Madhya Pradesh

शालिग्रामी शिला पर है बलदाऊ की अद्वितीय दुर्लभ प्रतिमा, आज मनेगा भव्य हलछठ महोत्सव

श्री बलदेव जी मंदिर

पन्‍ना, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के पवित्र नगर पन्ना मे ऐतिहासिक श्री बलदेव जी मंदिर मे उनका प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया जायेगा। इसके लिए तैयारियां पूर्ण हो चुकी है। विश्व का संभवतः पहला बलदाऊ मंदिर पन्ना में है जिसमें स्थापत्य कला का अभूतपूर्व संगम है तथा 16 कलाओं पर निर्मित हैं। स्वतः भगवान बलदाऊ जी प्रतिमा विशाल शालिग्रामी शिला पर तराश कर बनाई गई है।

आज महिलाएं हलछट का व्रत रखकर अपने पुत्रों के दीर्घायु के लिए पूजा अर्चना करेंगीं ऐसी मान्यता है कि व्रती महिलाएं इस दिन हल से जोत कर खेत में होने वाले अनाज और सब्जियां नहीं खाती हैं। व्रत में केवल तालाब में पैदा होने वाली वस्तुओं (तिन्नी चावल, मुआ साग आदि) को खाया जाता है। गाय का दूध या दुग्ध उत्पाद भी इस्तेमाल नहीं होता। व्रती महिलाएं दीवार पर पारंपरिक रूप से छठ माता का चित्र बनाती हैं। गणेश, माता गौरा की पूजा करती हैं। कुछ परिवारों में महिलाएं जमीन लीपकर घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी पेड़ भी लगाती हैं। हलषष्ठी की कथा सुनती हैं। भगवान बलराम से पुत्रों की दीर्घायु की कामना करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।

पूर्व व पश्चिम स्थापत्यकला का अपूर्व संगम है पन्ना का बलदेवजी मंदिरः-

धार्मिक नगरी पन्ना में बलदाऊ का भव्य एवं अद्वितीय मंदिर है। दक्षिण भारत के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की तरह ही बलदेव जी मंदिर में शालिग्रामी शिला पर कृष्णवर्णी प्रतिमा स्थापित है। इस दुर्लभ प्रतिमा में इतना तेज है कि इसे एकटक देख पाना मुश्किल होता है। भगवान हलधर का जन्मोत्सव यहां भव्य रूप से मनाया जाता है। पंडित योगेंद्र अवस्थी बताते हैं कि रुद्रप्रताप सिंह पन्ना के 10वें महाराज थे। वे भगवान बलदेव की प्रतिमा को मथुरा वृंदावन से लेकर आए थे। वहां के अलावा शेषनाग सहित हलधर की इतनी बड़ी प्रतिमा देशभर में शायद ही कहीं और हो। प्रतिमा में इतना तेज है कि इसे अधिक समय तक एकटक नहीं देख पाते हैं। हलछठ पर्व पर यहां राजशाही जमाने से ही समारोह के साथ भगवान बलदेव का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है।

मंदिर में श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का आनंद, लंदन के चर्च का प्रतिरूपः-

प्रतिमा की तरह ही यहां का मंदिर भी विशेष है। भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं पर आधारित यह मंदिर पूर्व और पश्चिम के स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। मंदिर का बाहरी हिस्सा लंदन के प्रसिद्ध सेंटपॉल चर्च का प्रतिरूप है। इसकी डिजाइन इटली के मानचित्रकार ने तैयार की थी। मंदिर का निर्माण संवत 1933 से शुरू होकर तीन साल में संवत 1936 में पूरा हुआ था। मंदिर का प्रवेश द्वारा बुंदेली स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका सौंदर्य सहज ही लोगों को आकर्षित करता है। मंदिर से जुडे़ कुंजबिहारी शर्मा बताते हैं कि मंदिर की नट मंडप और भोग मंडप की महाराबें (किसी मंदिर के गुंबद के अंदर का हिस्सा) मध्यकालीन स्थापत्य शैली में हैं, जबकि आंतरिक सज्जा मंदिरों की तरह ही है। भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं पर आधारित मंदिर का मंडप 16 विशाल स्तंभों पर टिका है। इसके प्रवेश और निकासी द्वार पर 16 सीढ़ियां, 16 झरोखे और 16 लघु गुंबद हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है।

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(Udaipur Kiran) / सुरेश पांडे

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