नई दिल्ली, 21 नवंबर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने तेलंगाना के विकाराबाद जिले के लगचार्ला गांव के निवासियों की एक शिकायत पर संज्ञान लिया है, जिसमें स्थानीय लोगों को पुलिस उत्पीड़न, शारीरिक शोषण और झूठे आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा है।
आयोग ने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, तेलंगाना को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसके अलावा आरोपों की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने मौके पर जांच के लिए कानून और जांच अधिकारियों की एक संयुक्त टीम को भेजा है। टीम एक सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
विकाराबाद जिले के कोडंगल निर्वाचन क्षेत्र के लागाचर्ला गांव के आदिवासी निवासियों ने सोमवार को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग के प्रमुखों से मुलाकात कर अपनी समस्या से अवगत कराया था।
आयोग का कहना है कि इसकी शिकायत कम से कम 12 पीड़ितों ने की है। इन्होंने उन्हें भुखमरी से बचाने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।
राज्य सरकार ने कोडंगल निर्वाचन क्षेत्र में एक फार्मा विलेज स्थापित करने का फैसला किया है। इसमें कथित तौर पर एकतरफा तरीके से 1,374 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है। पिछली सरकार ने एक अत्याधुनिक फार्मा सिटी की स्थापना के लिए पहले से ही 16 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया हुआ है।
ग्रामीणों का कहना है कि राज्य सरकार प्रस्तावित ‘फार्मा विलेज’ के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना भूमि अधिग्रहण कर रही है और उन्होंने इसका विरोध किया है। कथित अत्याचारों के अधिकांश पीड़ित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े समुदायों से हैं।
कथित तौर पर 11 नवंबर को जिला कलेक्टर अन्य अधिकारियों के साथ प्रस्तावित फार्मा परियोजना के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण की घोषणा करने के लिए लागाचर्ला गांव पहुंचे। उसी शाम सैकड़ों पुलिस कर्मियों ने कथित तौर पर कुछ स्थानीय गुंडों के साथ गांव में छापा मारा और विरोध कर रहे ग्रामीणों पर हमला किया। उन्होंने गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा।
कथित तौर पर इंटरनेट सेवाएं और बिजली आपूर्ति भी बंद कर दी गई थी ताकि मदद के लिए किसी से भी संपर्क न किया जा सके। कथित तौर पर पुलिस ने महिलाओं सहित ग्रामीणों के खिलाफ झूठी शिकायतों पर एफआईआर दर्ज की, जिससे कुछ पीड़ितों को डर के मारे अपने घर छोड़ने और भोजन, चिकित्सा सहायता, बुनियादी सुविधाओं आदि के बिना जंगलों और खेतों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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(Udaipur Kiran) / अनूप शर्मा