
जोधपुर 15 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) । राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 1991 में दर्ज एक पुराने हत्या के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए दोनों आरोपियों – जेमल राम और भगवाना राम को बरी कर दिया है। न्यायालय ने यह कहते हुए निचली अदालत का फैसला रद्द किया कि पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है तथा अभियोजन पक्ष आरोपी की संलिप्तता साबित करने में असफल रहा।
मामले के अनुसार, 22 सितंबर 1991 को थाना डीबी, जिला हनुमानगढ़ में राजा राम द्वारा मौखिक रिपोर्ट दी गई थी, जिसमें एक व्यक्ति का शव खेत में मिलने की सूचना दी गई थी। इस पर पुलिस ने एफआईआर नंबर 232/1991 दर्ज की थी। जांच के के बाद पुलिस ने आरोपियों के विरुद्ध चालान प्रस्तुत प्रस्तुत किया और सत्र न्यायालय ने वर्ष 1996 996 में दोनों को धारा 302/34 व 404 आईपीसी में दोषी ठहराया था।
अपील की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि जिन गवाहों के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी. उन्होंने अदालत में घटना देखने से इंकार कर दिया। साथ ही, जिन साक्ष्यों जैसे कैमरा, एचएमटी घड़ी आदि की बरामदगी दिखाई गई, वे भी साबित नहीं की जा सकीं। न्यायालय ने कहा कि जाँच अधिकारी की भूमिका संदेहास्पद रही और कई गवाहों के बयान परस्पर विरोधी थे। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियोजन द्वारा पेश किया गया अतिरिक्त न्यायिक स्वीकृति अविश्वसनीय है, क्योंकि इसे ऐसे गवाहों के आधार पर पेश किया गया जिन्होंने स्वयं को ‘जाति प्रतिनिधि’ बताते हुए आरोपियों पर झूठा आरोप लगाने का प्रयास किया।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गर्ग और न्यायमूर्ति रवि चिरानिया की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों की उपस्थिति, बरामदगी तथा घटना की श्रृंखला को सिद्ध करने में पूर्णत: विफल रहा। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी टूट चुकी है, अत: सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्य और विरोधाभासी गवाहियों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता निष्पक्ष जाँच ही न्याय का आधार है। संदेह का लाभआरोपियों को दिया जाता है। अदालत ने 18 जनवरी 1996 को पारित निचली अदालत के दोषसिद्धि आदेश को रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली।
(Udaipur Kiran) / सतीश
