
नई दिल्ली, 20 अगस्त (Udaipur Kiran) । उच्चतम न्यायालय
की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर बुधवार काे दूसरे दिन की सुनवाई पूरी कर ली। सुनवाई कल यानि 21 अगस्त को भी जारी रहेगी।
बुधवार काे सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय
ने पूछा कि क्या देश संविधान निर्माताओं की इस अपेक्षा पर खरा उतरा है कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच आपसी समन्वय रहेगा? क्या राज्यपाल और मुख्यमंत्री विभिन्न मसलों को आपसी सामंजस्य के जरिये सुलझाते रहे हैं? उच्चतम न्यायालय
ने ये सवाल तब किया जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलों के समर्थन में राज्यपाल की भूमिका को लेकर संविधान सभा की बैठक में हुई चर्चा का हवाला दिया। मेहता ने कहा कि राज्यपाल का पद कोई राजनीति से रिटायर्ड हो चुके लोगों को शरण देने के लिए बना कोई पद नहीं है बल्कि इसकी एक अपनी अहमियत है। संविधान ने राज्यपाल को कुछ विशेष शक्तियां और जिम्मेदारी दी है।
मेहता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प हैं। सहमति देना, सहमति रोक देना, विधेयक को सुरक्षित रखना और विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज देना। अगर राज्यपाल ये कहे कि वो विधेयक को रोक रहे हैं इसका मतलब ये है कि विधेयक का वजूद खत्म हो गया। उन्होंने कहा कि अगर सहमति रोक दी गई उस स्थिति में राज्यपाल को विधेयक पर दोबारा विचार करने के लिए वापस विधानसभा भेजने की जरुरत नहीं है। तब चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर ऐसा होगा तब तो राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चित काल के लिए रोके रख सकता है। तब मेहता ने कहा कि इस पर संविधान ने राज्यपाल को विवेक का अधिकार दिया है। तब न्यायालय
ने कहा कि क्या हम राज्यपाल को पूर्ण शक्ति नहीं दे रहे हैं ताकि कोई अपील भी नहीं कर सके। क्या बहुमत से चुनी गई सरकार राज्यपाल की मनमर्जी से ही चलेगी।
उच्चतम न्यायालय
ने 19 सितंबर को अटार्नी जनरल से पूछा था कि अगर राज्यपाल लंबे समय तक विथेयक को लंबित रखते हैं तो उस पर क्या होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि, संविधान बेंच ने 22 जुलाई को केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय
से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर उच्चतम न्यायालय
की सलाह लेने का अधिकार है। सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद का मसला भी तत्कालीन राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय
के पास रेफर किया था। उच्चतम न्यायालय
के रेफरेंस के बाद उच्चतम न्यायालय
ने उस पर सुनवाई कर फैसला सुनाया था। राष्ट्रपति का ये रेफरेंस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में उच्चतम न्यायालय
ने तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से विधेयकों को लंबे अरसे तक लटकाने के मामले में फैसला सुनाया था।
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को फैसला लेने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए किसी विधेयक पर फैसला लेने या राज्यपाल के पास भेजने के लिए अधिकतम एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर राज्यपाल विधेयक को राज्य सरकार की सलाह के विपरीत राष्ट्रपति को सलाह के लिए रखते हैं तो उस पर भी अधिकतम तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा। उच्चतम न्यायालय
ने अपने दिशा-निर्देश में कहा था कि अगर राज्य विधानसभा किसी विधेयक को दोबारा पारित कराकर राज्यपाल को भेजती है तो उस पर अधिकतम एक महीने में फैसला करना होगा।
(Udaipur Kiran) /संजय
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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी
