RAJASTHAN

हत्या के केस में तीन आरोपी बरी, पुलिस की रही लापरवाही

jodhpur

जोधपुर, 21 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट की डबल बेंच ने पाली के फालना में देवीसिंह मर्डर केस में अहम फैसला सुनाते हुए तीन आरोपियों को बरी कर दिया है। जस्टिस मनोज कुमार गर्ग और जस्टिस रवि चिरानिया की पीठ के इस रिपोर्टेबल जजमेंट में पुलिस जांच में गंभीर लापरवाही और सबूत जुटाने में नाकामी के आधार पर यह फैसला किया है। इससे पहले कोर्ट ने 11 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे बुधवार को सुनाया गया। कोर्ट ने आरोपी फालना निवासी हिम्मत सिंह, उसकी पत्नी पदम कंवर और बेटे यशपाल सिंह को बरी कर दिया है।

पुलिस ने देवीसिंह की मौत से पहले महात्मा गांधी अस्पताल में दिए गए आखिरी बयान पर न तो हस्ताक्षर थे और न ही अंगूठा निशान लिए गए थे। वहीं, डॉक्टर का स्पष्ट प्रमाण-पत्र भी उपलब्ध नहीं था कि मृतक मानसिक और शारीरिक रूप से बयान देने योग्य था। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट की उपस्थिति भी नहीं थी। इतना ही नहीं, पुलिस पांच गवाहों को भी पक्षद्रोही होने से नहीं रोक पाई।

दरअसल मामले की शुरुआत 24 अगस्त 2012 को हुई जब शिकायतकर्ता देवी सिंह ने महात्मा गांधी अस्पताल के बर्न वार्ड में भर्ती होकर एक बयान दिया। देवी सिंह के अनुसार वह 18 अगस्त 2012 को बैंगलोर से यात्रा करके 20 अगस्त 2012 को अहमदाबाद पहुंचा, जहां से वह फालना गया था, क्योंकि उसकी पत्नी सुमन कंवर अपने छह महीने के बच्चे को छोडक़र भाग गई थी। देवी सिंह द्वारा बताया गया कि उसने अपने ससुर हिम्मत सिंह से संपर्क किया और उन्होंने कहा कि वह बच्चे को लेकर फालना आए। बीस अगस्त 2012 को शाम पांच बजे के करीब वह फालना पहुंचा और अपने ससुराल गया, जहां उसने चाय पी। जब वह जाने लगा तो उसकी सास पदम कंवर और साले यशपाल ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसका ससुर उसके पीछे खड़ा था। उसी समय किसी ने उस पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। पड़ोसियों ने उसे बचाया और अस्पताल ले गए। मेडिकल एविडेंस के संबंध में पुलिस ने 80 प्रतिशत जलने के मामले में शॉक के कारण होने वाले भ्रम की संभावना को गंभीरता से नहीं लिया। जबकि, डॉक्टर अनुज सिंह ने माना था कि इतने गंभीर जलने के मामले में मरीज को भ्रम हो सकता है। पुलिस ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज किया। इसके साथ ही डॉ. संजय बेदी ने पुष्टि की थी कि घटना के समय देवी सिंह नशे में था, लेकिन, पुलिस ने इस महत्वपूर्ण साक्ष्य का उचित विश्लेषण नहीं किया।

पांच गवाह पक्षद्रोही, मकसद साबित नहीं कर पाई पुलिस

पुलिस की सबसे बड़ी विफलता गवाहों को पक्षद्रोही होने से रोकने में रही। पांच स्वतंत्र गवाह ओम प्रकाश, ओम पुरी, मदन सिंह, भोपाल सिंह और विक्रम सिंह पलट गए। गवाहों को धमकी या दबाव से बचाने के लिए कोई विशेष सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई। पुलिस गवाहों के साथ नियमित संपर्क बनाए रखने में भी असफल रही। मृतक के पिता बाबूसिंह, चाचा जगदीश सिंह और मां काकू देवी के बयानों से भी पुलिस कोई स्पष्ट मकसद साबित नहीं कर सकी। पुलिस ने मृतक देवी सिंह और सुमन कंवर के प्रेम विवाह को मकसद बताया गया, लेकिन यह पर्याप्त साक्ष्य नहीं था। विडंबना यह भी थी कि सुमन कंवर ने खुद अपने पति के खिलाफ धारा 498-ए के तहत केस दर्ज कराया था।

दो आरोपियों ने पकड़ा, तो तीनों कैसे जले?

फोरेंसिक सबूत जुटाने में पुलिस ने आरोपियों की जलने की चोटों की उचित जांच नहीं की। तीनों आरोपियों, हिम्मतसिंह, पदम कंवर और यशपालसिंह को भी जलने की गंभीर चोटें आई थीं जिसमें हिम्मत सिंह और यशपाल सिंह को 9त्न जलने की चोटें आईं, जबकि पदम कंवर को 18त्न जलने की चोटें आईं। कोर्ट ने सवाल उठाया कि यदि केवल दो आरोपियों ने मृतक को पकड़ा था तो तीनों को जलने की चोटें कैसे आईं। पुलिस इसका कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे सकी। जबकि आग लगने के मामले में भौतिक साक्ष्य जुटाना अहम होता है।

पाली की अतिरिक्त सेशन कोर्ट ने सुनाई थी सजा

पाली के अतिरिक्त सेशन जज ने 19 मार्च 2016 को तीनों आरोपियों को दोषी ठहराया था। पुलिस द्वारा पेश किए गए 23 गवाहों के बयानों के आधार पर धारा 302/34 के तहत आजीवन कारावास और दो हजार रुपए जुर्माना तथा धारा 341 के तहत एक महीने का कारावास की सजा सुनाई गई थी जिसमें दोनों सजाएं एक साथ चलने का आदेश था। इसके बाद अब हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध सिद्ध करने में असफल रहा है। कोर्ट ने मकसद के अभाव, पक्षद्रोही गवाहियों, मृतक की नशे की स्थिति और आरोपियों की जलने की चोटों के अस्पष्टीकृत होने पर चिंता जताई। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पुलिस कार्रवाई हिम्मत सिंह की रिपोर्ट पर शुरू हुई थी, न कि मृतक के बयान के आधार पर। हाईकोर्ट ने यशपाल सिंह को तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश दिया है, जबकि हिम्मत सिंह व पदम कंवर के बेल बॉन्ड रद्द कर दिए हैं। इन तीनों को एक महीने के भीतर 50 हजार रुपए का व्यक्तिगत बॉन्ड और समान राशि की जमानत देनी होगी जो छह महीने तक प्रभावी रहेगी।

(Udaipur Kiran) / सतीश

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