




– इन स्पेस मॉडल रॉकेट्री और कैनसैट राष्ट्रीय प्रतियोगिता का सफल समापन
देवरिया, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । तमकुहीराज (कुशीनगर) स्थित नारायणी नदी के तट पर आयोजित इन–स्पेस मॉडल रॉकेट्री और कैनसैट इंडिया स्टूडेंट कम्पटीशन 2024–25 का गुरुवार को सफल समापन हुआ। यह आयोजन भारत में छात्र–नेतृत्व वाले अंतरिक्ष नवाचार आंदोलन का एक प्रेरणादायक अध्याय बन गया।
यह प्रतियोगिता देवरिया लोकसभा क्षेत्र के सांसद शशांक मणि की पहल पर व भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN–SPACe), इसरो (ISRO) और एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (ASI) के संयुक्त तत्वावधान में उत्तर प्रदेश सरकार और कुशीनगर जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित की गई थी। चार दिवसीय इस राष्ट्रीय फिनाले में देश भर के 67 छात्र दलों (31 मॉडल रॉकेट्री और 36 कैनसैट श्रेणी) ने भाग लिया, जो भारत के सबसे प्रतिभाशाली युवा नवोन्मेषकों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
पूरी प्रतियोगिता के दौरान कुल 37 सफल प्रक्षेपण हुए, जिनमें 13 मॉडल रॉकेट्री और 24 कैनसैट लॉन्च शामिल थे। सभी टीमों ने अपने मिशन डिज़ाइन, संरचना, रिकवरी और टेलीमेट्री संचालन में उत्कृष्ट तकनीकी दक्षता प्रदर्शित की। इसरो और इन–स्पेस के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की जूरी ने मिशन की सटीकता, नवाचार और निष्पादन के आधार पर प्रतिभागियों का मूल्यांकन किया। कार्यक्रम के दौरान इन–स्पेस के चेयरमैन डॉ. पवन गोयनका, देवरिया लोकसभा क्षेत्र से सांसद शशांक मणि, इस्ट्रैक निदेशक ए.के. अनिल कुमार, और अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। शुभांशु शुक्ला ने छात्रों से संवाद किया और कहा कि “भारत के युवाओं में असीम संभावनाएं हैं। अगर यह जिज्ञासा और मेहनत बनी रही, तो आने वाला दशक भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाएगा।
–भारत के भविष्य के लिए तैयार हो रही युवा प्रतिभा: डॉ.पवन गोयनका
इन–स्पेस के चेयरमैन डॉ. पवन गोयनका ने कहा कि यह प्रतियोगिता प्रधानमंत्री के उस दृष्टिकोण से प्रेरित है, जिसके तहत भारत के भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए युवा प्रतिभा तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा, “इस वर्ष देश भर के छात्र कुशीनगर आए और ‘सीखते हुए करने’ की भावना को साकार किया। यह सिर्फ प्रतियोगिता नहीं, बल्कि भारत के भविष्य के मिशनों की नींव है।
–नवाचार की प्रयोगशाला बनीं देवरिया–कुशीनगर की धरती: सांसद
देवरिया लोकसभा क्षेत्र के सांसद शशांक मणि ने कहा, “देवरिया और कुशीनगर की यह धरती अब नवाचार और विज्ञान की प्रयोगशाला बन चुकी है। यह आयोजन हमारे ‘अमृत प्रयास’ मिशन के अनुरूप है, जो इस क्षेत्र को आत्मनिर्भर तकनीकी केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
–हर क्षेत्र में अंकुरित हो रहा भारत का वैज्ञानिक भविष्य: डॉ. विनोद
इन–स्पेस के प्रमोशन निदेशक डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य युवा मस्तिष्कों को कक्षा से बाहर लाकर उन्हें प्रायोगिक सीख और नवाचार का अनुभव कराना है। उन्होंने कहा कि तमकुहीराज का यह आयोजन दिखाता है कि भारत का वैज्ञानिक भविष्य अब हर क्षेत्र और हर विद्यालय में अंकुरित हो रहा है।
–विजेता टीमें
