




झाड़ग्राम, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । जिले में बुधवार को लोकसंस्कृति और परंपरा से सराबोर ‘बांधना पर्व’ बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह पर्व भाईफोटा (भ्रातृद्वितीया) से ठीक पहले मनाया जाता है और ग्रामीण समाज, विशेषकर जंगलमहल क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है।
बांधना पर्व के दूसरे दिन झाड़ग्राम के बेलपहाड़ी सहित संपूर्ण जंगलमहल क्षेत्र में ‘चोकपुरा’ और ‘गरहया पूजा’ का आयोजन हुआ। ग्रामीणों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पशुधन, विशेष रूप से गायों और बैलों की पूजा की —जिन्हें कृषि और आजीविका का आधार माना जाता है।
ग्रामवासियों का कहना है कि यह पर्व मनुष्य और पशु के बीच सह-अस्तित्व, श्रम और आस्था के रिश्ते का प्रतीक है। ग्रामीण परिवार अपने घरों की दीवारों और आंगनों को गोबर और विभिन्न रंगों से सजाते हैं, पशुओं को नहलाकर उनकी सींगों पर तेल और हल्दी लगाते हैं तथा दीपक जलाकर पूजा करते हैं। घर के द्वार पर अल्पना (बंगाल की चित्रकला) से सजाते हैं ।
बेलपहाड़ी और आस-पास के गांवों में ढाक-ढोल, लोकगीत और नृत्य के साथ पूरे वातावरण में उत्सव का रंग घुल गया। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में गीत गाती हुईं घर-घर घूमती नजर आईं।
झाड़ग्राम प्रशासन ने भी इस मौके पर स्थानीय लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए। सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि बांधना पर्व केवल पूजा नहीं, बल्कि यह प्रकृति और जीवों के प्रति कृतज्ञता का त्योहार है, जो ग्रामीण बंगाल की आत्मा को दर्शाता है।
आदिवासी परंपरा में ‘बांधना’ का अर्थ “बांधना” शब्द का अर्थ है — बंधन, संबंध या जोड़ना। इसका तात्पर्य है —मनुष्य और पशु के बीच का आत्मीय बंधन। संथाल, मुंडा, और कुरमी समुदायों में यह पर्व प्रकृति देवता और पशुधन के प्रति सम्मान का एक सामाजिक उत्सव माना जाता है।
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(Udaipur Kiran) / अभिमन्यु गुप्ता
