
कोलकाता, 23 जून (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल में कॉलेजों में दाखिले के लिए बने ऑनलाइन पोर्टल पर ओबीसी प्रमाणपत्र से जुड़ी अदालत की पूर्व व्यवस्था का पालन नहीं हो रहा है —इस आरोप के साथ याचिकाकर्ता के वकील ने सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने न्यायमूर्ति तीर्थंकर घोष के समक्ष जल्द सुनवाई की मांग की, लेकिन अदालत ने फिलहाल याचिका को स्वीकार नहीं किया है।
याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि हाई कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वर्ष 2010 से पहले तक जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्रों में ओबीसी-ए और ओबीसी-बी के रूप में कोई वर्गीकरण नहीं था। इसके बावजूद कॉलेज प्रवेश पोर्टल पर आज भी ओबीसी-ए और ओबीसी-बी के नाम से अलग-अलग विकल्प दिखाए जा रहे हैं।
न्यायमूर्ति घोष ने सोमवार को दलीलें सुनने के बाद निर्देश दिया कि इस मामले को मंगलवार को फिर से अदालत के संज्ञान में लाया जाए, जिसके बाद ही सुनवाई पर विचार किया जाएगा।
गौरतलब है कि हाल ही में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नई ओबीसी अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाई थी, जो 31 जुलाई 2025 तक प्रभावी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि केवल वर्ष 2010 से पहले ओबीसी सूची में शामिल किए गए समुदायों को ही वैध माना जाएगा।
अदालत के अनुसार वर्ष 2010 से पहले पश्चिम बंगाल में कुल 66 समुदायों को ओबीसी श्रेणी में शामिल किया गया था, जिनमें 54 गैर-मुस्लिम और 12 मुस्लिम समुदाय शामिल थे। अदालत ने यह भी कहा कि 2010 के बाद जिन समुदायों को ओबीसी सूची में जोड़ा गया, उनके प्रमाणपत्र अब अमान्य हैं।
राज्य सरकार ने अदालत में यह भी तर्क दिया था कि ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द होने के कारण कॉलेजों में दाखिला और नियुक्ति प्रक्रिया जैसी तमाम प्रशासनिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। लेकिन अदालत ने यह कहते हुए राज्य के इस तर्क को खारिज किया कि अदालत की व्यवस्था से ऐसी कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