मॉडल राकेट्री आर.वी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बेंगलुरु और पीएसआईटी, कानपुर और . निर्मा यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद।
–कैनसैट
औरएसवीकेएम द्वारकादास जे. संघवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, मुंबई और दयानंद सागर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बेंगलुरु एवं बीआईटीएस पिलानी, हैदराबाद।
चार दिवसीय आयोजन के दौरान स्पेस प्रदर्शनी और “आर्ट-इन-स्पेस” प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ, जिसे आसपास के जिलों के 650 से अधिक छात्रों ने करीब से देखा। साथ ही “AAKA Space” द्वारा तैयार एनालॉग एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग हैबिटेट में छात्रों ने 24 घंटे के सिम्युलेटेड स्पेस मिशन का अनुभव किया। यह उनके लिए बेहद प्रेरक साबित हुआ। समापन समारोह में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए। आयोजन के अंत में पूरे परिसर में “ जय भारत, जय विज्ञान” के उद्घोष गूंजे। यह संदेश देते हुए कि भारत की नई पीढ़ी अंतरिक्ष नवाचार के नए युग की अगुआई करने को तैयार है।
डॉ. आर.पी.एन. सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राज्यसभा सदस्य ने कहा कि “कभी यह इलाका बाढ़ और त्रासदी से जाना जाता था, आज नवाचार का केंद्र बन रहा है। सांसद शशांक मणि ने इसे प्राचीन गौरव और आधुनिक विज्ञान से जोड़ा है। इसके लिए मैं उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ।” महेंद्र सिंह तंवर, जिलाधिकारी, कुशीनगर ने कहा यह तो बस शुरुआत है। शासन की मंशा और सांसद के विज़न के अनुरूप हम इस क्षेत्र को जलमार्ग, स्टेडियम और नवाचार केंद्रों के माध्यम से विकसित कर रहे हैं। जंगलपट्टी आने वाले समय में विज्ञान व पर्यटन का संगम बनेगा।”
सुरेंद्र कुशवाहा, विधायक, फाजिलनगर ने कहा कि “इसरो और इन–स्पेस के वैज्ञानिकों ने यहां के युवाओं में विज्ञान की अलख जगाई है। ऐसे आयोजन निश्चित रूप से हमारे जिले को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान देंगे।” विजय दुबे, सांसद, कुशीनगर ने कहा कि कुशीनगर की धरती सदियाें से ज्ञान और संस्कृति की भूमि रही है। अब यह नवाचार और विज्ञान का नया केंद्र बनकर उभर रही है। मुझे विश्वास है, सांसद शशांक मणि का विज़न आने वाले वर्षों में पूर्वांचल को नई दिशा देगा।
इस दौरान कार्यक्रम में जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इसे एक ऐतिहासिक स्वरूप दिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता बालमुकुंद (राष्ट्रीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सचिव), कुशीनगर सांसद विजय दुबे, पूर्व सांसद ले. जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी, सांसद शशांक मणि की माता श्रीमती शशि मणि व धर्मपत्नी गौरी मणि, साथ ही विधायक मनीष जायसवाल (पड़रौना), पंचानन पाठक (कसया), विवेकानंद पांडेय (खड्डा), मोहन वर्मा (हाटा), विनय प्रकाश गोंड (रामकोला), भाजपा जिलाध्यक्ष दुर्गेश राय, पूर्व अध्यक्ष प्रेमचंद मिश्रा, अजय उपाध्याय, अजय शाही, प्रमोद शाही, मंडल अध्यक्ष शेषनाथ मिश्रा, अमलेश तिवारी, राणा प्रताप सिंह, उमापति सिंह, आनंद मिश्रा, ब्लॉक प्रमुख धनंजय तिवारी, नगर पंचायत अध्यक्ष सोनिया जायसवाल, एवं उद्योग क्षेत्र से मधुसूदन मिश्रा (मैनकाइंड फार्मा), शीतल सहित कई गणमान्य उपस्थित रहे। इन सभी ने इस आयोजन को सफल बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई ।
–देवरिया से निकला ‘अमृत प्रयास’, अब पूर्वांचल बनेगा नवाचार हब
देवरिया लोकसभा क्षेत्र के सांसद शशांक मणि की पहल पर उत्तर भारत में पहली बार आयोजित “इन–स्पेस मॉडल रॉकेट्री और कैनसैट इंडिया स्टूडेंट कंपटीशन 2024–25” ने पूर्वांचल की धरती को विज्ञान और नवाचार का नया केंद्र बना दिया है। यह आयोजन न सिर्फ क्षेत्रीय विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ है, बल्कि आने वाले वर्षों में पूर्वांचल को भारत के “स्पेस इनोवेशन ज़ोन” के रूप में स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
चार दिन तक चले इस राष्ट्रीय आयोजन के दौरान देश के 47 कॉलेजों के 600 से अधिक युवा वैज्ञानिकों ने अपने मॉडल रॉकेट और कैनसैट लॉन्च कर इतिहास रचा। सांसद शशांक मणि के “अमृत प्रयास” मिशन ने इस प्रतियोगिता को एक व्यापक उद्देश्य से जोड़ा। सांसद ने कहा कि पूर्वांचल के युवाओं में वह प्रतिभा है, जो भारत के विकसित राष्ट्र बनने की दिशा तय करेगी। हमारा लक्ष्य है कि देवरिया और कुशीनगर विज्ञान और नवाचार के मॉडल जिले बनें। इस आयोजन से स्थानीय स्तर पर कई तत्कालिक लाभ देखने को मिले। देश के विभिन्न जगहों से आए युवा वैज्ञानिकों ने नारायणी नदी में जमकर बोटिंग का आनंद लिया। यहां की संस्कृति, सभ्यता से काफी प्रभावित दिखे। नारायणी और बांसी नदी की महिमा जानी। इस आयोजन ने न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलने का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि युवाओं में वैज्ञानिक सोच का प्रसार भी किया। वहीं दीर्घकालिक लाभ के रूप में यह क्षेत्र अब इन–स्पेस और इसरो जैसे संस्थानों की गतिविधियों के केंद्र में आ गया है।
–बारिश में भी जोश बरकरार! युवा वैज्ञानिकों ने साबित की जज्बे की उड़ान
अंतिम दिन गुरुवार को रिमझिम बारिश और बीच–बीच में तेज़ बौछारों के बावजूद युवा वैज्ञानिकों का जोश कम नहीं हुआ। सुबह से शाम तक नारायणी नदी के किनारे तमकुहीराज का आसमान कैनसैट और रॉकेटों की उड़ानों से गूंजता रहा। इंद्र देवता की बेरूखी ने 15 लांचिंग पर ब्रेक लगा दिया। मौसम की मार के बीच भी 10 सफल लॉन्च हुए, जिन्होंने छात्रों की तकनीकी क्षमता और दृढ़ इच्छाशक्ति दोनों की परीक्षा पास की।
लॉन्च साइट पर कीचड़ और फिसलन के बावजूद टीमों ने मिशन समय पर पूरे किए। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग छतरियों के नीचे भी कैमरे उठाकर हर लॉन्च का रोमांच कैद कर रहे थे। इन–स्पेस के डायरेक्टर डॉ. विनोद कुमार ने बताया, बारिश चुनौती थी, लेकिन छात्रों की तैयारी और आत्मविश्वास ने सब आसान कर दिया। स्थानीय लोग भी इस वैज्ञानिक उत्सव का हिस्सा बन गए। कोई ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहा था तो कोई गिरते पैराशूट की दिशा बताता नजर आया। विज्ञान और उत्साह का यह संगम इस आयोजन को ऐतिहासिक बना गया।
–नारायणी के आसमान से उतर रहे थे सपने, बच्चे कह रहे थे “देखो, वो रहा हमारा सैटेलाइट! नारायणी नदी के किनारे गुरुवार की दोपहर जब आसमान काले बादलों से भर रहा था, तभी अचानक एक आवाज़ गूंजी— “थ्री… टू… वन… लॉन्च!” एक झटके के साथ रॉकेट ने आग और धुएं की रेखा छोड़ते हुए आकाश को चीर दिया। लोग सिर ऊपर उठाए खड़े थे, कुछ की निगाहें चश्मे के पार सूरज की तरफ, कुछ के मोबाइल स्क्रीन पर ज़ूम किए हुए। और फिर कुछ ही मिनटों बाद, आसमान में एक बिंदु धीरे-धीरे खुला… सफेद पैराशूट!
