Gujarat

फर्जी कोर्ट मामले में आरोपित का 11 दिन का रिमांड मंजूर

फर्जी कोर्ट के जज मामले में आरोपित मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन को कोर्ट ले जाती पुलिस।

-आरोपित नकली जज ने लगाया पुलिस पर मारपीट करने का आरोप

अहमदाबाद, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) ।गांधीनगर से पकड़े गए ऑर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) नकली जज मॉरिस सैमुअल क्रिश्चियन को बुधवार को अहमदाबाद के मेट्रो कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने आरोपित को 11 दिन के रिमांड पर भेज दिया है। पुलिस ने 14 दिन की रिमांड की मांग की थी। जबकि कोर्ट ने 3 नवंबर सुबह 11 बजे तक के लिए रिमांड की मंजूरी दी है। दूसरी ओर आरोपित मॉरिस को मंगलवार को भी कोर्ट में पेश किया गया था। आरोपित के वकील ने अपने मुवक्किल के साथ मारपीट की शिकायत की थी। इसके अनुसार पीआई ने आरोपित की पसलियों में लात मारी। आरोपित मोरिस के वकील ने मेट्रो कोर्ट के जज को उसकी चोटें दिखाई।

आरोपित मोरिस के वकील ने कोर्ट को बताया कि मेडिकल ऑफिसर की जांच में केवल नाखून की चोट दिखाना भेदभावपूर्ण है। आरोपी के पास डिग्री है और वह हिरासत में जांच में सहयोग करने को तैयार है। ऐसे में सिंघम बने पुलिस अधिकारी मोरिस को हिरासत के दौरान पीट नहीं सकते। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के 42 घंटे बाद भी पुलिस केस डायरी पेश नहीं कर सकी है।

मोरिस के वकीलों की दलील पर कारंज पुलिस थाने के पीआई चौधरी ने इस पर एतराज जताया। चौधरी ने कोर्ट से कहा कि मारपीट की बात सही नहीं है। पीआई ने कहा कि आरोपित खुद को जज बताते हुए जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। आरोपी मोरिस और उसके वकील द्वारा जांच अधिकारी पर ही दबाव बनाया जा रहा है।

फर्जी ट्रिब्यूनल का खुद बन बैठा था जज

मामले में मॉरिस सैमुअल नामक व्यक्ति गांधीनगर में बने अपने ऑफिस में फर्जी ट्रिब्यूनल बना रखा था। इसका वह जज बनकर ऑफिस में असली अदालत जैसा माहौल बनाते हुए फैसले भी सुनाता था। जांच में पता चला है कि बतौर ऑर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) नकली जज मॉरिस ने करोड़ों रुपए की करीब 100 एकड़ सरकारी जमीन अपने नाम कर ऑर्डर पारित किए। आरोप के अनुसार यह फर्जी कोर्ट पिछले पांच साल से चल रहा था। अहमदाबाद पुलिस ने मॉरिस को नकली जज बनकर लोगों को धोखा देने के आरोप में गिरफ्तार किया है। जानकारी के अनुसार मॉरिस उन लोगों को फंसाता था, जिनके जमीनी विवाद के केस शहर के सिविल कोर्ट में पेंडिंग थे। वह अपने मुवक्किलों से उनके मामले को सुलझाने के लिए फीस के तौर पर कुछ पैसा लेता था। मॉरिस खुद को कोर्ट से नियुक्त किया गया आधिकारिक मध्यस्थ बताता था। वह अपने मुवक्किलों को गांधीनगर के अपने ऑफिस में बुलाता था, जिसे अदालत की तरह रंग-रूप दिया गया था। मॉरिस केस से जुड़ी दलीलें सुनता और ट्रिब्यूनल के अधिकारी के रूप में आदेश पारित करता था। इतना ही नहीं, उसके साथी अदालत के कर्मचारी या वकील के रूप में खड़े होकर यह दिखाते थे कि कार्रवाई असली है। इस तरकीब से आरोपी मॉरिस 11 से ज्यादा मामलों में अपने पक्ष में ऑर्डर पारित कर चुका था।

इस तरह पकड़ा गया आरोपित मोरिस

2019 में आरोपी ने इसी तरह अपने मुवक्किल के पक्ष में एक आदेश पारित किया था। मामला जिला कलेक्टर के अधीन एक सरकारी जमीन से जुड़ा था। उसके मुवक्किल ने इस पर दावा किया और पालडी इलाके की जमीन के लिए सरकारी दस्तावेजों में अपना नाम दर्ज करवाने की कोशिश की। मॉरिस ने कहा कि उसे सरकार ने मध्यस्थ बनाया है। इसके बाद आरोपित ने फर्जी अदालती कार्रवाई शुरू की। अपने मुवक्किल के पक्ष में एक आदेश दिया, जिसमें कलक्टर को उस जमीन के दस्तावेजों में मुवक्किल का नाम दर्ज करने का निर्देश दिया गया। आदेश को लागू करने के लिए मॉरिस ने दूसरे वकील के जरिए सिविल कोर्ट में अपील की। इसमें वही आदेश अटैच किया जो उसने जारी किया था। लेकिन, कोर्ट के रजिस्ट्रार हार्दिक देसाई को पता चला कि न तो मॉरिस मध्यस्थ है और न ही न्यायाधिकरण का आदेश असली है। उन्होंने करंज पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद आरोपित नकली जज के खिलाफ कार्रवाई की गई और उसकी फर्जी अदालत का भंडाफोड़ किया गया।

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(Udaipur Kiran) / बिनोद पाण्डेय

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