
सुलतानपुर, 27 नवंबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर मे विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के संगठन मंत्री हेमचन्द ने कहा कि जो भैया/बहन खेल में अच्छा प्रदर्शन करते हैं,उनका पढ़ाई में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन रहता है। सन् 1952 में गोरखपुर में सरस्वती शिशु मन्दिर की स्थापना हुई। शिशु मन्दिर और विद्या मन्दिर में हम शिक्षा के साथ ही भारतीयता, देशभक्ति और संस्कृति के संस्कार भी देते हैं । संस्कार विहीन व्यक्ति कितना भी बलशाली क्यों न हो वह रावण की तरह राक्षस हो सकता है।
नगर के सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ज्ञान कुंज विवेकानन्द नगर में विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की 36वीं राष्ट्रीय योगासन प्रतियोगिता का समारोह का शुभारम्भ हुआ। कार्यक्रम में मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डाक्टर सलिल श्रीवास्तव ने कहा कि योगासन से हमें नियमित तथा संयमित जीवन जीने की प्रेरणा मिलेगी। जिससे हमें मानसिक एवं शारीरिक शांति की अनुभूति होती रहेगी। हमें यह महसूस होगा कि हम राष्ट्रीय जीवन के लायक बनते जा रहे हैं।
प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष डॉ वी के झा ने सर्वांगीण विकास में योगासन की भूमिका को अहम बताते हुए कहा कि मनसा, वाचा एवं कर्मणा एकात्म होने की विद्या योग से प्राप्त होती है। योग से प्रत्युत्पन्नमति जागृत होती है जो हमें विषम परिस्थितियों से उबरने में सक्षम बनाती है। कार्यक्रम को प्रबंधक डाक्टर पवन सिंह, अध्यक्ष भोलानाथ अग्रवाल, राष्ट्रीय योगासन प्रतियोगिता के संयोजक राजेश, सह संयोजक मधुसूदन, पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के खेलकूद प्रमुख जगदीश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के शारीरिक प्रमुख होड़िल सिंह तथा काशी प्रान्त के खेलकूद प्रमुख अजीत सिंह ने भी सम्बोधित किया।
वरिष्ठ आचार्य महेश शुक्ल ने उद्घाटन मंत्र का उच्चारण किया। आचार्या श्वेता पाण्डेय के निर्देशन में बहनों ने भगवान राम की जीवन गाथा को नृत्य एवं अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत कर भाव विभोर कर दिया। शिशु मन्दिर के नन्हे भैया बहनों ने भी रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इस अवसर पर व्यवस्था प्रमुख द्वारिका नाथ पाण्डेय, रंजना पाण्डेय, अनिल पाण्डेय,सरिता त्रिपाठी , रमेश मिश्र विवेकानन्द यादव, पूजा शुक्ला, शुभम सिंह, ज्योति उपाध्याय, रागिनी मिश्रा तथा देश भर से आए हुए निर्णायक, संरक्षक आचार्य एवं प्रतियोगी भैया बहनें उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / दयाशंकर गुप्त