HimachalPradesh

 दीनदयाल के विचारों के साथ ही भारतीय ज्ञान परम्परा पर भी गहन शोध करें छात्र : प्रो. छीपा

केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यान में मौजूद वक्ता व अन्य।

धर्मशाला, 23 दिसंबर (Udaipur Kiran) ।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय अध्ययन केंद्र द्वारा मासिक व्याख्यान माला के अंतर्गत सोमवार को भारत की सनातन ज्ञान परम्परा का विश्व संस्कृति के लिए अवदान विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस मौके पर मुख्य वक्ता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति न्यास के संरक्षक प्रो. मोहन लाल छीपा ने समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि विदेशी हमलों व परतंत्रता से पूर्व भारत बहुत समृद्ध शाली राष्ट्र के रूप पुरी दुनिया में जाना जाता था। भारत के वेदों मे दुनिया के सब विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा व मानव जीवन के सब आयामों का न केवल वर्णन मिलता है बल्कि उनका व्यवहारिक उपयोग करके मनुष्य कैसे समृद्ध हो सकता है, इसकी भी विस्तृत व्याख्या मिलती है।

उन्होंने बताया कि विश्व के प्रसिद्ध आर्थिक इतिहासकार अंगस मेडिसन ने अपने विश्व के आर्थिक इतिहास से संबंधित पुस्तक में लिखा है कि पहली शताब्दी में भारत का विश्व व्यापार में लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा हुआ करता था, मगर विदेशी आक्रमण व दासता के कारण वह स्थिति न केवल कम हुई बल्कि भारत के ज्ञान-विज्ञान के ग्रंथों को भी विदेशी लूटकर ले गए। परिणाम स्वरुप हम दुनिया से बहुत पीछे रह गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इसपर बहुत ध्यान नही दिया गया। मगर अब नई सरकार के आने के बाद और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने पर इस दिशा मे नई उम्मीद जगी है।

इस दौरान प्रो छीपा ने व्याख्यान के दौरान उपस्थित शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों व दर्शन के साथ साथ भारतीय ज्ञान परम्परा पर भी गहन शोध और अध्ययन करें ताकि भारत सहित सम्पूर्ण मानवता इसका लाभ उठा सके।

(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया

Most Popular

To Top