
–ऑडियो-विजुअल तकनीक और चॉक-बोर्ड के मिश्रित उपयोग से ही शिक्षण तकनीक बेहतर : प्रो संगीता श्रीवास्तव–इविवि में ‘अभिनव शिक्षा पद्धति : अवसर और चुनौतियां’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
प्रयागराज, 14 नवम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में शुक्रवार को ‘अभिनव शिक्षा पद्धति : अवसर और चुनौतियां’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने की। वहीं, महात्मा ज्योतिबाफुले रूहेलखंड विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अनिल शुक्ल बतौर मुख्य अतिथि रहे।
कला संकाय के डीन प्रो. वी.के. राय, अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मनमोहन कृष्ण, शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो. धनंजय यादव और विभाग के शिक्षक डॉ. पतंजलि मिश्र ने भी मंच साझा किया। इस मौके पर विभाग की ओर से प्रकाशित शोध पत्रिका ‘‘रिसर्च एंड स्टडीज’’ के नवीन अंक का भी विमोचन किया गया।
मुख्य वक्ता प्रो. अनिल शुक्ल ने भारत की व्यावसायिक ज्ञान प्रणाली पर एक चिंतनशील भाषण दिया। उन्होंने भारत की पारम्परिक ज्ञान संस्कृति को ज्ञान, अंतर्ज्ञान और व्यावहारिक समझ का भंडार बताया। प्रयाग के पवित्र संगम के शक्तिशाली रूपक का उपयोग करते हुए, उन्होंने गंगा की तुलना ज्ञान से, यमुना की तुलना कौशल से, और सूक्ष्म सरस्वती की तुलना उच्च अंतर्ज्ञान से की। उन्होंने कहा कि सच्चा नवाचार तब उभरता है जब ये तीनों धाराएं शिक्षार्थी के भीतर एक साथ बहती हैं। उन्होंने छात्रों से स्वायत्तता विकसित करने, मौलिक सोच अपनाने और केवल जानकारी इकट्ठा करने के बजाय ज्ञान प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने कहा कि आज का सेमिनार शिक्षा विभाग का एक बेहतर प्रयास है, जिससे समाज और शिक्षा जगत में बड़े बदलाव आएंगे। उन्होंने कहा कि शिक्षण पद्धति में सूचना और संचार तकनीक (आईसीटी) का अहम योगदान है। लेकिन परम्परागत चाक और बोर्ड की भी अहमियत को कम नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान में ऑडियो-विजुअल तकनीक का प्रयोग करके शिक्षण पद्धति को और बेहतर बनाया जा रहा है। ऐसे में ऑडियो-विजुअल तकनीक और चॉक-बोर्ड के मिश्रित उपयोग से शिक्षण पद्धति को सर्वाधिक सुग्राही बनाया जा सकता है, इससे विद्यार्थी आसानी से पाठ्य को समझ सकेंगे। उन्होंने कहा लिखने और समझाने की सोच-समझकर की गई प्रक्रिया संज्ञानात्मक विकास को मजबूत करती है और वैचारिकता को गहरा करती है। उन्होंने नेल्शन मंडेला के वक्तव्य, ‘‘शिक्षा ही एकमात्र शस्त्र है जो सम्पूर्ण विश्व को बदल सकता है’‘ के महत्व को उजागर किया।
विशिष्ट वक्ता प्रो. मनमोहन कृष्णा ने शिक्षाशास्त्र पर कहा कि सामाजिक-आर्थिक बदलावों के लिए अंतःविषय क्षमता और कौशल-उन्मुख शिक्षा की आवश्यकता होती है। कला संकाय के डीन प्रो. वी.के. राय ने शिक्षाशास्त्र की नैतिक और दार्शनिक नींव पर जोर दिया और शिक्षकों से परम्परा को आधुनिकता के साथ मिश्रित करने का आग्रह किया। इससे पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय यादव ने सेमिनार में सभी का स्वागत किया। उन्होंने वर्तमान में तेजी से बदल रहे शैक्षणिक परिदृश्य में रचनात्मकता, आलोचनात्मक जुड़ाव और शिक्षार्थी-केंद्रित पद्धतियों की आवश्यकता पर जोर दिया।
विभाग की शिक्षक डॉ. रुचि दुबे ने कठोर शैक्षणिक जांच को बढ़ावा देने के लिए जर्नल के दृष्टिकोण और प्रतिबद्धता पर अपने विचार रखे। डॉ. पतंजलि मिश्र ने गतिशील और समावेशी शिक्षण वातावरण बनाने के लिए सॉफ्ट स्किल, तकनीकी-शैक्षणिक दक्षताओं और संस्थागत माहौल को एकीकृत करने की आवश्यकता को जरूरी बताया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. सरोज यादव ने सभी का धन्यवाद किया।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र