HimachalPradesh

मंडी के पांगणा गांव का जीवंत शिवद्वाला : जहां शिव तीन पहर में अपना स्वरूप बदलते हैं

शिवद्वाला पांगणा।

मंडी, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) । मंडी जिला का सुकेत जनपद वैदिक, पौराणिक व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है, जहां की सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि विशिष्टता लिए हुए है। सुकेत संस्कृति साहित्य और जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाॅक्टर हिमेंद्र बाली का कहना है कि सुकेत राज्य महाभारतकाल में सुकुट नाम से जाना जाता था। यहां वैदिक ऋषि वसिष्ठ, गौतम और जमदग्नि के अतिरिक्त ऋषि कश्यप, भृगु, परशुराम, कर्ण, पांच पांडव, भीष्म व द्रौण आदि मनीषियों व योद्धाओं की धार्मिक मान्यताएं आज भी प्रचलित है।

सुकेत की राजधानी पांगणा पाण्डवों की रमणस्थली होने के कारण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक गौरवगाथा का प्रतिनि़धित्व करती है। पांगणा गांव के प्रवेश द्वार पर शिवद्वाला क्षेत्र की धार्मिक आस्था का वृहद केंद्र है। पांगणा में अवस्थित यह शिवद्वाला सतलुज शिखर शैली में निर्मित है। गर्भगृह में शिव का पार्थिव विग्रह लिंग रूप में स्थापित है।

मंदिर के पुजारी भूपेन्द्र शर्मा का कहना है कि शिवलिंग की अलौकिक विशेषता है कि यह दिन में तीन बार वर्ण को परिवर्तित करता है। शिव लिंग का पूर्वाह्न वर्ण हल्का रक्त, अपराह्न पूर्ण रक्त और सांध्यकाल में कृष्ण वर्ण में परिणत हो जाता है। शिवद्वाला में प्रतिष्ठित शिवलिंग शताब्दियों से प्रतिष्ठित है और भगवान शिव मनोवांछित मन को प्रदान करने वाले हैं।

गलयोग गांव के समाजसेवी अध्यापक मेहर सिंह भारद्वाज का कहना है कि शिव के इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व चरखड़ी गांव के संभ्रांत व्यक्ति धनिया ने किया था। धनिया रियासती काल में एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे जिनका व्यवसाय शिमला-दिल्ली तक फैला था। अपार धन संपदा होने के बावजूद भी धनिया के संतान नहीं थी। अत: धनिया ने इस मंदिर में भगवान शिव से संतानसुख की प्रार्थना की और भगवान के आशीर्वाद से उसे संतान का आशीष प्राप्त हुआ। श्रद्धानवत् धनिया ने पांगणा में शिवद्वाला के मंदिर का पुनर्निर्माण किया। धनिया द्वारा शिवद्वाला के निर्माण से वंशबेल का बहुविस्तार हुआ और सुख-समृद्धि पीढ़ियों तक फैल की। धनिया के दादा कालिया पराविद्या में सिद्धहस्त थे। वे सुकेत रियासत की राजधानी सुंदरनगर में राजदरबार में उच्चस्थ पद पर आसीन थे। कालांतर में किसी शंका के कारण राजा ने धनिया को मौत की सज़ा प्रदान की। सज़ा के तौर पर धनिया को चरखड़ी के समीप टिक्कर गढ़ में मौत का दंड सुनिश्चित हुआ। धनिया की पीठ पर पाषाण का भारी गोल पत्थर-पूड़ बांध कर गहरी खाई में धकेल दिया। वास्तव में रियासती काल में मृत्यु दंड देने के लिए उपरोक्त विधि ही अपनायी जाती थी। गहरी खाई में धकेल दिए जाने पर गोल पाषाण के भारी भार से लुढ़कने की गति तीव्रतर हो जाने से व्यक्ति का शरीर चीथड़ों में ढलान पर बिखर जाता था, जिसे चील- स्वत: निवाला बना लेते थे।

धनिया को जैसे ही टिक्कर गढ़ की तीखी ढलान पर धकेला गया तो वह देवी कू काली के प्रताप से हवा में उड़ने लगा। पीठ में बंधा पाषाण उसके पंख बन गए और वह उड़ता हुआ चरखड़ी गांव में सकुशल उतरा। यहीं रहकर धनिया ने विवाह कर जीवन यापन किया। आज भी चरखड़ी व आस-पास के क्षेत्र में कू -काली देवी की मान्यता है। कालिया के पौत्र धनिया ने शिव द्वारा संतानसुख दिए जाने के उपरांत मंदिर निर्माण हुआ और यह परंपरा भी स्थापित हुई कि महाशिवरात्रि के दिन धनिया के परिजन पांगणा के इस शिवद्वाला में शिव के पार्थव विग्रह चंदो को बनाकर लाते हैं। चंदो का महारात्रि के दिन अन्य स्थानों की तरह प्रतिष्ठा व पूजन रात्रि पर्यंत होता है। यह शिवद्वाला करसोग सुकेत का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां हर महीने की शिवरात्री को रातभर पूजन अर्चन और जागरण होता है।

अन्य परंपरा के अनुसार धनिया के परिवार के सदस्य शिवद्वाला में नित्य पूजानुष्ठान के लिए समय-समय पर धनराशि व पूजा समग्री भी प्रदान करते हैं। शिवद्वाला पांगणा के मंदिर के मुख्य द्वार, गोपुरम पर आलों में प्रस्तरकी गंगा-यमुना, विष्णु, भैरवनाथ व शिवमंदिर की मूर्तियां सुसज्जित हैं। आंगन में प्रस्तर नंदी बैल अवस्थित हैं। गर्भगृह में शिवलिंग के अतिरिक्त गणेश व नंदी पर आरूढ़ गौरी-शिव की और हत्या रूपी किसी कन्या की प्रतिमा है। पांगणा का प्राचीन शिव मंदिर शिवद्वाला पश्चिमी हिमालय की शैव परम्परा की विशिष्टता को लिए हुए है। मंदिर का स्थापत्य व मूर्ति शिल्प कला यहां के प्राचीन इतिहास के परिचायक हैं।

संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि कालांतर मे अनाम स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चंद्रमणी महाजन ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया। पांगणा सुकेत की इस गौरवशाली देव संस्कृति की अमूल्य धरोहर को पुरातात्विक दृष्टि से दस्तावेजीकरण कर बहुत सहेज कर रखने की जरुरत है। ताकि अतीत की समृद्ध विरासत को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके।

—————

(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

Most Popular

To Top