

–स्वर्वेद महामंदिर धाम में 25,000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ सम्पन्न, लाखों अनुयायियों ने आहुति दी
—समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव विहंगम योग के 102वें वार्षिकोत्सव में वैदिक मंत्रों की ध्वनि से वातावरण गूंजा
वाराणसी, 26 नवम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के चौबेपुर उमरहा स्थित स्वर्वेद महामंदिर धाम में आयोजित समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव विहंगम योग के 102वें वार्षिकोत्सव एवं 25 हजार कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ में आध्यात्म, ज्ञान और भारतीय परम्परा का विराट स्वरूप देखने को मिला। महायज्ञ के दूसरे व अन्तिम दिन बुधवार को 25 हजार कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ में डेढ़ लाख दम्पतियों ने पूरे आस्था के साथ यज्ञ-कुण्ड में आहुति दी।
यज्ञ का शुभारम्भ सद्गुरु आचार्य स्वतंत्र देव महाराज एवं संत प्रवर विज्ञान देव महाराज की उपस्थिति में ‘अ’ अंकित श्वेत ध्वजा फहराकर किया गया। वैदिक मंत्रों की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा। महायज्ञ में 200 टन वैदिक सामग्री से सर्व मंगल कामना की आहुति दी गई। इसके लिए यज्ञ परिसर को 108 ब्लाकों में विभाजित किया गया। जो प्राचीन ऋषि-महर्षियों के नाम पर रहे। लगभग 40 एकड़ भूमि पर 25,000 हवन कुंड बनाए गए थे। सायंकाल समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव मनाया गया। इसमें संविधान दिवस के मौके पर स्वर्वेद महामंदिर धाम में एक लाख समर्पण दीप जलाए गए।
इस अवसर पर अनुयायियों को सम्बोधित करते हुए संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने स्वर्वेद कथामृत में कहा कि यज्ञ सनातन संस्कृति की आत्मा है। इसी में वैदिक धर्म की जड़ें और जीवन बसता है। यज्ञ श्रेष्ठतम शुभ कर्म है। यज्ञ का अर्थ है त्याग भाव। अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है—अग्नि को बुझा सकते हैं, पर झुका नहीं सकते। ज्ञान गंगा बहाते हुए संत प्रवर ने कहा कि यज्ञ केवल मनोकामना की सिद्धि या पर्यावरण शुद्धि नहीं है, बल्कि यह हमारे अन्तर्मन में त्याग और विश्वमानव–भावना को विकसित करता है—“मैं और मेरा” से ऊपर उठकर ‘विश्व–कल्याण’ की भावना जगाता है। यज्ञ केवल अग्नि में आहुति नहीं, बल्कि अपने भीतर के अहंकार, लोभ और अशुद्धियों को समर्पित करने का पवित्र साधन है।
संत प्रवर ने आज के समय की एक गम्भीर चुनौती ग्लोबल वॉर्मिंग का उल्लेख कर कहा कि यज्ञ इसे रोकने का एक सशक्त वैदिक उपाय है। पर्यावरण–चिन्तकों को इस दिशा में गम्भीरता से अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्राचीन ऋषियों के आश्रमों में प्रतिदिन यज्ञ की परम्परा थी, और आज के समय में यह पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
इसके पहले ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा श्रद्धालुओं को प्रदान की गई। शारीरिक आरोग्य के लिए सुबह आश्रम के योग प्रशिक्षकों द्वारा आसन, प्राणायाम एवं ध्यान सत्र संचालित हुआ, जिसमें हजारों योग साधकों ने स्वास्थ्य लाभ के गुर सीखे। महोत्सव में निःशुल्क चिकित्सा शिविर भी संचालित हुआ।
जिनमें आयुर्वेद, योग, पंचगव्य और होम्योपैथ के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने रोगियों को परामर्श दिया। यज्ञ परिसर में भारतीय सांस्कृतिक व्यंजनशाला भी स्थापित रही। जहाँ उत्तर से दक्षिण भारत तक के पारंपरिक व्यंजनों के स्टॉल लगाए गए । दो दिनों तक धाम में सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त रहे। सुरक्षा के लिए 500 विहंगम सुरक्षा बल, पुलिस बल, महिला पुलिस तथा अग्निशमन दल तैनात रहे। विहंगम सेवा केंद्र के स्टाल में आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य, आध्यात्मिक मासिक पत्रिका, विशुद्ध जड़ी बूटियों से निर्मित आयुर्वेदिक औषधियां मौजूद रहीं।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी