
तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव का भव्य शुभारंभ
वाराणसी, 16 नवंबर (हि.स. )। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस )के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि आधुनिक विश्व के कल्याण का मंत्र काशी शब्दोत्सव देगा। इसमें हुए विचार विमर्श एवं परिचर्चा से प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विश्व के मूल्यों को एक साथ जोड़ने का मार्ग प्रशस्त होगा।
सुनील आंबेकर रविवार को बतौर मुख्य वक्ता तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव 2025 के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। विश्व संवाद केंद्र, काशी एवं संस्कृत विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में स्वतंत्रता भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पश्चिमी सभ्यता स्वार्थ एवं स्व केंद्रित है जिसके कारण विश्व पटल पर पशुता और अराजकता प्रभावी है । इसका निदान प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों के माध्यम से हो सकता है। उन्होंने कहा कि गुलामी के काल में जब अंग्रेज भारतीय शिक्षा को मिटाने में लगे थे । उस समय महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माध्यम से भारतीय शिक्षा को बचाने का प्रयास किया । महामना ने पूरे देश में भारतीय शिक्षा व्यवस्था को स्थापित करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि इस समय जो वैज्ञानिक विकास है, उसमें कल्याण की भावना का भाव भारतीय संस्कृति और मूल्यों को समय के अनुसार परिवर्तित कर जोड़ने से होगा। उन्होंने बताया कि एआई संचालित संसार में मनुष्य मानसिक शांति और नैतिकता की खोज कर रहा है। जिसकी पूर्ति भारतीय ज्ञान परंपरा से संभव है। उन्होंने जोर दिया कि चरित और आचरण की शुचिता हर क्षेत्र में आवश्यक है और इसका ज्ञानबोध दुनिया को भारतीय चिंतन से कराया जा सकता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं अयोध्या हनुमन्ननिवास के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदनी शरण ने कहा कि भारतीय संस्कृति “शब्दों में साँस लेती है।” कोई भी समाज अपने शब्दों को सहेजकर अपनी पहचान सुरक्षित रखता है। कबीर और रामानंद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इनके माध्यम से काशी से समरसता का संदेश गया । उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी अक्सर शब्दों को उतना महत्व नहीं देती जितना देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर शब्द की अपनी गर्माहट और शीतलता होती है, और शब्दोत्सव इन सूक्ष्मताओं को पुनः अनुभव कराने में सहायक है।
समारोह की अध्यक्षता कुलपति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी जी ने की। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि समाज को समय-समय पर जननायक मिलते हैं, उसी प्रकार संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में भी ऐसे नायक उभरते रहने चाहिए। अपनी समृद्ध व विशाल सांस्कृतिक परंपरा की निरंतरता को बरकरार रखने के लिए संस्कृति नायकों का होना अत्यंत आवश्यक है, जो नई दृष्टि, नई ऊर्जा और नए विचारों के माध्यम से परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि काशी शब्दोत्सव ऐसी प्रतिभाओं की खोज और उनकी सोच को समाज तक पहुँचाने का सशक्त मंच बनेगा। इसी तरह के विमर्श से समाज को अगला कबीर और अगला शंकराचार्य मिलेगा जो, आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन ज्ञान और ज्ञानवर्धन करेगा। इस दिशा में विश्वविद्यालय में काशी तमिल संगमम के सह-आयोजन तथा ओडिया पीठ की स्थापना का कुलपति ने विशेष रूप से उल्लेख किया।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. हरेंद्र कुमार राय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण, द्वीपप्रज्वलन एवं बीएचयू के छात्रों द्वारा कुलगीत की प्रस्तुति से हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ शुचिता त्रिपाठी एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो सदाशिव द्विवेदी ने किया।
यह भी रहे उपस्थित
समारोह में विरेन्द्र जायसवाल , सुभाष , मनोजकांत , रमेश , मुरली पाल, प्रो राकेश तिवारी, रामाशीष , बी.डी. दूबे, प्रो जेपी लाल , प्रो चक्रधर त्रिपाठी, प्रो एसपी सिंह, प्रो शैलेष मिश्र, दिनेश , डॉ अम्बरीश राय आदि की उपस्थिति रहीं। कार्यक्रम में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय एवं विभिन्न महाविद्यालयों के आचार्य, शोध छात्र एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी