जम्मू, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू), जिसमें नौ प्रमुख अधिकारी एवं कर्मचारियों के संगठन शामिल हैं ने केंद्र सरकार की 4 अक्टूबर की नई नियुक्ति संबंधी अधिसूचना का कड़ा विरोध किया है। यूएफबीयू ने इसे कानूनी और संवैधानिक अतिक्रमण बताते हुए तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की मांग की है। यूएफबीयू ने कहा कि मंत्रिमंडलीय नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशानिर्देशों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जिनमें भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) भी शामिल है और सार्वजनिक बीमा कंपनियों (एलआईसी व अन्य) में चेयरमैन, एमडी, ईडी और पूर्णकालिक निदेशकों की नियुक्ति के लिए निजी क्षेत्र के अधिकारियों को पात्र बनाना संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन है।
फोरम का कहना है कि बिना संसद में कानून संशोधन के इन पदों के लिए निजी क्षेत्र के अधिकारियों की भर्ती, वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन आधारित मूल्यांकन को हटाना और निजी एचआर एजेंसियों के माध्यम से चयन कराना, संसद द्वारा पारित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1955 तथा राष्ट्रीयकृत बैंक अधिनियम 1970 व 1980 के उद्देश्य को ही बदल देता है। यूएफबीयू ने आरोप लगाया कि यह कदम लोक क्षेत्रीय बैंकों के सार्वजनिक चरित्र को कमजोर करेगा और इसे कॉरपोरेट नियंत्रण की ओर खतरनाक बदलाव बताया। संगठन ने चेतावनी दी कि इससे बैंकिंग क्षेत्र की जवाबदेही, पारदर्शिता और नैतिकता पर गंभीर असर पड़ेगा।
फोरम ने कहा कि निजी क्षेत्र से बाहरी अधिकारियों की नियुक्ति से बैंक कर्मचारियों का मनोबल गिरेगा और वर्षों से विकसित संस्थागत अनुभव नष्ट होगा। उन्होंने इसे “कार्यपालिका के जरिए निजीकरण की प्रक्रिया” बताया और कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक देश की आर्थिक संप्रभुता की रीढ़ हैं, जिन्हें कॉरपोरेट प्रयोगशाला नहीं बनाया जा सकता।
यूएफबीयू ने मांग की है कि 4 अक्टूबर 2025 को जारी सभी संशोधित दिशानिर्देशों को तुरंत प्रभाव से स्थगित किया जाए।
वित्तीय सेवाएं विभाग (डीएफएस), आरबीआई, एफएसआईबी, यूएफबीयू और विधि विशेषज्ञों की संयुक्त समिति बनाकर समीक्षा की जाए।
नीति को संसद की वित्तीय स्थायी समिति के पास विचारार्थ भेजा जाए।
भविष्य में किसी भी बैंकिंग या बीमा सुधार से पहले सभी हितधारकों से परामर्श लिया जाए।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
