HEADLINES

 पाकिस्तान बनने का विरोध करने वाले स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल कयूम अंसारी की 52 वी पुण्य तिथि आज

स्व अब्दुल क्यूम अंसारी
क्रिप्स मिशन के प्रतिनिधियों से वार्ता करते स्व अंसारी बाएं से दूसरे

डेहरी आन सोन,17 जनवरी (Udaipur Kiran) भारत की जंगे-आजादी में दमखम के साथ भाग लेने, जिन्ना के दो कौमी नजरिया (द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत) की खुलकर विरोध करने और मुसलमानों में सामाजिक बराबरी की लड़ाई लड़ने वाले अब्दुल क्यूम अंसारी का जन्म एक जुलाई 1905 को बिहार के डेहरी- आन-सोन में मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका निधन नासरीगंज प्रखंड के अमियावर में नहर कटाव से प्रभावित परिवार से मिलने के क्रम में 18 जनवरी 1973 को हृदयगति रुकने से हुआ था।

मजहब की बुनियाद पर मुल्क के बंटवारे का विरोध करने वाले अब्दुल क्यूम अंसारी कहते थे कि हमारा मजहब जुदा-जुदा हो सकता है, लेकिन कौम (राष्ट्र) एक है। हम हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई हों, सभी एक कौम (भारत) के हैं। आजादी की जंग के दौर में अब्दुल क्यूम अंसारी ने अपनी कर्मठता के बल पर देश के चंद दिग्गज मुस्लिम नेताओं में स्थान कायम कर लिया था। जिन्ना के वक्त में तो इनका नाम पूरे देश के अब्दुल गफ्फार खान और मौलाना हुसैन मदनी के बाद लिया जाता था।

इनके तत्कालीन महत्व का अंदाजा इस ऐतिहासिक तथ्य से लगता है कि ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि स्टोफोट क्रिप्स ने इलाहाबाद के आनंद भवन में इनसे वार्ता की थी। वह महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू से जिन्ना को मुसलमानों का सर्वस्वीकृत या बहुस्वीकृति नेता नहीं मानने का संघर्ष भी करते रहे थे।

उनकी आवाज नहीं सुनी गई तो उन्होंने मोमिन कांफ्रेंस नाम से सियासी पार्टी बनाई और बिहार में 1946 का चुनाव लड़ा। अब्दुल कय्यूम अंसारी सहित छह मोमिन कांफ्रेंस उम्मीदवार चुनाव जीते।

बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बाबू के नेतृत्व में बिहार सरकार बनी और कय्यूम अंसारी साहब उसमें कैबिनेट मंत्री भी बने। कोलकाता में बिहारी मुसलमानों द्वारा स्थापित मोमिन कांफ्रेंस हिंदू और मुस्लिम दोनों राष्ट्रवादों को खारिज करती थी। मोमिन कांफ्रेंस राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रेरित थी।

वे पसमांदा आंदोलन के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक माने जाते हैं। वह पसमांदा मुसलमानों के रहनुमा तो थे ही, दूसरे धर्म के पिछड़-दलित तबकों के भी सम्मानित नेता थे।

पुराने शाहाबाद जिला में त्रिवेणी संघ की गतिविधियों में उन्होंने हिस्सा लिया था। बिहार में बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन की स्थापना करने वाले नेताओं में वह अग्रणी थे। बिहार में पसमांदा आंदोलन की शुरूआत मोमिन कांफ्रेंस के दौर से ही मानी जाती है। पसमांदा वे पिछड़े (शूद्र, दलित, अति शूद्र) हैं, जिनके पूर्वजों ने सदियों पहले जातिगत अत्याचार से मुक्ति के लिए इस्लाम अपनाया था। अपनी पुस्तक (मुस्लिम पालिटिक्स इन बिहार, 2014) में इतिहासकार मोहम्मद सज्जाद ने लिखा है कि अब्दुल क्यूम अंसारी 1940 के दशक की शुरूआत में बिहार की राजनीति में तेजी से उभरे। वह बिहार राज्य जमायत-उल-मोमिनीन के अध्यक्ष थे। बिहार के सासाराम में अली बंधुओं के संपर्क में आने के बाद उन्होंने खिलाफत आंदोलन के जरिए स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया। 1930 और 1940 के दशक में उन्होंने मुस्लिम लीग और द्विराष्ट्र सिद्धांत का जबरदस्त विरोध किया।

देश की स्वतंत्रता के बाद भी वह बिहार की कांग्रेस सरकारों (1946-52, 1955-57 व 1962-67) में मंत्री रहे। वे बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, कांग्रेस राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य और राज्यसभा के सदस्य (1970-72) भी रहे। अब्दुल क्यूम अंसारी मुल्क की एकता के लिए अंतिम दम (18 जनवरी 1973) तक लड़ते रहे।

उनके पोते तनवीर अंसारी ने (Udaipur Kiran) से बातचीत में बताया कि आज इस बात कि जानकारी बेहद कम लोगों को है कि अब्दुल क्यूम अंसारी ने अपने सार्वजनिक जीवन के सर्जनात्मक सफर की शुरुआत सासाराम से पत्रिका (हुस्न-इश्क) के 1924 के प्रकाशन से की थी और 1925 में डेहरी-आन-सोन में पहला छापाखाना स्थापित कर मासिक पत्रिका (अल इस्लाह) का प्रकाशन शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने पटना के कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन-संपादन किया था।

(Udaipur Kiran) / उपेन्द्र मिश्रा

Most Popular

To Top