उमरिया, 17 जनवरी (Udaipur Kiran) । जिले के बांधवगढ़ में बीते दिनों हुई 10 जंगली हाथियों की मौत के बाद अब एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट साझा की है, जिसमें यह माना गया है कि हाथियों की मौत फंगस लगी कोदो की फसल खाने से ही हुई है, वहीं एनजीटी ने यह भी स्पष्ट किया है कि 1931 में तमिलनाडु में 14 हाथियों की मौत हुई थी जिसका कारण भी मोटा अनाज था, वहीं इस तरह के खुलासे करके एनजीटी ने सबको चौंका दिया है वहीं मामले को लेकर बांधवगढ़ प्रबंधन ने मीडिया के सामने एनजीटी की रिपोर्ट पेश कर मामले का खुलासा किया है।
मामला है विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का जहां तीन महीने पहले छत्तीसगढ़ से होकर बांधवगढ़ आये जंगली हाथियों ने किसानों की कोदों की फसल को खाया था, जिसके कारण उनकी मौत हो गई थी, घटना के बाद तमाम वन्य प्राणी विशेषज्ञों ने इस पर रिसर्च किया और अपनी रिपोर्ट भारत सरकार के साथ एनजीटी को सौपी, जिसके बाद एनजीटी ने यह माना है कि कोदों की फसल में फंगस लगी थी, जिसको हाथियों ने खाया और वह फ़ूड पायजनिंग का शिकार जिसके कारण उन्होंने एक एक कर दम तोड़ दिया वहीं एनजीटी ने वर्ष 1933 में तमिलनाडु की भी रिपोर्ट को साझा किया है जहां ऐसे ही मोटे अनाज खाकर 14 हाथियों की मौत हुई थी। एनजीटी के खुलासे के बाद से बांधवगढ़ पार्क प्रबंधन ने वही रिपोर्ट मीडिया से साझा की है।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर पी के वर्मा ने बताया कि एक एप्लीकेशन एनजीटी भोपाल में लगी थी जिसको उन्होंने अपने सेल्फ संज्ञान में लिया था। एप्लीकेशन थी 241/2024 जिसमें कि एनजीटी ने पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, वाइल्ड लाइफ अथार्टी ऑफ इंडिया, एग्रीकल्चर कालेज, डब्ल्यू ए आई और कलेक्टर को भी पार्टी बनाया था, इसमें हम लोगों ने अपना जवाब दावा प्रस्तुत किया था और इसके बाद एनजीटी ने एनजीटी ने अपना एनालाइज करने के बाद डब्ल्यू ए आई ने जो साइंटिफिक रिसर्च के सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया था इस पर उन्होंने 10 तारीख को जो निर्णय दिया है उसमें उन्होंने यह भी संज्ञान में लिया है कि 1933 में तमिलनाडु में 14 हाथियों की मौत हुई थी कोदो के कारण, वह भी एक रिसर्च पेपर जनरल बॉम्बे नेचुरल हिस्टुबल सोसायटी ऑफ इंडिया में प्रिंट हुआ था वह पेपर, उसको भी संज्ञान में लेते हुए, उन्होंने ये 10 हाथियों की मौत जो बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हुई, इसमें किसी बाहरी इंटरफियरेन्स या बाहरी केमिकल या किसी भी तरह का ह्यूमन एक्टिविटी के कारण होना ऐसा नही पाया है, मौत कोदो के कारण होना जो कॉन्टैमिनेटेड कोदो था, फंगल था और जो मायकोटॉक्सिन हुआ था उसके कारण उन्होंने पाया है और इस आधार पर भविष्य में ऐसा ना हो इसके लिए किसानों के लिए भविष्य में ऐसा ना हो उन्होंने मॉस स्केल पर अवेयरनेस प्रोग्राम चलने के लिए पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ को निर्देशित किया है, एक समिति गठित करके और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए क्लाइमेट चेंज का भी असर हुआ है उसके लिए भी एक कमेटी गठित करके इसके प्रयास किए जाएं इसके लिए भी उन्होंने निर्देश दिया है। वहीं जब पूंछा गया कि किसानों के साथ क्या होगा तो कहे कि अभी इस निर्णय के बाद जब कमेटी बनेगी और अपनी रिकमेंडेशन देगी तो हम जिले के कलेक्टर के साथ मिलकर और कृषि विभाग को साथ में लेकर अवेयरनेस प्रोग्राम चलाएंगे। उन्हाेंने यह भी बताया कि हाथियों की निगरानी हम कंटिन्यू कर रहे हैं हमारी जो पैदल टीम है वह नजर रखती है, हाथियों का किस तरफ मूवमेंट रहा है हम उस पर लगातार नजर रखते हैं और जैसे ही हमको सूचना मिलती है व्हाट्सएप ग्रुप भी बने हुए हैं वायरलेस के माध्यम से भी सूचना मिलती है हम उस तरफ नजर रखते हैं। इसमें यह भी खुलासा किया है कि जिस तरह से पौधों की फसल पक कर तैयार थी और उसमें पानी गिरा और पानी गिरने के कारण जो फंगस आई है मगर यह हमेशा ऐसा नहीं होता है, कई सालों में ऐसा होता है कि इस तरह की परिस्थिति निर्मित होती है तब ऐसा होता है वहीं आप मान लो कि दोबारा ऐसा न हो इसके लिए हमको ऐसा प्रिकॉशन करना है।
गौरतलब है कि कृषि विभाग इस बात को मानने के लिए तैयार नही है कि कोदो खाने से हाथियों की मौत हुई है, लेकिन दूसरी तरफ अब एनजीटी ने भी क्लीन चिट दे दिया है तो ऐसे में कृषि विभाग और केन्द्र सरकार को मिलेट्स योजना बन्द कर देनी चाहिए और किसानों को मोटा अनाज की खेती प्रतिबंधित कर देना चाहिए ताकि दुबारा ऐसी घटना न हो सके।
—————
(Udaipur Kiran) / सुरेन्द्र त्रिपाठी