उसके साथ नीचे उतर रहा था एक छोटा-सा कैनसैट। लेकिन उसके साथ उतर रही थीं सैकड़ों उम्मीदें और सपने।
लॉन्च साइट से करीब सवा किलोमीटर दूर रामजानकी मंदिर के पास बनी दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक तालियाँ बजा उठे। हवा में “जय विज्ञान, जय भारत” के नारे गूंजने लगे। हर उड़ान के साथ छात्रों की धड़कनें तेज़ हो जातीं, और हर सफल रिकवरी के बाद एक नई कहानी जन्म लेती। रिकवरी टीम के सदस्य नदी किनारे तैनात थे। जैसे ही पैराशूट नीचे आता, उनकी नज़रें उसका पीछा करतीं। कभी हवा का रुख बदलता, कभी पेलोड ज़मीन से दूर जा गिरता, तो कभी सीधा नारायणी के बीचोंबीच उतर जाता। कुछ कैनसैट पेलोड पानी में गिरे, जिन्हें रिकवरी टीम ने रबर बोट से जाकर निकाल लिया। वापसी पर जब उन्होंने गीला लेकिन सुरक्षित पेलोड जूरी टेबल पर रखा, तो वहां मौजूद वैज्ञानिकों और छात्रों की तालियां गूंज उठीं।
–आम लोग बने मिशन के गवाह
लॉन्च साइट से दूर बैठे गांवों के लोग भी इस नज़ारे को देख रहे थे। पास के स्कूल के बच्चे हाथ हिलाते हुए चिल्ला रहे थे। “वो देखों रॉकेट। देखो… कैसे धीरे उतर रहा है! बुजुर्गों के चेहरों पर विस्मय था।“पहले यहां बाढ़ आती थी, अब आसमान से रॉकेट गिर रहे हैं! कुशीनगर की धरती, जिसे अब तक बौद्ध संस्कृति और कृषि के लिए जाना जाता था, चार दिनों में विज्ञान की नई संस्कृति का साक्षी बन गई।
–जमीं से आसमान और फिर वापसी की कहानी
कैनसैट एक छोटा शैक्षिक उपग्रह मॉडल होता है, जिसका आकार लगभग एक सोडा कैन जितना होता है। इसे रॉकेट के जरिए लगभग एक किलोमीटर की ऊंचाई पर भेजा जाता है, जहां से यह पैराशूट की मदद से धीरे-धीरे नीचे उतरता है। इस दौरान यह तापमान, दबाव, जीपीएस लोकेशन जैसी जानकारियां ग्राउंड स्टेशन तक भेजता है। जैसे ही पैराशूट खुलता है, छात्रों के चेहरों पर तनाव की जगह राहत आ जाती है। हर टीम अपने पेलोड के नंबर से पहचान करती है। देखो, 12 नंबर खुल गया, 13 नंबर वाली हमारी टीम है! नीचे उतरते पेलोड के साथ उनकी मेहनत, रातों की कोडिंग, और महीनों का अभ्यास उतर रहा होता है। उनकी नज़रें पैराशूट के साथ नीचे जाती हैं, और दिल में सिर्फ एक दुआ होती है। बस सही-सलामत लैंड कर जाए।
–हर पैराशूट के साथ उतरता है एक सबक
इस आयोजन की खास बात यह रही कि हर लॉन्च के बाद छात्रों को रिकवरी डेटा के विश्लेषण का मौका दिया गया। उन्होंने पैराशूट के खुलने का समय, हवा की दिशा, और पेलोड की गति जैसी सूचनाएं मापीं। कई छात्रों ने कहा कि उन्हें पहली बार यह समझ आया कि “विज्ञान केवल किताबों में नहीं, अनुभव में है। बीआईटीएस हैदराबाद की एक छात्रा ने कहा, कि जब हमारा कैनसैट नीचे उतरा, तो लगा जैसे बच्चा स्कूल से घर लौट आया हो। वह सिर्फ मशीन नहीं थी, हमारे दिल का टुकड़ा थी।
–दर्शक दीर्घा में उत्सव जैसा माहौल
