
मंडी, 15 सितंबर (Udaipur Kiran News) । मंडी जनपद में सायर का त्योहार किसानों की खुशहाली और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। प्राचीन मंदिरों की नगरी मंडी, जिसे छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है, सैर पर्व की तैयारियों में रंगी हुई है। ऋतु परिवर्तन और नई फसल के आगमन का प्रतीक यह पर्व मंगलवार को पूरे जनपद में उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष बरसात मंडी के लोगों को गहरा नुकसान दे गई, लेकिन अब लोग धीरे-धीरे उस सदमे से उबरकर उत्सव की तैयारियों में जुट गए हैं।
सेरी मंच पर सजी दुकानों में खरीदारी का विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है। जिला मंडी में इस अवसर पर स्थानीय अवकाश घोषित है। सैर पर्व को अनाज पूजा का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन पेठू की पूजा का विशेष महत्व है। किसान अपने खेतों से आई नई फसल जैसे मक्की, धान, तिल, कोठा और गलगल की भी पूजा करते हैं और ईश्वर से भरपूर पैदावार की कामना करते हैं। यह परंपरा ग्रामीण जीवन में भूमि और श्रम के महत्व को दर्शाती है। पर्व पर बड़े-बुजुर्गों को अखरोट और द्रुब (दूर्बा) देकर आशीर्वाद लेने की परंपरा निभाई जाती है, जिसे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। बच्चे व युवा इस दिन अखरोट खेलते हैं। हालांकि, मक्की व अखरोट का सेवन इस दिन निषिद्ध माना गया है।
सैर पर्व का विशेष महत्व भादो माह से जुड़ा है, जिसे स्थानीय परंपराओं में ‘काला महीना’ कहा जाता है। इस अवधि में नई नवेली दुल्हनें मायके में रहती हैं और आश्विन मास की सक्रांति यानि सैर के दिन वे ससुराल लौटती हैं। लोक आस्थाओं के अनुसार भादो माह में ग्राम देवता अपने मंदिरों से निकलकर द्रंग क्षेत्र की घोघरधार में डायनों से युद्ध करने जाते हैं। सैर पर्व के दिन उनकी वापसी होती है और गूरों द्वारा इस दिव्य युद्ध का वर्णन सुनाया जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक विश्वास को जीवित रखती है बल्कि सामुदायिक एकता को भी मजबूत करती है।
यह पर्व खेत-खलिहानों की उपज, पशुधन और लोक रीति-रिवाजों का सामूहिक उत्सव है। ढोल-नगाड़ों की थाप, पारंपरिक गीत और लोक नृत्य इसकी रौनक को और बढ़ा देते हैं। गांवों में सामूहिक भोज और मेल-जोल का विशेष माहौल बनता है, जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को नई ऊर्जा देता है। आज जब जीवनशैली तेजी से बदल रही है, ऐसे समय में सैर का यह त्यौहार लोगों को अपनी जड़ों और संस्कृति से जोड़े रखने का अवसर देता है। मंडी जनपद में यह पर्व केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि सामाजिक मेल-जोल और सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। नई फसल, आस्था और संस्कृति का यह संगम मंडी की जीवंत परंपरा को सहेजने के साथ आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाता है।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा
