श्रीनगर, 11 अगस्त (Udaipur Kiran) । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में कहा है कि केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने के लिए दी गई शक्तियां सभी समुदायों की समावेशिता और पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक हैं। गृह मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा कि उपराज्यपाल की शक्तियां विवेकाधीन हैं और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना भी इनका प्रयोग किया जा सकता है।
यह हलफनामा पूर्व विधान परिषद सदस्य और जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रविंदर शर्मा की उस याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 15, 15-ए और 15-बी की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। इन धाराओं में उपराज्यपाल को स्वीकृत संख्या से अधिक विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का प्रावधान था। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता शर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि इन धाराओं में अल्पमत सरकार को बहुमत में बदलने और इसके विपरीत, दोनों की क्षमता है। याचिका में उपराज्यपाल को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नामांकन न करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, क्योंकि इससे अल्पमत को बहुमत वाली सरकार में बदलने की संभावना है।
गृह मंत्रालय ने कहा कि ये धाराएं यह सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई थीं कि कम प्रतिनिधित्व वाले समुदायों सहित विविध आवाज़ें विधायी प्रक्रिया में योगदान दे सकें। केंद्र ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए इन धाराओं को लागू करना आवश्यक था। हलफनामे में कहा गया है कि विधानसभा में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। इसलिए उपराज्यपाल को कुछ समुदायों या समूहों के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सदस्यों को नामित करने का अधिकार दिया गया है, जिनका पर्याप्त चुनावी प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता है।
केंद्र सरकार के अनुसार उपराज्यपाल को बिना किसी सहायता या सलाह के एक वैधानिक पदाधिकारी के रूप में अपने विवेक से अपने कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार है, न कि सरकार के विस्तार के रूप में। हलफनामे में आगे कहा गया है कि ये विवादित धाराएं केंद्र शासित प्रदेश के शासन ढांचे में ऐतिहासिक रूप से विस्थापित समुदायों और गैर-प्रतिनिधित्व वाले व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके एक महत्वपूर्ण विधायी कार्य करती हैं। गृह मंत्रालय ने कहा कि इन प्रावधानों के पीछे विधायी मंशा कानून और समता पर आधारित है, जो यह सुनिश्चित करती है कि इन विस्थापित समुदायों की आवाज़ को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में न तो नज़रअंदाज़ किया जाए और न ही हाशिए पर रखा जाए।
हलफनामे के अनुसार जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पास नई दिल्ली और पुडुचेरी के शासन मॉडल की तरह कार्यकारी शक्तियां हैं। गृह मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से विस्थापित लोगों में से विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं है, इसलिए यह प्रावधान भी आवश्यक था।
गृह मंत्रालय की इस टिप्पणी पर पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करार दिया। उन्होंने उमर अब्दुल्ला सरकार से इस अलोकतांत्रिक मिसाल को चुनौती देने का आग्रह किया, क्योंकि अभी की चुप्पी बाद में मिलीभगत होगी।————————
(Udaipur Kiran) / बलवान सिंह
