
कोलकाता, 22 सितम्बर (Udaipur Kiran News) ।
अशोकनगर के साहा परिवार में दुर्गा प्रतिमा की परंपरा कुछ अलग है। जहां सामान्यतः मां दुर्गा के बाईं ओर कार्तिक और दाईं ओर गणेश रहते हैं, वहीं यहां प्रतिमा में उल्टा क्रम देखने को मिलता है। माता के बाईं ओर गणेश और सरस्वती तथा दाईं ओर कार्तिक और लक्ष्मी विराजमान रहते हैं। यह परंपरा किसी शास्त्र या नियम से नहीं, बल्कि एक मासूम भूल से शुरू हुई थी।
साल 1926 में, उस समय वर्तमान बांग्लादेश के पाबना जिले में साहा परिवार रहता था। परिवार के छोटे पुत्र सत्येन्द्रनाथ खेलते-खेलते मिट्टी से दुर्गा प्रतिमा बनाने लगे। बालसुलभ खेल में उन्होंने गणेश और कार्तिक की स्थिति बदल दी। बाद में बड़े भाइयों ने उसी स्वरूप को घर के नाटमंदिर में प्रतिष्ठित किया।
आज सौ वर्ष बाद भी वही परंपरा कायम है। सत्येन्द्रनाथ की तीसरी पीढ़ी अब अशोकनगर के कालोबाड़ी में उसी रूप में माता की पूजा कर रही है।
प्रतिदिन मां को घी में तली हुई लुचियां और पायस का भोग अर्पित किया जाता है। दशमी के दिन विशेष भोग में नारू, मूड़ी, मूड़करी, मानकचू, सब्जियां, दाल और गंधराज नींबू चढ़ाया जाता है।
परिवार के सदस्य विश्वेश्वर साहा ने कहा, “यह पूजा हमारे लिए परंपरा भर नहीं, बल्कि परिवार की आस्था और भावनाओं का केंद्र है। हम सब मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं।”
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(Udaipur Kiran) / अभिमन्यु गुप्ता
