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जहां घटना अंतिम बार हुई, वहां की अदालत को घरेलू हिंसा कानून अर्जी की सुनवाई का है क्षेत्राधिकार : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकाेर्ट

–अपर सत्र अदालत का आदेश रद्द, सिविल जज कनिष्ठ श्रेणी बरेली का गुजारा देने का आदेश बहाल

प्रयागराज, 19 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कई घटनाओं में से अंतिम घटना स्थल के मजिस्ट्रेट को शिकायत की सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार है।

कोर्ट ने बरेली के सिविल जज के घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 की अर्जी पर पत्नी बच्चों को रिहायशी आवास देने या 9 हजार रूपये हर माह गुजारा व चार लाख रुपए एक मुश्त देने के आदेश को सही करार दिया है और अपर सत्र अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है। जिससे कहा गया था कि सिविल जज को पत्नी की शिकायत सुनने का क्षेत्राधिकार ही नहीं था।

कोर्ट ने केवल क्षेत्राधिकार के मुद्दे को तय किया और पक्षों को मजिस्ट्रेट की अदालत में अन्य मुद्दे उठाने की छूट दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की एकलपीठ ने चरनजीत कौर उर्फ मनप्रीत कुमार के अधिवक्ता को सुनकर दिया है।

इनका कहना था कि याची की शादी सरदार राव वीरेंद्र सिंह से 27 मई 2005 को उत्तराखंड के सितारगंज में हुई थी। उसके बाद वह ससुराल अलवर राजस्थान आ गई। उससे तीन बेटियां पैदा हुई। इसके बाद मनमुटाव होने लगा। परिवार के लोगों ने मारा-पीटा, गाली दी। परेशान करने लगे तथा 50 हजार रूपए दहेज मांगा।

याची ने अलवर पुलिस को शिकायत की। इसके बाद याची बरेली आ गई और वहां घरेलू हिंसा कानून के तहत एसएसपी बरेली से शिकायत की। थाना बारादरी पुलिस ने ससुराल वालों को बुलाकर पंचायत की। इसी समय ससुराल वालों ने गाली गलौज की और धमकी दी की दहेज के पैसे नहीं दिए तो घर में रहने नहीं देंगे। पुलिस ने कम्प्लेंट दर्ज की।

याची ने सिविल जज कनिष्ठ श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा भत्ता देने की अर्जी दी। मजिस्ट्रेट ने एकपक्षीय आदेश दिया कहा बच्चों सहित घर में रहने दें या हर महीने नौ हजार गुजारा भत्ता व चार लाख रूपए दे। जिसे अपर सत्र अदालत में अपील दाखिल कर चुनौती दी गई। कहा गया कि बरेली में आरोपी परिवार नहीं रहता। शादी भी उत्तराखंड में हुई थी। इसलिए बरेली की मजिस्ट्रेट अदालत को याची की घरेलू हिंसा कानून की अर्जी सुनने का अधिकार नहीं था। अदालत ने अपील स्वीकार कर मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

हाईकोर्ट ने कहा पुलिस पंचायत बरेली में हुई थी। वहां गाली व धमकी दी गई। अपर सत्र अदालत ने धारा 27 को समझने में गलती की। बरेली की अदालत को अंतिम घटना स्थल होने के कारण अर्जी की सुनवाई करने का पूरा अधिकार है। मुकद्दमे की सुनवाई सिविल जज कनिष्ठ श्रेणी की अदालत में चलेगी। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि कर दी है। जिसके तहत पत्नी बच्चों को गुजारा भत्ता व एक मुश्त रकम देने का आदेश हुआ था।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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