
नाहन, 06 जुलाई (Udaipur Kiran) । नाहन शहर में मुहर्रम के अवसर पर ताजियों की प्राचीन परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा और आपसी भाईचारे के साथ निभाई जाती है। यह परंपरा रियासत काल के समय से चली आ रही है जब तत्कालीन महाराजा के आदेश पर पहली बार ताजियों का जुलूस निकाला गया था। तब से लेकर आज तक यह प्रथा निरंतर जारी है।
मुहर्रम का महीना इस्लाम धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह महीना इमाम हुसैन इब्न अली की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो पैगंबर मोहम्मद के छोटे नवासे थे। विशेष रूप से आशूरा का दिन शिया मुस्लिम समुदाय के लिए शोक, मातम और बलिदान की याद के रूप में मनाया जाता है।
नाहन शहर में मुहर्रम के दिन विभिन्न मोहल्लों से ताजिए निकाले जाते हैं। यह ताजिए एक भव्य जुलूस के रूप में नगर की जामा मस्जिद (कच्चा टैंक) पहुंचते हैं, जहां उन्हें धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ दफन किया जाता है।
ताजिया कमेटी के सदस्य असलम ने जानकारी देते हुए बताया कि मुहर्रम पर ताजियों की यह परंपरा रियासत काल से चलती आ रही है और आज भी पूरी आस्था और परंपरा के साथ निभाई जाती है। इस आयोजन में सभी समुदायों के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और आपसी सद्भाव की मिसाल पेश करते हैं।
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(Udaipur Kiran) / जितेंद्र ठाकुर
