Maharashtra

मोबाइल की लत से युवाओं की कमर व गर्दन में दर्द – डॉ पवार

मुंबई,27 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । आज के तेजी से बदलते परिवेश में डिजिटल युग में, मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप के बिना जीवन असंभव हो गया है। ठाणे सिविल अस्पताल के शल्य चिकित्सक डॉ पवार का कहना है कि लेकिन शरीर अब इस स्क्रीन की लत की भारी कीमत चुका रहा है। यह देखा गया है कि जिला सामान्य अस्पताल के फिजियोथेरेपी विभाग में आने वाले 50 युवा मरीज प्रतिशत मरीज़ गर्दन और पीठ दर्द से पीड़ित हैं। गलत मुद्रा, लगातार बैठे रहना, शारीरिक गतिविधि की कमी और मोटापा रीढ़ की हड्डी पर दबाव डालते हैं और समस्या और गंभीर हो जाती है।

घंटों कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर नज़र गड़ाए रहने से गर्दन और पीठ की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। परिणामस्वरूप, गर्दन में दर्द, चक्कर आना, हाथों में झुनझुनी, कमज़ोरी और कुछ मामलों में पकड़ कमज़ोर होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। पीठ दर्द के मरीज़ों को कमर में दर्द, पैरों में जलन, सुन्नता और पैरों में कमज़ोरी का अनुभव होता है। इन शिकायतों पर अस्पताल के फिजियोथेरेपी विभाग में जिला शल्य चिकित्सक डॉ. कैलाश पवार, अतिरिक्त जिला शल्य चिकित्सक डॉ. धीरज महानगड़े के मार्गदर्शन में आधुनिक विधियों से उपचार किया जाता है। विभाग में प्रतिदिन लगभग 50 मरीज उपचार के लिए आते हैं, जिनमें से आधे से अधिक गर्दन और पीठ दर्द के होते हैं। गंभीर दर्द की स्थिति में, मरीजों को उचित आराम दिया जाता है और गर्म-ठंडे झटके, चुंबकीय, विद्युत, ध्वनि तरंगें, लेजर और स्पाइनल स्ट्रेस उपचार दिए जाते हैं। इससे दर्द कम होता है और गतिशीलता में सुधार होता है। इसके बाद, रीढ़ की हड्डी को सहारा देने वाली मुख्य मांसपेशियों की शक्ति बढ़ाने के लिए विशेष व्यायाम और चिकित्सा का उपयोग किया जाता है। यदि यह उपचार नियमित रूप से लिया जाए, तो दर्द वापस नहीं आता और सर्जरी की नौबत भी नहीं आती। यदि उचित मुद्रा, नियमित व्यायाम और वजन नियंत्रण का पालन किया जाए तो रीढ़ की हड्डी की सर्जरी से बचा जा सकता है। आज की युवा पीढ़ी को शरीर के संकेतों को पहचानना चाहिए और समय रहते सतर्क हो जाना चाहिए। स्वस्थ रीढ़ की हड्डी के लिए, संतुलित आहार, कैल्शियम, विटामिन बी और डी से भरपूर खाद्य पदार्थ, रोज़ाना हल्का व्यायाम, थोड़ी देर धूप में बैठना, सही कुर्सी का इस्तेमाल, स्क्रीन को आँखों के समानांतर रखना और वज़न उठाते समय घुटनों को मोड़कर बैठना जैसे सरल लेकिन प्रभावी नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी है। ठाणे जिला सिविल अस्पताल के अधीक्षक व सर्जन डॉ कैलाश व पवार का कहना है कि दरअसल शरीर की उचित देखभाल ही असली दवा है। मोबाइल और लैपटॉप के ज़माने में, अब हर किसी के लिए रुककर खुद पर ध्यान देना ज़रूरी है ताकि शरीर का ‘नेटवर्क’ जुड़ा रहे।

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(Udaipur Kiran) / रवीन्द्र शर्मा

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