
श्रीनगर, 14 जुलाई (Udaipur Kiran) । प्रतिबंधों के कारण श्रीनगर स्थित मज़ार-ए-शुहादा पर राजनीतिक नेताओं के जाने पर रोक लगने के एक दिन बाद जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (जेकेएनसी) के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने 13 जुलाई, 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और प्रार्थना करने के लिए मज़ार-ए-शुहादा स्थल का दौरा किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी।
उमर अब्दुल्ला ने प्रतिबंधों के क़ानूनी आधार पर सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि आज उन्होंने हमें किस क़ानून के तहत रोकने की कोशिश की। वे कहते हैं कि यह एक आज़ाद देश है लेकिन उन्हें लगता है कि हम उनके ग़ुलाम हैं। हम किसी के ग़ुलाम नहीं हैं। अगर हम नौकर हैं तो हम यहाँ के लोगों के नौकर हैं।
उन्होंने सोमवार को कहा कि उन्होंने मज़ार जाने से पहले अधिकारियों को सूचित नहीं किया। उन्होंने कहा कि उन्हें बताए बिना मैं कार में बैठ गया और उन्होंने आज भी हमें रोकने की कोशिश की। उन्होंने आगे कहा कि उनका रास्ता रोकने के लिए नवाता चौक पर सीआरपीएफ़ का एक बंकर और पुलिस की गाड़ी खड़ी कर दी गई थी।
उन्होंने कहा कि मज़ार-ए-शुहादा की यात्रा अंततः सफल रही। उन्होंने कहा कि हम आए, हमने फ़ातिहा पढ़ा। उन्होंने कहा कि इन लोगों को ग़लतफ़हमी है। ये क़ब्रें सिर्फ़ 13 जुलाई को ही यहाँ नहीं होतीं। ये साल भर यहाँ रहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी जब चाहे तब इस जगह पर आती रहेगी। हम जब चाहें यहाँ आएँगे और हम इन शहीदों को याद रखेंगे।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि प्रशासन ने राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया और उन्हें और उनकी पार्टी के सहयोगियों को रविवार को फ़ातिहा पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि उनके स्पष्ट निर्देशों के अनुसार हमें यहाँ आकर फ़ातिहा पढ़ने की अनुमति नहीं थी। सुबह-सुबह सभी को अपने घरों में ही रखा गया था।
(Udaipur Kiran) / बलवान सिंह