बारिश के बावजूद लोगों की भीड़ कम नहीं हुई। कई ग्रामीण महिलाएं सिर पर दुपट्टा रखे आसमान की ओर देख रही थीं। बच्चे अपने मोबाइल से पैराशूट का वीडियो बना रहे थे। फाजिलनगर के विधायक सुरेंद्र कुशवाहा ने कहा,ये दृश्य बताता है कि ज्ञान अब किसी प्रयोगशाला की दीवारों तक सीमित नहीं रहा। यह गांवों की मिट्टी में भी उड़ान भर रहा है। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। चारों दिन आठ हाई-क्वालिटी कैमरों से पूरी लॉन्चिंग साइट की निगरानी की जा रही थी। एलईडी स्क्रीन पर रॉकेट की हर गतिविधि लाइव दिखाई जा रही थी।
–पूर्वांचल की धरती बनी स्पेस प्रयोगशाला
पहले जहां नारायणी नदी का किनारा गांवों और खेती का इलाका था, वहीं अब वही भूमि “स्पेस लॉन्च साइट” के रूप में उभर रही है। जंगलपट्टी गांव का यह मैदान चार दिनों तक देश की पहली छात्र–नेतृत्व वाली स्पेस प्रयोगशाला में तब्दील रहा। इसरो और इन–स्पेस के वैज्ञानिकों ने कहा कि उत्तर भारत में यह पहला ऐसा आयोजन है जहां इतनी बड़ी संख्या में युवा वैज्ञानिकों ने अपने डिजाइन किए मॉडल लॉन्च किए। इससे कुशीनगर का नाम वैज्ञानिक मानचित्र पर अंकित हो गया है।
–रोबोट डॉग से हाथ मिलाकर बोले बच्चे– अब खुद बनाना है ऐसा
जब छोटे बच्चे किसी मेले में जाते हैं तो खिलौनों, गुब्बारों या झूलों में खो जाते हैं। लेकिन यहां का नज़ारा कुछ अलग था। यह कोई साधारण मेला नहीं, बल्कि विज्ञान का उत्सव था। जहां रॉकेट उड़ रहे थे, पैराशूट उतर रहे थे और एक रोबोट डॉग बच्चों से हाथ मिला रहा था। तीसरे दिन आयोजित स्कूल विजिट में जगदीश पब्लिक स्कूल, एसबीडी स्कूल पड़रौना और पन्ना देवी इंटर कॉलेज के सैकड़ों छात्र–छात्राएं पहुंचे। वर्किंग एरिया, हैबिटेट मॉड्यूल और “आर्ट-इन-स्पेस गैलरी” में दाखिल होते ही बच्चों की आंखें चमक उठीं। हर कोना उनके लिए किसी साइंस–फिक्शन फिल्म का दृश्य था। किसी ने रॉकेट के इंजन को छुआ, तो किसी ने कैनसैट का पैराशूट अपने हाथों में लिया।
सबसे ज्यादा चर्चा में था रोबोटिक डॉग! गोरखपुर के केआईपीएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के छात्रों द्वारा निर्मित यह मशीन बच्चों का नया दोस्त बन गई थी। वह बच्चों के सामने चलता, रुकता, हाथ हिलाता और गानों पर डांस करता। जब उसने सिर झुकाकर अभिवादन किया तो बच्चे ताली बजाने से खूद को रोक नहीं पाए। कुछ बच्चे उसके साथ सेल्फी लेने की होड़ में लग गए।
बी-टेक तृतीय वर्ष के छात्र अंकित प्रताप सिंह ने बच्चों को बताया कि “हम इस डॉग को एआई वॉयस कमांड से नियंत्रित करने पर काम कर रहे हैं। भविष्य में यह मिलिट्री और रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद कर सकेगा। बच्चों के सवाल रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। क्या ये बात करता है? ये किधर से चार्ज होता है, इसकी बैटरी कितनी चलती है? हर सवाल में उत्सुकता और जिज्ञासा की झिलमिलाहट थी।
(Udaipur Kiran) / ज्योति पाठक