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जब संस्कृत बाहर निकलती है तो हिंदी उसका सहज सहारा बनती है : कोसलेंद्रदास

जब संस्कृत बाहर निकलती है तो हिंदी उसका सहज सहारा बनती है : कोसलेंद्रदास

जयपुर, 30 सितंबर (Udaipur Kiran News) । पत्र सूचना कार्यालय और केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा मंगलवार को केंद्रीय सदन में हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कहा कि जब संस्कृत अपने शास्त्रीय स्वरूप से बाहर आती है तो हिंदी उसका सहज सहारा बनती है। उन्होंने कहा कि हिंदी का वर्चस्व पूरे विश्व में लगातार बढ़ रहा है और हिंदी की जड़ें संस्कृत में निहित हैं। संस्कृत ने जिस ज्ञान, दर्शन और साहित्यिक परंपरा को जन्म दिया, हिंदी ने उसे आगे बढ़ाकर लोकजीवन से जोड़ा। संस्कृत वेद, उपनिषद और महाकाव्यों की भाषा है, जबकि हिंदी लोकगीतों, कविताओं और कहानियों से जनमानस की भाषा बन गई। आज हिंदी साहित्य तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, मीडिया, प्रौद्योगिकी और प्रशासन के क्षेत्र में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है। हिंदी में समाज को जोड़ने, विचारों को दिशा देने और राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की अद्भुत शक्ति है।

विशिष्ट अतिथि भारतीय सूचना सेवा से सेवानिवृत्त अनुपमा चंद्रा ने कहा कि सभी को अपनी कार्यशैली में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। कहानियां समाज का आईना होती हैं और जब वे हिंदी में कही जाती हैं तो उनमें मातृभूमि की मिट्टी की सुगंध, लोक जीवन की सरलता और जनमानस की भावनाएं जीवंत हो उठती हैं।

पत्र सूचना कार्यालय की अपर महानिदेशक ऋतु शुक्ला ने कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। डिजिटल युग में सोशल मीडिया, फिल्म और पत्रकारिता के माध्यम से हिंदी का वैश्विक प्रभाव और सशक्त हुआ है। उन्होंने कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार केवल सरकारी प्रयासों पर निर्भर नहीं रह सकता, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह हिंदी को गर्व और गौरव के साथ अपनाए। पत्र सूचना कार्यालय के निदेशक अनुभव बैरवा ने भी दैनिक जीवन में हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने पर बल दिया।

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(Udaipur Kiran)

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