
अजमेर, 5 सितम्बर (Udaipur Kiran) । महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के पृथ्वीराज चौहान सांस्कृतिक शोध केन्द्र के तत्वावधान में ’सांस्कृतिक मूल्यों के वाहक युवा’ विषय पर संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात चिंतक, प्रबुद्ध प्रेरक और शिक्षाविद् मुकुल कानिटकर ने कहा कि भारतीय संस्कृति, जिसमें आत्मीयता, त्याग और ‘तेरा ही सब कुछ है’ की भावना निहित है, वही हमें श्रेष्ठ बनाती है।
उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवा वह है, जो भविष्य की चिंता करता है और जीवन में उत्साह के साथ आगे बढ़ता है। इसलिए युवाओं को सेवा और मुस्कुराहट के साथ त्याग का मार्ग अपनाना चाहिए। जीवन का उद्देश्य केवल पाने में नहीं, बल्कि देने में है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य का जीवन अत्यंत दुर्लभ है और इसे सार्थक बनाने का मार्ग सेवा, त्याग और राष्ट्र के प्रति समर्पण से होकर गुजरता है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे भारतीय संस्कृति की सरलता, निस्वार्थ सेवा और त्याग की परंपरा को आज के समय में जीवित रखने का संकल्प लें।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वदेशी चिंतक प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक ताना-बाना धर्म आधारित नियमों, नैतिकता और स्वेच्छा से पालन की परंपरा पर आधारित है। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में युद्धरत सैनिक भी धर्म मर्यादाओं के कारण आम नागरिकों को हानि नहीं पहुंचाते थे। उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की संस्कृति केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और ज्ञानप्रधान भी है। प्रत्येक शास्त्र और सिद्धांत में गहरे अर्थ और विज्ञान निहित हैं। इसलिए युवाओं को चाहिए कि वे केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि संस्कारों को भी अपने जीवन में दृढ़ करें।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि यदि संस्कृति का पालन नहीं किया गया तो युवा अराजक और विनाशकारी हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि युवाओं को समाजसेवा, त्याग और दायित्वपूर्ण जीवन अपनाकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे संस्कृति के संरक्षण के लिए सक्रिय भूमिका निभाएं, क्योंकि संस्कृति के मूल्यों से ही राष्ट्र का चरित्र और भविष्य सुरक्षित हो सकता है।
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(Udaipur Kiran) / संतोष
