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समाज में परिवर्तन लाने के लिए घर-घर जाएं स्वयंसेवक: दत्तात्रेय होसबाले

राष्ट्रधर्म के विशेषांक का लोकार्पण करते  सरकार्यवाह
मंच पर उपस्थित अतिथि

आरएसएस के सरकार्यवाह हाेसबाले ने किया राष्ट्रधर्म (मासिक) के विशेषांक का विमाेचन राष्ट्रधर्म ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : विचार यात्रा के 100 वर्ष पर प्रकाशित किया है विशेष अंक

लखनऊ, 1 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने स्वयंसेवकों का आह्वान किया कि संगठित शक्ति के बल पर भारत को परमवैभव की ओर ले जाने और स्वा के आधार पर भारत को खड़ा करने के साथ समाज में परिवर्तन लाने के लिए वे घर घर जाएं। राष्ट्र के नव निर्माण के लिये एक नया उमंग व उल्लास पैदा करें। यही संघ की अभिलाषा है।

संघ के सरकार्यवाह होसबाले बुधवार को गोमतीनगर स्थित भागीदारी भवन के प्रेक्षागृह में राष्ट्रधर्म (मासिक) पत्रिका के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : विचार यात्रा के 100 वर्ष पर प्रकाशित विशेषांक का लोकार्पण करने के बाद संबाेधित कर रहे थे। सरकार्यवाह होसबाले ने कहा कि समाज में जागृति लाने के लिए राष्ट्रधर्म की शुरुआत हुई। आजादी के बाद भारत की राष्ट्रीयता को हिन्दुत्व को जीवन के हर क्षेत्र में कैसे क्रियान्वित हो सकता है। होसबाले ने कहा कि संघ की 100 वर्ष की यात्रा आसान नहीं थी। संघ पर प्रतिबंध भी लगा। संघ कार्यकर्ताओं को कष्ट भी उठाना पड़ा। देश दुनिया में आज संघ की सराहना हो रही है। पत्र पत्रिकाओं में लेख आ रहे हैं। इसलिए जिन लोगों ने कार्यकर्ताओं काे सहयोग वा समय दिया उनके प्रति आभार व्यक्त करें। सरकार्यवाह ने कहा कि भारत धर्म भूमि है। किसी भी देश का संकट हमारा संकट है। प्रकृति का उपयोग होना चाहिए, उपभोग नहीं। समाज को परस्पर स्नेह वा आत्मीयता से संगठित करना है। समाज का दर्द हमारा दर्द है। भारत के विचार को हर क्षेत्र में स्वीकार करना।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर की अंग्रेजी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष विनोद सोलंकी ने कहा कि आज हम शताब्दी वर्ष के साक्षी बन रहे हैं। राष्ट्रधर्म के बारे में जब हम विद्यार्थी के रूप में इसके ध्येय पर चिंतन करते हैं तो यह स्मरण आता है कि यह यात्रा 1895 में स्वामी विवेकानन्द ने ब्रह्मवादिनी की रूप में शुरू की। भारत भूमि योग भूमि है। ऋषियों की तपस्थली है। जब देश परतंत्र था, तब भी भारत की आत्मा काम कर रही थी। विनोद सोलंकी ने कहा कि डाॅ. हेडगेवार ने जो परम्परा शुरू की थी। वह परम्परा गुरू गोलवलकर, बाला साहब देवरस, रज्जू भैया, कुप सी सुदर्शन और आज डाॅ. मोहन भागवत के रूप आज भी जारी है।

राष्ट्रधर्म के संपादक ओम प्रकाश पाण्डेय ने विशेषांक के बारे जानकारी देते हुए कहा कि संघ के द्वारा भारती की एकता, एकात्मता, अखण्डता व समरसता कैसी होनी चाहिए इसका उल्लेख विशेषांक में किया गया है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में थारू जनजाति की महिलाओं के बीच काम करने वाली संत कबीर पुरस्कार से सम्मानित आरती राणा उपस्थित रहीं। इस माैके पर प्रो. अमित कुशवाहा व अभिनव भार्गव ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर सरकार्यवाह ने पूर्व प्रचारकों को सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रधर्म के प्रबंध संपादक डा. पवन पुत्र बादल ने किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन, क्षेत्र प्रचारक अनिल, उत्तर प्रदेश सरशार के समाज कल्याण मंत्री असीम अरूण, महापौर सुषमा खर्कवाल, क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष, प्रान्त प्रचारक कौशल, सह प्रान्त संघचालक सुनीत खरे, राष्ट्रधर्म के प्रभारी निदेशक सर्वेशचन्द्र द्विवेदी, राष्ट्रधर्म के निदेशक व सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकांत, विभाग प्रचारक अनिल, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील चन्द्र द्विवेदी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. राजशरण शाही, अभाविप के क्षेत्र संगठन मंत्री घनश्याम शाही समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / बृजनंदन

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