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दुर्गा पूजा: पांडु कामाख्या कॉलोनी की थीम अंडमान द्वीप समूह की आदिम जनजाति

।pandu kamakhya coloni

गुवाहाटी, 23 सितंबर (Udaipur Kiran News) । राजधानी गुवाहाटी के पांडु कामाख्या कॉलोनी की दुर्गा पूजा का इस बार का थीम भारत के अंडमान द्वीप समूह की एक आदिम जनजातीय समूह—जरोआ लोगों के जीवन पर आधारित है। शिकार और संग्रह पर निर्भर यह जनजाति प्रकृति से गहराई से जुड़ी हुई है। फलों, पशु-पक्षियों और प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को ही इस वर्ष के पूजा पंडाल का केंद्र बनाया गया है।

सड़क से मुख्य पंडाल तक लगभग 35 मूर्तियां स्थापित की जाएंगी, जिनमें आदिवासियों का दैनिक जीवन झलकता रहेगा। पंडाल के भीतर गहरे जंगल और गुफा का निर्माण किया जा रहा है, जिससे दर्शक खुद को एकदम आदिम जीवन के वातावरण में महसूस कर सकें। पूरा माहौल पूरी तरह इको-फ्रेंडली सामग्री से सजाया जा रहा है। यहां प्लास्टिक या केमिकल का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं होगा।

पंडाल सजाने में उपयोग की जा रही सामग्रियों की सूची वाकई चौंकाने वाली है—होगला पत्ता, खड़ी लकड़ी की छड़ें, फूल झाड़ू, चटाई, बेलकुप, नारियल माला, कटबादाम, लता लिली, महोगनी फल, बेदफल, बेलखोला, बाबुई दाढ़ी, चटाई, लकड़ी गुलाब, ऑर्किड पत्ता, साइकस पत्ता, ताड़ का पत्ता, पीपल का पत्ता, ताड़ सर्पिल, सूर्य की लकड़ी से लेकर रजनी माला तक। सभी सामग्री ओडिशा और पश्चिम बंगाल के घने जंगलों से जुटाई गई हैं।

मूर्ति निर्माण का जिम्मा संभाल रहे हैं मुर्शिदाबाद के प्रसिद्ध मूर्तिकार अमित परमानिक और रामेन पाल। देवी दुर्गा को राजसी रूप में सजाया जाएगा। पंडाल निर्माण का नेतृत्व पश्चिम बंगाल के कलाकार प्रवीर दत्ता और अमल हजारा कर रहे हैं।

समिति के अध्यक्ष और सचिव ने बताया कि पंचमी के दिन एक विशिष्ट व्यक्ति के हाथों देवी की प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा। साथ ही पूजा से पहले दिन गरीबों को नए कपड़े बांटने की पहल भी समिति ने की है। महालया के दिन क्षेत्र की महिलाओं के नेतृत्व में विशेष प्रभात फेरी निकाली गई।

गौरतलब है कि पूजा संचालन की जिम्मेदारी प्रमुख सदस्य बादल दास निभा रहे हैं। इस बार के आयोजन में पुरुषों के साथ महिलाएं भी विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्व संभाल रही हैं। लगभग 24 लाख रुपये के बजट से आयोजित यह पूजा पहले से ही क्षेत्र में चर्चा का केंद्र बनी हुई है।

पांडु कामाख्या कॉलोनी की यह दुर्गा पूजा केवल पूजा ही नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंध की एक अनोखी कलात्मक प्रस्तुति है।

(Udaipur Kiran) / देबजानी पतिकर

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