चुनाव मैदान में डटे हैं, उन्होंने नाम वापस नहीं लिया। नाम वापसी के बाद सात सीटों पर उम्मीदवारों की स्थिति साफ हो गई है। सात में से पांच सीटों चौरासी, देवली-उनियारा, झुंझुनूं, खींवसर और देवली-उनियारा पर त्रिकोणीय मुकाबला है।
बीएपी के प्रभाव वाली चौरासी सीट कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई है। इस सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी(बीएपी) कांग्रेस और बीजेपी के लिए खतरा बन गई है। यहां बीएपी उम्मीदवार अनिल कटारा, बीजेपी से कारीलाल ननोमा और कांग्रेस उम्मीदवार महेश रोत के बीच मुकाबला है। 2023 के चुनावों में यहां राजकुमार रोत करीब 70 हजार के अंतराल से जीते थे। यही अंतर कांग्रेस-बीजेपी के लिए मुश्किल बना हुआ है। बीजेपी ने सुशील कटारा का टिकट काटकर नया चेहरा मैदान में उतारा है। पूर्व विधायक देवेंद्र कटारा को भी वापस पार्टी में शामिल करके बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया है। सलूंबर सीट पर किसी उम्मीदवार ने नाम वापस नहीं लिया है। इस सीट पर बीजेपी, कांग्रेस और बीएपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। बीएपी उम्मीदवार ने यहां भी बीजेपी-कांग्रेस की चिंताएं बढ़ा दी हैं, क्योंकि पिछली बार दूसरे नंबर पर रही बीएपी अपनी ताकत बढ़ा रही है। इस सीट पर बीजेपी से दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी शांता मीणा, कांग्रेस से रेशमा मीणा और बीएपी से जितेश कटारा उम्मीदवार हैं। बीजेपी ने यहां शुरुआती नाराजगी को थाम लिया है। कांग्रेस में कोई बागी खड़ा नहीं हुआ लेकिन वरिष्ठ नेता और पिछले चुनावों में उम्मीदवार रहे रघुवीर मीणा नाराज हैं। कांग्रेस उम्मीदवार रेशमा मीणा 2018 में बागी लड़ चुकी हैं, रघुवीर मीणा उन्हें चुनाव हरवाने का जिम्मेदार मानते हैं। रघुवीर मीणा नामांकन तक में नहीं गए थे, उनकी नाराजगी बरकरार है।
देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस अपने बागी नरेश मीणा को नहीं मना पाई। नरेश मीणा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बागी होकर मैदान में हैं। यहां बीजेपी से पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर और कांग्रेस से नए चेहरे कस्तूरचंद के बीच मुकाबला है। नरेश मीणा के मैदान में डटे रहने से कांग्रेस के समीकरण बिगड़ रहे हैं। बीजेपी में यहां कोई बागी नहीं है, लेकिन पिछले चुनावों में उम्मीदवार रहे विजय बैंसला और उनके समर्थक नाराज हैं। कांग्रेस में दावेदार पूर्व केंद्रीय मंत्री नमो नारायण मीणा भी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। इस सीट पर दोनों दलों में ही अंदरूनी नाराजगी है।
मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा के बीजेपी उम्मीदवार बनने से दौसा हॉट सीट बन चुकी है। इस सीट पर कांग्रेस से दीनदयाल बैरवा मुकाबले में हैं। सचिन पायलट समर्थक मुरारीलाल मीणा के सासंद बनने की वजह से खाली हुई इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी की अंदरूनी सियासत भी जुड़ी हुई है। इस सीट पर जो भी रिजल्ट होगा, उसका सचिन पायलट और मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के सियासी कद और पर्सेप्शन पर असर पड़ेगा।कांग्रेस और बीजेपी में यहां किसी ने बगावत नहीं की है, लेकिन अंदरूनी नाराजगी दोनों तरफ है। सांसद मुरारीलाल मीणा और मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के बीच फ्रैंडली मैच की सियासी चर्चाओं से यहां अलग समीकरण बन रहे हैं। पूर्व सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस उम्मीदवार की नामांकन सभा में सियासी मैच फिक्सिंग की बात का इशारा करके बहुत कुछ संकेत दे चुके हैं।
झुंझुनू में इस बार ओला परिवार की सियासी प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस से सासंद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला, बीजेपी उम्मीदवार राजेंद्र भांबू के बीच पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने निर्दलीय खड़े होकर चुनाव को रोचक बना दिया है। गुढ़ा कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम और दलित वोटर्स को अपनी तरफ करने के लिए लगे हैं, इस वोट बैंक में सेंध से कांग्रेस के समीकरण बिगड़ रहे हैं। पूर्व आईएएस अशफाक हुसैन के नामांकन वापस लेने से अब मुस्लिम वोटर्स में बंटवारे की गुंजाइश कम हो गई है। इस बार उपचुनाव में मुकाबला कड़ा होने की संभावना है। झुंझुनूं में कांग्रेस-बीजेपी में किसी ने बगावत नहीं की है। बीजेपी में टिकट कटने से नाराज बबलू चौधरी को मना लिया है। कांग्रेस में किसी ने बागी पर्चा दाखिल नहीं किया था, लेकिन इस बार ओला विरोधी सक्रिय है। राजेंद्र गुढ़ा और उनकी पत्नी निशा कंवर दोनों का चुनाव लड़ना भी सीट पर चर्चा का विषय बना हुआ है। रामगढ़ सीट पर कांग्रेस के दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबेर और बीजेपी उम्मीदवार सुखवंत सिंह के बीच सीधा मुकाबला है। बीजेपी ने नाराज पिछले उम्मीदवार जय आहूजा और दूसरे नेताओं को मनाकर डैमेज कंट्रोल कर लिया है। कांग्रेस में खुलकर किसी ने नाराजगी नहीं जताई थी। कांग्रेस ने दिवंगत विधायक के बेटे को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड चला, बीजेपी इस सीट पर धार्मिक गोलबंदी का फायदा उठाने की रणनीति अपना रही है। इस इलाके में पहले भी धार्मिक गोलबंदी होती रही है। इस सीट पर कांग्रेस के सहानुभूति कार्ड और बीजेपी की धार्मिक गोलबंदी के बीच मुकाबला होना है।
खींवसर में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। आरएलपी से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, बीजेपी से रेवंतराम डांगा और कांग्रेस से डॉ. रतन चौधरी उम्मीदवार हैं। बीजेपी के अलावा आरएलपी, कांग्रेस ने नए चेहरों को उतारा हैं। खींवसर में इस बार का उपचुनाव आरएलपी के अस्तित्व से जुड़ा है। 2023 के विधानसभा चुनाव मेंआरएलपी से हनुमान बेनीवाल ही अकेले विधायक जीते थे, बेनीवाल के सासंद बनने के बाद अब आरएलपी का एक भी विधायक नहीं रहा। अगर आरएलपी यह उपचुनाव नहीं जीती तो विधानसभा में उसका एक भी विधायक नहीं रहेगा। बेनीवाल ने कुछ दिन पहले बयान भी दिया था कि खींवसर हारे तो लिखा जाएगा कि आरएलपी मिट गई।
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(Udaipur Kiran) / रोहित