Delhi

भारतीय विधायकों की राजनीतिक परिपक्वता ही स्वतंत्र भारत की संसदीय नींव बनी : विनय सहस्रबुद्धे

दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को ‘1911–1946 के पूर्व-स्वतंत्रता भारत की संसदीय प्रणालियां और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित करते
दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को ‘1911–1946 के पूर्व-स्वतंत्रता भारत की संसदीय प्रणालियां और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी  को संबोधत करते
दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को ‘1911–1946 के पूर्व-स्वतंत्रता भारत की संसदीय प्रणालियां और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी संबोधिक

-1911–1946 के बीच के पूर्व-स्वतंत्रता भारत की संसदीय प्रणालियां और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय प्रतिनिधियों की भूमिका पर संगोष्ठी का आयोजन

-प्रारंभिक संसदीय इतिहास को पुनः स्मरण करना हमारे लोकतांत्रिक मानस को समृद्ध करता है : राम बहादुर राय

नई दिल्ली, 10 जुलाई (Udaipur Kiran) । दिल्ली विधानसभा ने गुरुवार को ‘1911–1946 के पूर्व-स्वतंत्र भारत की संसदीय प्रणालियां और स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय प्रतिनिधियों की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया।

मुख्य प्रवक्ता और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के पूर्व अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि औपनिवेशिक प्रतिबंधों के बीच भी भारतीय विधायकों ने जिस राजनीतिक परिपक्वता और नैतिक स्पष्टता का परिचय दिया, वह स्वतंत्र भारत की संसदीय नींव बन गई। यह बात उन्होंने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना किसी उपनिवेशी व्यवस्था की देन नहीं, बल्कि इसकी जड़ें भारत की हजारों वर्ष पुरानी संवाद, असहमति और विमर्श की परंपरा में हैं। उन्होंने विठ्ठलभाई पटेल और भगत सिंह जैसे नेताओं के योगदान का स्मरण करते हुए संस्थागत जवाबदेही और लोकतांत्रिक आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल दिया।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि प्रारंभिक संसदीय इतिहास को पुनः स्मरण करना हमारे लोकतांत्रिक मानस को समृद्ध करता है। लाल-बाल-पाल की वैचारिक त्रयी के साथ श्री अरविंदो के योगदान को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी चेतना की अग्नि लंदन तक पहुंची, यह हमारी स्वतंत्रता की वैश्विक प्रतिध्वनि रही।

राम बहादुर राय ने पंडित मदन मोहन मालवीय को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी छह फरवरी 1919 को रॉलेट एक्ट के विरोध में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का उल्लेख किया। इस भाषण को महात्मा गांधी ने सराहना की।

विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने अपने संबोधन में भारत की संवैधानिक विरासत से पुनः जुड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने पंडित मालवीय और विठ्ठलभाई पटेल जैसे नेताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि एक सदी पहले भी हमारे विधायी प्रतिनिधि लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता और सदन की मर्यादा के प्रतीक रहे।

गुप्ता ने कहा कि यह संगोष्ठी एक दीर्घकालिक शैक्षणिक पहल की शुरुआत है, जिसका उद्देश्य भारत की पूर्व-स्वतंत्रता विधायी परंपराओं का दस्तावेजीकरण करना और उसे जनमानस से जोड़ना है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. नीरजा सिंह ने ‘विठ्ठलभाई पटेल: औपनिवेशिक काल (विदेशी शासन काल) विधान परिषद में राष्ट्रवादी नेतृत्व’ विषय पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कैसे 1925 में केंद्रीय विधानसभा के पहले निर्वाचित भारतीय अध्यक्ष के रूप में पटेल ने संसदीय गरिमा और स्वायत्तता की नींव रखी। 1929 में स्वतंत्र विधानसभा सचिवालय की स्थापना हो या दमनकारी कानूनों का संवैधानिक प्रतिरोध—विठ्ठलभाई पटेल ने विधायी मंच को राष्ट्रीय आंदोलन के एक सशक्त माध्यम में बदला।

इस अवसर पर विधानसभा उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के विधायी पक्ष को समझना आवश्यक है ताकि हम उन संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात कर सकें जिन पर भारत की लोकतांत्रिक नींव टिकी है।

इस संगोष्ठी में देश के प्रतिष्ठित विद्वानों, शिक्षाविदों एवं सार्वजनिक बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को सुदृढ़ बनाने वाली विधायी‌ परंपराओं तथा वैचारिक आधारों पर संवाद किया।

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(Udaipur Kiran) / धीरेन्द्र यादव

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