Uttar Pradesh

विश्व गणित की आत्मा है भारत का शून्य : रणविजय सिंह

भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित एवं खगोलशास्त्र विषय पर हुआ व्याख्यान*
भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित एवं खगोलशास्त्र विषय पर हुआ व्याख्यान*
भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित एवं खगोलशास्त्र विषय पर हुआ व्याख्यान*
भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित एवं खगोलशास्त्र विषय पर हुआ व्याख्यान*
भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित एवं खगोलशास्त्र विषय पर हुआ व्याख्यान*

गोरखपुर, 26 अगस्त (Udaipur Kiran) । भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को यदि केवल अध्यात्म और दर्शन तक सीमित मान लिया जाए, तो यह हमारी ऐतिहासिक दृष्टि की संकीर्णता होगी। वास्तव में भारत वह भूमि रही है, जहां न केवल आत्मा और परमात्मा पर विमर्श हुआ, बल्कि संख्याओं के रहस्य और आकाशगंगा की गति पर भी सूक्ष्मतम अध्ययन हुआ। गणित और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में भारतीय विद्वानों का योगदान इतना गहरा और व्यापक है कि उसकी प्रतिध्वनि आज भी विश्व वैज्ञानिक समुदाय में सुनाई देती है। भारत का शून्य विश्व गणित की आत्मा है।

उक्त बातें महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ में राष्ट्रसंत महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में आयोजित सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पूर्वोत्तर रेलवे के सेवानिवृत्त मुख्य परिचालन प्रबंधक रणविजय सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की सबसे महान देन है शून्य और दशमलव प्रणाली। यह केवल गणना की सुविधा नहीं, बल्कि संख्याओं की एक नई भाषा थी, जिसने विश्व की गणितीय दृष्टि को बदल दिया। आर्यभट्टऔर ब्रह्मगुप्त जैसे महर्षियों ने इसे परिभाषित किया और आज आधुनिक कंप्यूटर विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष तकनीक तक इसकी नींव पर ही पूरी संरचना खड़ी है। यह गर्व का विषय है कि जिसे पश्चिम ने गणित की क्रांति कहा, उसका बीज भारतभूमि में हजारों वर्ष पूर्व रोपा गया था। उन्होंने आगे बताया कि आर्यभट्ट ने जब यह कहा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है, तब पश्चिमी जगत इस सत्य से अनजान था। भास्कराचार्य ने ग्रहों की गति और गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या उस समय कर दी थी, जब न्यूटन का जन्म भी नहीं हुआ था। वराहमिहिर की पंचसिद्धांतिका केवल ज्योतिषीय ग्रंथ नहीं, बल्कि उस युग का वैज्ञानिक खगोलशास्त्र था। यह तथ्य इस बात को सिद्ध करता है कि भारतीय विद्वान आकाश को केवल आस्था से नहीं, बल्कि विज्ञान और तर्क से भी परखते थे।

उन्होंने कहा कि आदिकाल के वैदिक काल में 1000 ईसा पूर्व शून्य एवं दशमलव की खोज भारत द्वारा की गई थी। उत्तर वैदिक काल में बाैधायन के शुल्व सूत्र की खोज हुई, इसमें पाइथागोरस से बहुत पहले ही उनके प्रमेय की जानकारी प्राप्त हुई थी। उन्होंने बताया कि मध्यकाल भारतीय गणित का स्वर्ण काल था, जिसमें आर्यभट्ट, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य, बुद्ध गुप्त, भास्कर प्रथम एवं द्वितीय आदि इस काल के प्रमुख गणितज्ञ रहे हैं।

श्री सिंह ने कहा कि आज जब अंतरिक्ष विज्ञान नई सीमाएं छू रहा है, तब यह स्मरण करना आवश्यक है कि भारतीय परंपरा में खगोल और गणित केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं था, बल्कि समाज और संस्कृति का हिस्सा था। पंचांग निर्माण से लेकर कृषि कार्य तक, ग्रह-नक्षत्रों की गति से लेकर यज्ञ-वेदियों की रचना तक हर क्षेत्र में यह विज्ञान जीवंत था। नासा जैसे आधुनिक संस्थान भी स्वीकार करते हैं कि प्राचीन भारतीय गणनाएं अद्भुत प्रमाणिकता रखती थीं। उन्होंने कहा कि प्रश्न यह नहीं है कि भारतीय गणित और खगोलशास्त्र ने क्या दिया, प्रश्न यह है कि हम अपने उस गौरवशाली ज्ञान को किस सीमा तक पुनर्जीवित कर पाए हैं। समय की मांग है कि विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में भारतीय गणितीय और खगोलीय ग्रंथों पर पुनः गंभीर अध्ययन को गति दी जाए। यह न केवल इतिहास की पुनर्प्रतिष्ठा होगी, बल्कि भविष्य की वैज्ञानिक यात्रा को भी सुदृढ़ आधार प्रदान करेगी।

शून्य और सूर्यगति भारत की अनमोल वैज्ञानिक देन : डॉ. विजय चौधरी

व्याख्यानमाला के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के भूगोल विभाग के अध्यक्ष डॉ. विजय कुमार चौधरी ने कहा कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा केवल अध्यात्म और दर्शन तक सीमित नहीं रही, बल्कि गणित और खगोलशास्त्र में भी उसने विश्व को अद्वितीय योगदान दिया। वैदिक काल से लेकर गुप्त युग और उसके बाद तक, भारतीय विद्वानों ने ऐसे गणितीय सिद्धांत और खगोलीय निष्कर्ष प्रस्तुत किए जिन्हें आधुनिक विज्ञान ने सदियों बाद स्वीकारा। डॉ. चौधरी ने कहा कि भारतीय खगोलशास्त्र केवल ज्योतिषीय गणना तक सीमित नहीं था, बल्कि यह वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रह-नक्षत्रों की गति, सौर-वर्ष, चंद्र-वर्ष और ग्रहणों की गणना तक विस्तृत था। आज भी पंचांग निर्माण, ग्रहण की भविष्यवाणी, सूर्य और चंद्र की गतियों की गणना भारतीय ज्योतिषीय और खगोलशास्त्रीय पद्धति से ही होती है। यहां तक कि नासा जैसे आधुनिक संस्थान भी भारतीय प्राचीन खगोल विद्या के सूत्रों की सराहना कर चुके हैं। समापन समारोह का संचालन राजनीतिविज्ञान विभाग के अध्यक्ष हरिकेश यादव ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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