Uttar Pradesh

गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन

गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*
गोरखपुर विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ समापन*

गोरखपुर, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर द्वारा कुलपति प्रो. पूनम टण्डन के संरक्षण में नाथ पंथ विश्वकोश निर्माण विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन हो गया। इस कार्यशाला के अध्यक्ष प्रो० सदानन्दप्रसाद गुप्त, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के अध्यक्षता में समापन हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत कार्यशाला के संयोजक गोरक्षनाथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र के स्वागत भाषण से हुआ। शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन सारांश प्रस्तुत किया गया। कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे प्रो. सदानंद गुप्त ने परिचर्चा में कहा कि नाथपंथ विश्वकोश पहले चरण में 7 खंडों में प्रकाशित किया जाएगा। सबसे पहले एक वर्ष के भीतर देश के विभिन्न विद्वानों के मदद से पारिभाषिक कोश का निर्माण किया जाएगा। हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो. नन्द किशोर पाण्डेय ने कल उद्घाटन सत्र में सबसे पहले पारिभाषिक कोश के निर्माण का सुझाव दिया था। इस सुझाव पर सभी विद्वानों की सहमति बनी तथा तय हुआ कि सबसे पहले 500 शब्दों का चयन किया जाएगा और इसे विद्वानों के पास लेखन के लिए भेजा जाएगा। वृहत्तर कोश में नाथपंथ से संबंधित सभी विषय समाहित किए जाएंगे। यह क्रमशः बनाया जाएगा। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन शोधपीठ के सहायक निदेशक डॉ. सोनल सिंह के द्वारा किया गया। मंच का संचालन शोध अध्येता डॉ. हर्षवर्धन सिंह के द्वारा किया गया।

इस कार्यशाला मे तकनीकी सत्र में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए हुए विद्वानों एवं अध्येताओं ने भी अपने विचार अपने वक्तव्यों के माध्यम से रखे। इन सत्रों में नाथ पंथ विश्वकोश के निर्माण के विविध आयाम, इसकी परम्पराओं, तकनीकी शब्दावली, उसके साहित्य एवं उसके योगदान, इतिहास, मूल ग्रंथ, महत्व इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई। तृतीय तकनीकी स्तर के वक्ता के प्रो. शशिकांत द्विवेदी, वाराणसी रहे। उन्होंने कहा कि मूल ग्रंथों को ध्यान में रखकर आगम, तंत्र आदि परम्पराओं के व्यापकता को लेते हुए कोश पर विचार किया जाय। श्रीकृष्ण जुगनू, डॉ. प्रिया सूफी, डॉ. राधिका गुप्त, विजय सारदे ने अपने विचार प्रस्तुत किए। सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. उदय प्रताप सिंह, पूर्व अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी अकेडेमी, प्रयागराज ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमें शब्द कोश की जगह वृतांत कोश की तरफ जाना चाहिए।

चतुर्थ तकनीकी स्तर के वक्ता डॉ. इष्टदेव सांकृत्यायन, गाजियाबाद रहे। उन्होंने कहा कि विभिन्न ग्लॉसारी ग्रंथों में नाथपंथ विषयक सामग्री मिल सकती है। डॉ. फुलचंद गुप्त, डॉ. समीर कुमार पाण्डेय, डॉ. शोभा सिंह ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. संतोष कुमार शुक्ल , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि लेखन टीम में विभिन्न भाषओं के एक एक विशेषज्ञ भी रहना चाहिए। प्रो. बलवंत जानी ने कहा कि लोक साहित्य में नाथपंथ से ज्यादा प्रचलित कोई मार्ग नहीं है।

इस कार्यशाला में देश भर के अनेक विश्वविद्यालय से आये हुए वक्ता, विषय विशेषज्ञ, प्रतिभागी एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के सभी संकायों के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण एवं शोध-छात्र उपस्थित रहे। इस अवसर पर डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, डॉ. सुनील कुमार, चिन्मयानन्द मल्ल आदि उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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