Chhattisgarh

 धमतरी में  खेतों में पराली जलाने पर नहीं लग पा रही रोक

शहर से लगे हुए ग्राम खरेंगा के खेत में इस तरह पराली जला रहे किसान।

धमतरी, 27 दिसंबर (Udaipur Kiran) ।एनजीटी के तहत खेतों में पड़े पराली को आग के हवाले करना कानूनन अपराध है। इसके बाद भी किसान आग लगा रहे है। इससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता तो घटती है साथ ही पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है। इससे निकलने वाला धुआं वायुमंडल में जाकर मिल जाता है। इससे ग्लोबल वार्मिग ग्राफ बढ़ता है। कार्बनडाई आक्साइड की मात्रा बढ़ने से तापमान में वृद्धि होती है। प्रशासन द्वारा मनाही के बाद भी पराली जलाने पर रोक नहीं लग पा रही है।

प्रशासन द्वारा लगातार प्रचार-प्रसार किए जाने के बाद भी फसल अवशेष जलाया जा रहा है। जबकि प्रशासन ने पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए खेतों में धान की पराली जलाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा रखा है।

जानकारी के अनुसार धमतरी शहर से लगे हुए ग्राम खरेंगा, श्यामतराई, लोहरसी, नवागांव, बेंद्रनवागांव, तरसींवा, कोलियारी, करेठा, अर्जुनी, तेलीनसत्ती, देमार, शंकरदाह, अछोटा, कलारतराई, दर्री, भटगांव, सोरम, मुजगहन, पोटियाडीह, आमदी सहित अन्य गांव के किसान पराली जला रहे हैं। पराली जलाने वाले ऐसे किसानों पर अब सीधे 15 हजार रुपये तक अर्थदंड लिया जाएगा। फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाऊस प्रभाव पैदा करने वाली हानिकारक गैस जैसे कि मीथेन, कार्बन मोनोअक्साईड, नाइट्रस आक्साईड तथा नाइट्रोजन के अन्य आक्साईड का उत्सर्जन होता है। बायोमास जलाने से उत्सर्जित होने वाले धुएं में फेफड़ों की बीमारी को बढ़ाने वाले तथा कैंसर उद्दीपक विभिन्न ज्ञात तथा संभावित प्रदूषक भी होते हैं। फसल अवशेष जलाने से मृदा की सर्वाधिक सक्रिय 15 से.मी. तक की पर में से सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्मजीवियों का नाश हो जाता है, फलस्वरूप फसल, विशेषकर जड़ की वृद्धि प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है। फसल अवशेष जलाने से केंचुएँ, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाने से हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता, फलस्वरूप मजबूरन महंगे तथा जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है। अनुमानतः एक टन धान के पैरे को जलाने से 5.5 कि.ग्रा. नाईट्रोजन, 2.3 कि.ग्रा फास्फोरस 25 कि.ग्रा. पौटेशियम तथा 1.2 कि.ग्रा. सल्फर नष्ट हो जाता है। सामान्य तौर पर भी फसल अवशेषों में कुल फसल का 80 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 50 प्रतिशत सल्फर व 20 प्रतिशत पोटाश होता है। इनका उचित प्रबंधन कास्त लागत में पर्याप्त कमी कर सकता है।

जिला प्रशासन एवं कृषि वैज्ञानिकों ने कृषकों को सलाह दी है कि फसल कटाई उपरांत खेत में पड़े हुए फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई, पानी का छिड़काव करने के पश्चात् ट्राईकोडर्मा का भुरकाव करने से फसल अवशेष 15 से 20 दिन पश्चात् कंपोस्ट में परिवर्तित हो जाएंगे, जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म तत्व प्राप्त होंगे। फसल अवशेष को कम्पोस्ट में परिवर्तित होने की गति बढ़ाने के लिए सिंचाई उपरांत यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता है। फसल अवशेष के कंपोस्ट में परिवर्तित होने से जीवांश की मात्रा मृदा में बढ़ जाती है, जिससे मृदा की जलधारण क्षमता तथा लाभदायक सूक्ष्म जीवों-सूक्ष्म तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जो रासायनिक उर्वरकों के उपयोग क्षमता को बढ़ा देती है। ऐसा करने से कम रासायनिक उर्वरक डालकर अधिक पैदावार ली जा सकती है। इस संबंध में धमतरी कलेक्टर नम्रता गांधी ने कहा कि खेतों में पराली नहीं जलाने के लिए किसानों को लगातार प्ररेरित किया जा रहा है। पराली जलाने पर दंड का भी प्रावधान है।

—————

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

Most Popular

To Top